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दहलीज पर मानसून,तैयारी नाकाफी

दहलीज पर मानसून,तैयारी नाकाफी

लखनऊ 19 जून (वार्ता) आसमान से बरसती आग से झुलस रही धरा को भिगोने के लिये बादलों का कारवां उत्तर प्रदेश की सीमा पर दस्तक देने को तैयार है, मगर प्रकृति की अनमोल निधि को संजोने के लिये की गयी तैयारी नाकाफी जान पडती है। तय समय सीमा पर केरल तट पर पहुंचे मानसून को लेकर मौसम विभाग काफी आशान्वित है। विशेषज्ञों को पिछले कुछ सालों के मुकाबले सूबे में इस दफा अच्छी बारिश की उम्मीद है। किसान और खेतिहर मजदूर सारे कामकाज निपटा कर बारिश के इंतजार में आसमान की ओर टकटकी लगाये हुये है। उम्मीद है कि मानसून के बिहार के रास्ते पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस हफ्ते के आखिर तक प्रवेश करेगा। उधर, नहरों की सफाई का काम अभी भी आधा अधूरा है जबकि ज्यादातर सरकारी इमारतों और बडे मकानों में वर्षा जल संचयन के लिये लगी प्रणाली रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ठप पडे हैं। राज्य में योगी सरकार की कडी चेतावनी के बावजूद नालों और नहरों से निकली सिल्ट कई जगह अभी भी जमी पडी है। यहां दिलचस्प है कि सरकार यह स्वीकार कर चुकी है कि प्रदेश में भूजल की स्थिति काफी चिंताजनक है। पिछले महीने विधानसभा सत्र में सरकार ने माना था कि राज्य में 113 ब्लाकों में भूजल के हालात बेहद गंभीर है जबकि 59 ब्लाकों में भूजल खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। पर्यावरणविदों का मानना है कि भूजल दोहन पर लगाम लगाने के लिये यदि सख्त कानून का प्रावधान और उसे कडाई से लागू करने की व्यवस्था नही की गयी और अगले एक दशक में राज्य को भीषण जलसंकट का सामना करना पड सकता है। इसके लिये जरूरी है कि वर्षा जल संरक्षण के हरसंभव उपाय किये जायें। आसमान से बरसने वाला एक एक बूंद को धरती में संजोने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं बल्कि आमजन की भागीदरी भी बेहद जरूरी है।


इस साल गर्मी ने पिछले एक दशक में बने कई रिकार्डो को ध्वस्त कर नये आयाम स्थापित किये। बुंदेलखंड के बांदा और हमीरपुर समेत कई जिलों में तापमान 48 डिग्री सेल्सियस को छू गया। आसमान से बरस रही आग का आलम यह था कि पिछले तीन महीने में गर्मी और लू की चपेट में राज्य में 140 से अधिक लोगों की मृत्यु हुयी जबकि अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मरीजों की भीड से पटे हुये हैं। अाधिकारिक सूत्रों ने बताया कि राज्य के अधिसंख्य क्षेत्रों में पिछले दो दशकों में जलस्तर में काफी गिरावट भी देखी गई है जिसका मुख्य कारण भूजल संसाधनों का अत्यधिक दोहन है। जलस्तर की पिछले वर्षो से तुलना से यह बात सामने आती है कि प्रदेश में जल स्तर उतार-चढ़ाव की स्थिति विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न है। केन्द्रीय और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े भू-भाग में जलस्तर में गिरावट पाई गयी है, वही पूर्वी क्षेत्र में जलस्तर में चढ़ाव की स्थिति देखी गयी है। प्रदेश के कुल 70 जिलों के 456 विकास खण्डों में वर्ष 2005 के सापेक्ष वर्ष 2015 में प्रीमानसून अवधि के भूजल स्तर आकडों के तुलनात्मक अध्ययन किया गया और इस अध्ययन के निष्कर्षो के आधार पर एक से 90 सेमी० प्रतिवर्ष तक की भू-जल स्तर गिरावट देखी गयी है। सूत्रों ने बताया कि आगरा,हमीरपुर,फतेहपुर और बागपत समेत सूबे के तीस जिलों में भूजल औसतन 80 सेमी प्रति साल की दर से नीचे खिसक रहा है जबकि अधिकांश प्रमुख शहरी क्षेत्रों में भी भूगर्भ जल स्तर में 22 सेमी० से 56 सेमी० प्रतिवर्ष तक की औसत गिरावट परिलक्षित हुयी है।


कमोवेश राज्य के कई इलाकों में भूजल के यही हालात हैं। पानी के लगातार खपत एवं बढ़ती मांग से जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। कृषि विभाग के आकडों के मुताबिक साल 2000 से 2011 के बीच भू-जल संकट में नौ गुना की वृद्धि दर्ज की गई है। केन्द्रीय भू-जल समिति के अनुसार साल 2000 में जहां उत्तर प्रदेश के 20 ब्लॉक पानी के सकंट से जूझ रहे थे वहीं साल 2011 में ऐसे ब्लॉकों की संख्या 179 हो गई है। कृषि वैज्ञानिक एस़ लाल कहते हैं कि पानी के अंधाधुन खपत से समस्या बढ़ती जा रही है। जिस रफ्तार से पानी का उपयोग किया जा रहा है उस तेजी से जल की पूर्ति नहीं हो पा रही है। ग्रामीण एवं नगर विकास में भू-गर्भ जल का दोहन विकास का पर्याय बन चुका है। सुनिश्चित एवं सामयिक सिंचाई के साथ-साथ घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग में इसका दोहन तेजी से बढ़ा है। सिंचाई के लिये भूगर्भ जल का शुद्ध दोहन 118 प्रतिशत किया जा रहा है तथा इसकी बढ़ोतरी दर 1.94 प्रतिशत प्रतिवर्ष अनुमानित है। इसके अनियोजित एवं असंतुलित दोहन से प्रदेश का पर्यावरण संतुलन बिगड़ता जा रहा है। श्री लाल कहते है कि बढता शहरीकरण भूजल में गिरावट का मुख्य कारक है। जंगलों की कटाई और कंक्रीट के बढते संजाल से वर्षा जल धरती मे सोखने की बजाय नदी नालों के जरिये समंदर में चला जाता है। सरकारों को इस बारे में गंभीर चिंतन करने की जरूरत है। शहरों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का कडाई से पालन कराये जाने की जरूरत है। पेयजल की किल्लत और जल निगमों की उदासीनता के चलते सबमर्सिबल पंप लगवाने की होड मची हुयी है। चंद्रशेखर कृषि विश्वविद्यालय में सेवानिवृत्त कृषि अभियंता रामसजीवन उपाध्याय ने भूजल की गिरते स्तर के लिये अंधाधुंध शहरीकरण और तालाबों और पार्को में कब्जे को जिम्मेदार मानते हैं। इसके अलावा सरकारी और अधिक क्षेत्रफल के निजी इमारतों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को कडाई से लागू न कर पाने की वजह से वर्षा जल नदी नालों के जरिये बेकार होने की पूरी संभावना है।


कृषि विभाग के सूत्रों के अनुसार पिछले पांच सालों में मेरठ में भूजल स्तर में 91 सेमी की गिरावट दर्ज की गयी। गाजियाबाद में 79 सेमी,गौतमबुद्धनगर में 76 फीसदी,लखनऊ में 70 सेमी और वाराणसी में 68 सेमी प्रति वर्ष की दर से भूजल का स्तर खिसक रहा है। कमोवेश यही हाल ग्रामीण क्षेत्रों का है। 2010-11 में सूबे में सकल सिंचित क्षेत्रफल 196़ 68 लाख हेक्टेयर था। प्रदेश में अभी भी करीब 72 फीसदी सिंचाई नलकूपों से होती है जबकि सिंचाई के लिये दूसरा प्रचलित साधन नहरे हैं। 19 फीसद सिंचाई नहरों से और नौ फीसद तालाब,झील,पोखर और कुयें के जरिये होती है। सूत्रों ने बताया कि बागपत, गाजियाबाद, वाराणसी, मेरठ, हाथरस, मथुरा, सहारनपुर, बांदा, जालौन, जौनपुर और हमीरपुर में भूजल स्तर में भारी गिरावट हुई है। भूजल के बेरोकटोक दोहन और सूख रही झीलों और तालाबों को बचाने के लिए सरकार ने प्रभावी कदम उठाये है हालांकि इस प्रयास में निरंतरता बहुत जरूरी है। अधिकारियों का मानना है कि बेतरतीब विकास प्रतिमान और जल निकायों का पुनर्भरण नहीं होने से भूजल स्तर में तेजी से गिरावट हुई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों विधानसभा में कहा था कि सरकार इस मसले पर बेहद गंभीर है और डार्क जोन में भूजल के स्तर को बेहतर बनाने के लिये एक नीति के तहत काम किया जायेगा। उन्होने कहा “ हमने ग्रामीण क्षेत्रों में नये तालाब के निर्माण और शहरी इलाकों में वर्षा जल संचयन प्रणाली समेत कई योजनाये शुरू की हैं। इसके अलावा सरकार वृक्षारोपण और जल सरंक्षण के लिये शुरू किये गये अभियानों को प्रोत्साहित कर रही है। ” बुंदेलखंड की समीक्षा करते हुये पिछले दिनों मुख्यमंत्री कहा कि वर्षा जल के अधिक से अधिक संचयन के लिए बुन्देलखण्ड में चेकडैम और खेत तालाब योजना को प्राथमिकता से लागू किया जायेगा।चित्रकूटधाम मण्डल बांदा के विकास कार्यों की समीक्षा करते हुये श्री योगी ने कहा कि योजनाओं के सही क्रियान्वयन के लिए जनप्रतिनिधि एवं जनसहभागिता सुनिश्चित की जाये जिससे बुन्देलखण्ड क्षेत्र का पिछड़ा हुआ क्षेत्र भी विकास की मुख्य धारा में शामिल हो सकें। प्रदीप नरेन्द्र चौरसिया वार्ता

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