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बिहार में खोयी हुयी ‘सियासी जमीन’ पर ‘लाल झंडा’ लहराने के लिये बेताब हैं वामदल के पांच ‘सूरमा’

पटना, 03 अप्रैल (वार्ता) बिहार में आगामी लोकसभा चुनाव में इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस (इंडी गठबंधन) के घटक वाम दल के पांच ‘सूरमा’ करीब 25 साल से खोयी हुयी ‘सियासी जमीन’ पर ‘ लाल झंडा ’ लहराने के लिये बेताब है।
वर्ष1999 के बाद हुए लोकसभा चुनावो में बिहार से वामदलों का कोई प्रत्याशी संसद नहीं पहुंचा है। वर्ष1999 के लोकसभा चुनाव में वामदल में शामिल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने 09,मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने दो सीट ,और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) ने 23 सीट पर चुनाव लड़ा था। भागलपुर से माकपा प्रत्याशी सुबोध राय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभास चंद्र तिवारी को पराजित कर लोकसभा पहुंचे थे। इस चुनाव में भाकपा और भाकपा माले को कोई सीट नहीं मिली। माकपा की टिकट पर चुनाव जीतने वाले सुबोध राय अंतिम वामदल के सांसद थे। इसके बाद वर्ष 2004, 2009, 2014 और 2019 में भी वामदल का खाता बिहार में नहीं खुला।
बिहार लोकसभा चुनाव 2024 के लिए इंडी गठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है। सीटों में तालमेल के तहत कांग्रेस नौ, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) 26, और वाम दल पांच सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। वामदल में शामिल (भाकपा-माले) आरा, काराकाट और नालंदा, (भाकपा) बेगूसराय और (माकपा) खगड़िया सीट से चुनाव लड़ेगी।भाकपा माले ने आरा संसदीय क्षेत्र से भोजपुर जिले के तरारी विधानसभा से विधायक सुदामा प्रसाद, काराकाट से पूर्व विधायक राजा राम सिंह और नालंदा संसदीय क्षेत्र से पटना जिले के पालीगंज से विधायक संदीप सौरभ को अपना उम्मीदवार बनाये जाने का ऐलान किया। इसी तरह बेगूसराय सीट पर भाकपा ने बेगूसराय जिले की बछ़वाड़ा सीट से तीन बार जीते पूर्व विधायक अवधेश राय को पार्टी का उम्मीदवार बनाया है जबकि खगड़िय सीट से माकपा ने पूर्व विधायक योगेन्द्र सिंह के पुत्र और विभूतिपुर के विधायक अजय कुमार के भाई संजय कुमार चुनाव लड़ेंगे। संजय कुमार खगड़िया से माकपा के जिला सचिव हैं। संजय कुमार पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं।इस बार की चुनावी रणभूमि में यदि वामदल के योद्धा राजग घटबंधन में शामिल राजनेताओं को परास्त करने में सफल रहे तो तो वे 25 बाद बिहार में खोयी हुयी सियासी जमीन पर वामदल का ‘लाल झंडा’ बुलंद करने में सफल हो जायेंगे।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में सीटों में तालमेल के तहत राष्ट्रीय जनता दल को 20,कांग्रेस को नौ, उपेन्द्र कुश्वाहा की पार्टी ( राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को पांच, मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को तीन और जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) को तीन सीट मिली थी। राजद ने अपने कोटे से एक सीट आरा भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी- लेनिनवादी) को दी थी। भाकपा और माकपा
महागठबंधन से बाहर थी। भाकपा माले ने आरा के अलावा सीवान, काराकाट और जहानाबाद में अपने उम्मीदवार उतारे थे। भाकपा ने बेगूसराय और पूर्वी चंपारण में जबकि माकपा ने उजियारपुर में अपने प्रत्याश उतारे। वामदल के सात प्रत्याशी वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरे थे लेकिन बिहार की चालीस सीटों में किसी भी सीट पर वामदलों का खाता नहीं खुल पाया।
वर्ष 1952 में हुये पहले लोकसभा चुनाव में भाकपा ने दो सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन दोनों को हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1957 में हुये दूसरे लोकसभा चुनाव में भाकपा के 13 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे लेकिन सभी को पराजय का सामना करना पड़ा।1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार बिहार से वामदल का खाता खुला।पहली बार अविभाजित बिहार की जमशेदपुर लोकसभा सीट से भाकपा के उदयकर मिश्रा ने कांग्रेस प्रत्याशी एन.सी.मुखर्जी को पराजित कर चुनाव जीता। इस चुनाव में भाकपा ने बिहार से 16 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें जीत सिर्फ जमशेदपुर में ही हुयी।
वर्ष 1964 में ज्योति बसु, हरकिशन सिंह सुरजीत समेत अन्य नेताओं ने भाकपा से अलग होकर माकपा का गठन किया था। वर्ष 1967 में भाकपा ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें 05 सीट केसरिया, जयनगर ,बेगूसराय,पटना और जहानबाद पर उसने जीत हासिल की।वर्ष 1967 में माकपा ने बिहार में दो प्रत्याशी चुनावी रणभूमि में उतारे लेकिन दोनों को पराजय मिली। वर्ष 1971 में भाकपा के टिकट पर 17 सीट पर उम्मीदवार लड़े ,जिसमें पांच सीट केसरिया, जयनगर , जमुई (सु),पटना और जहानाबाद के प्रत्याशी लोकसभा पहुंचने में सफल हुये। वहीं माकपा ने चार सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन सभी को पराजय का सामना करना पड़ा।
वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद हुये छठे लोकसभा चुनाव में भाकपा ने 22 जबकि माकपा ने 02 उम्मीदवार उतारे, जिसमें सभी को पराजय मिली।इस चुनाव में उतरे कांग्रेस के सभी 54 उम्मीदवार हार गये। जनता पार्टी की लहर में बिहार की 54 सीट में भारतीय लोक दल (बीएलडी) को 52 सीट मिली। इस चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी ने बीएलडी के बैनर तले चुनाव लड़ा था। झारखंड पार्टी एवं निर्दलीय को एक-एक सीट पर सफलता मिली थी। वर्ष 1980 में भाकपा ने 14 सीट पर चुनाव लड़ा जिसमें उसे 04 सीट मोतिहारी, बलिया, नालंदा और पटना पर जीत मिली। इसी तरह माकपा ने तीन सीट पर चुनाव लड़ा लेकिन उसे किसी भी सीट पर कामयाबी हासिल नहीं हुयी। वर्ष 1984 में भाकपा ने 16 सीट पर चुनाव लड़ा जिसमें उसे 02 सीट नालंदा और जहानाबाद पर जीत हासिल हुयी। माकपा ने तीन सीट पर चुनाव लड़ा लेकिन उसे सभी सीट पर हार का सामना करना पड़ा।
वर्ष 1989 में भाकपा ने 12 सीट पर चुनाव लड़ा जिसमें उसे 04 सीट मधुबनी, बलिया, बक्सर और जहानबाद पर विजयश्री मिली। माकपा ने तीन सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन उसे नवादा (सु) सीट पर जीत हासिल हुयी। नवादा (सु) सीट से प्रेम प्रदीप ने जीत हासिल की। माकपा उम्मीदवार प्रेम प्रदीप ने भाजपा प्रत्याशी कामेश्वर पासवान को पराजित किया। कांग्रेस के कुंअर राम तीसरे नंबर पर रहे।नवादा (सु) बिहार में पहली सीट थी जहां माकपा प्रत्याशी ने जीत हासिल की।1989 के लोकसभा चुनाव में इंडियन पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) के बैनर तले आरा संसदीय सीट से रामेश्वर प्रसाद चुनाव जीते थे। भाकपा माले पहले आईपीएफ के बैनर तले चुनाव लड़ते रहा है। इस चुनाव में आईपीएफ ने 10 प्रत्याशी उतारे लेकिन उसे केवल आरा सीट पर जीत मिली। आरा संसदीय सीट पर रामेश्वर प्रसाद ने जनता दल के तुलसी सिंह को पराजित किया था। कांग्रेस के बलिराम भगत तीसरे नंबर पर रहे। दिग्गज वामंपथी नेता और मार्क्सवादी समन्वय समिति (एमसीसी के संस्थापक ए.के. राय ने वर्ष 1989 मे (मार्क्सिस्ट को-ऑर्डिनेशन) के टिकट पर धनबाद से चुनाव जीता। इससे पूर्व ए.के.राय ने वर्ष 1977 मे बतौर निर्दलीय धनबाद से चुनाव जीता था। आपातकाल के दौरान उनके नारे, मेरी राय, आपकी राय, सबकी राय-एके राय ने उन्हें जीत दिलाई। वर्ष 1980 में भी ए.के.राय ने बतौर निर्दलीय धनाबाद से जीत हासिल की।
वर्ष 1991 में भाकपा ने 08 सीट पर चुनाव लड़ा जिसमें सभी पर उसे जीत मिली। माकपा ने एक सीट पर चुनाव लड़ा और उसके प्रत्याशी भी जीते। इस चुनाव में आईपीएफ ने 17 प्रत्याशी उतारे लेकिन उसे किसी भी सीट पर कामयाबी हासिल नहीं हुयी। लोकसभा चुनावों में वर्ष 1991 वामदल सबसे शानदार प्रदर्शन रहा, तब पार्टी ने नौ सीटें जीती थी। भाकपा ने मोतिहारी ,मधुबनी, बलिया, मुंगेर, नालंदा, बक्सर,जहानाबाद और हजारीबाग जबकि नवादा (सु) से
माकपा के प्रत्याश विजयी हुये।
वर्ष 1996 में भाकपा ने सात सीट पर चुनाव लड़ा जिसमें उसे तीन सीट मधुबनी,बलिया और जहानाबाद पर जीत मिली। माकपा ने तीन सीट पर अपने उम्मीदवार खड़े किये लेकिन उसके सभी प्रत्याशी पराजित हो गये। वर्ष 1996 से भाकपा माले ने बिहार में अपने उम्मीदवार उतारने शुरू किये। भाकपा माले ने इस चुनाव में 21 प्रत्याशी उतारे लेकिन सभी को निराशा का सामना करना पड़ा।वर्ष 1998 में भाकपा ने 15, माकपा ने 04 और भाकपा माले ने 16 प्रत्याशी चुनावी रणभूमि में उतारे लेकिन सभी को पराजय का सामना करना पड़ा।वर्ष 2004 में भाकपा ने 06, माकपा ने 01 और भाकपा माले ने 21 प्रत्याशी चुनावी रणभूमि मे उतारे लेकिन उसे किसी सीट पर कामयाबी नहीं मिली। वर्ष 2009 में भाकपा ने 07, माकपा ने 05 और भाकपा माले ने 20 प्रत्याशी चुनावी समर में उतारे लेकिन उसे किसी सीट पर कामयाबी नहीं मिली।वर्ष 2014 के चुनाव में भी वामदल के सभी प्रत्याशी को बिहार के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में भाकपा के दो, माकपा के चार और भाकपा माले के 22 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे थे।
एक दौर था जब बिहार की कई संसदीय सीटों पर वामदल का लाल झंडा बुलंद था। वक्त बदला। हालात बदले। मतदाताओं का मन और मूड भी बदल गया। वामदल की उपस्थिति बिहार के हर इलाके में थी। भाकपा के प्रत्याशी कई सीट पर मुकाबले में रहते थे। भाकपा के विभाजन और कुछ राजनीतिक समीकरण में बदलाव के बाद वामदल की स्थिति कमजोर हुयी। बिहार में राजद के उदय से पहले नब्बे के दशक के अंत तक बिहार में वामपंथी दलों की मौजूदगी सड़क से लेकर सदन तक दिखाई देती थी। रामेश्वर प्रसाद सिंह,कमला मिश्रा मधुकर,भागेन्द्र झा,राम अवतार शास्त्री,विजय कुमार यादव,सूर्य नारायण सिंह, तेज नारायाण सिंह,चंद्रशेखर सिंह ,चतुरानन मिश्रा, शत्रुध्न प्रसाद सिंह जैसे वामपंथी विचार के कई राजनेताओं की वजह से बिहार में वाम दल मजबूत स्थिति में था, लेकिन राजद प्रमुख लालू प्रसाद के उभार में वामदल अपनी सियासी जमीन गंवा बैठे। वाम दलों के वोटर राजद में शिफ्ट हो गए। बाद के दिनों में लालू प्रसाद यादव ने वामदल को तगड़ी चोट दी।इसके बाद नीतीश कुमार और रामविलास पासवान ने भी अतिपिछड़े, पिछड़े और दलित तमाम जातियों की गोलबंदी कर वामपंथी दलों की बची-खुची जमीन अपने नाम कर ली। बिहार में कई इलाके वामदल का कभी गढ़ रहे थे। समय के साथ वामदल का जनाधार बिहार में घटता गया। इस बार की सियासी फिजां अलग है। महागठबंधन में शामिल होने से तीनों वामदलों को संजीवनी मिली है। वामदल, राजद और कांग्रेस एक साथ एकजुट हैं। वामदल को उम्मीद है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी जरूरत जीतेगी। इस चुनावी जंग में यदि वामदल सफल रहे तो 25 साल बाद बिहार की सियासी जमीन पर वामदल का ‘लाल झंडा’ बुलंद हो सकता है।
प्रेम सूरज
वार्ता
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