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मानव के व्यक्तित्व विकास, चरित्र- निर्माण एवं मानवीय मूल्यों की सशक्त वाहक होती है मातृभाषा :डॉ.चौरसिया

मानव के व्यक्तित्व विकास, चरित्र- निर्माण एवं मानवीय मूल्यों की सशक्त वाहक होती है मातृभाषा :डॉ.चौरसिया

दरभंगा, 11 अप्रैल (वार्ता) जाने-माने सामाजिक चिंतक एवं भाषाविद डॉ. आर एन चौरसिया ने कहा कि मानव की विकास प्रक्रिया में मातृभाषा का सर्वाधिक योगदान होता है, जो मानवीय भावनाओं को सहजता एवं पूर्णता से व्यक्त करने का एक बेहतरीन माध्यम है।

सिन्धी मातृभाषा दिवस के अवसर पर पूज्य सिंधी पंचायत, दरभंगा द्वारा आयोजित ‘व्यक्तित्व के विकास में मातृभाषा का योगदान’ विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. चौरसिया ने कहा की मातृभाषा का हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्व होता है, क्योंकि इसे हम मां का दूध पीते तथा उसकी गोद में खेलते हुए बिना किसी विशेष परिश्रम के स्वत: ही सीख जाते हैं। अपनी मातृभाषा से ही किसी व्यक्ति का संपूर्ण विकास संभव है। यह हमारे अस्तित्व से जुड़ी हुई होती है। उन्होंने कहा कि भारत में 19 हजार पांच सौ से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें करीब 2900 मातृभाषाएं विलुप्त होने के कगार पर है। पूरे विश्व में 14 दिन में कोई ना कोई एक भाषा विलुप्त हो रही है। उन्होंने लोगों का आह्वान किया कि वह मातृभाषा की संरक्षण एवं संवर्धन के लिए आगे आए तभी उनको विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज के ही दिन 10 अप्रैल, 1967 को 21वें संविधान संशोधन के द्वारा सिन्धी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। इस दिन को सिन्धी समाज पर्व के रूप में मनाता है।

डॉ. चौरसिया ने कहा कि सिन्धी मुख्यतः भारत के पश्चिमी हिस्से और सिन्ध प्रांत में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है। भारत में सिन्धी को मातृभाषा के रूप में बोलने वाले गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश तथा नई दिल्ली के साथ ही छिटपुट पूरे भारतवर्ष में रहते हैं, जिनकी संख्या 70 लाख से अधिक है।

विशिष्ट वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला प्रचारक रवि शंकर ने कहा कि मातृभाषा सहजता से ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ज्ञान को हस्तांतरित कर देती है। यह हमारे रगों में आसानी से रम जाती है। भारत भाषाओं की जननी है। 9 वर्ष तक के बच्चों की शिक्षा- दीक्षा सिर्फ मातृभाषा में ही संभव है। उन्होंने घरेलू वस्तुओं के नाम मातृभाषा में लिखकर स्टीकर के रूप में चिपकाने तथा आमंत्रण पत्र आदि को हिन्दी या अंग्रेजी के साथ ही मातृभाषा में भी लिखकर आदान-प्रदान करने का सुझाव दिया, ताकि मातृभाषाओं के विकास के साथ ही बच्चों के व्यक्तित्व का भी संपूर्ण विकास हो सके।

अध्यक्षीय संबोधन में जयकिशन लाल ने कहा कि सिन्धी मातृभाषा की रक्षा के लिए हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों से भी लड़ाइयां लड़ी थीं। जब सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई हुई तो अंग्रेजों को भी आश्चर्य हुआ कि यह 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता पूरी तरह आधुनिक शहरी रूप में थी। उन्होंने दुःख व्यक्त किया कि बंगाली, मराठी, तमिल आदि की तरह भारत में सिन्धियों का कोई अलग राज्य नहीं है। अतः हमें अपनी मातृभाषा सिन्धी की हर तरह से रक्षा करना आवश्यक है।संगोष्ठी को दिनेश गंगनानी एवं देव गाबरा ने भी संबोधित किया ।

पवन कुमार टेकचंदानी के संचालन में आयोजित संगोष्ठी में आगत अतिथियों का स्वागत पूज्य सिंधी पंचायत के मुखिया जगत लाल जुमनानी ने किया, जबकि राजकुमार मारीवाला ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

सं प्रेम

वार्ता

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