भारतPosted at: Nov 13 2018 6:16PM कांग्रेस ने सरकार से पूछा-ऑफसेट नीति में पूर्व प्रभाव से क्यों किया संशोधन
नयी दिल्ली 13 नवम्बर (वार्ता) कांग्रेस ने आज कहा कि राफेल सौदे के बारे में सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर हलफनामे में तथ्यों की जानकारी देने के बजाय छिपाने की कोशिश की गयी है और सरकार को यह बताना चाहिए कि आफॅसेट साझीदार बनाने के बारे में रक्षा खरीद प्रक्रिया 2013 में पूर्व प्रभाव से संशोधन क्यों किया गया।
कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने यहां पार्टी की नियमित प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि इस सौदे को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता को मिली सरकार के हलफनामे की प्रति को पढने से ऐसा लगता है कि इसमें जानकारी देने के बजाय तथ्यों को छिपाने की कोशिश की गयी है। इससे कई सवाल उठते हैं लेकिन देश सरकार से पांच बुनियादी सवालों का जवाब चाहता है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने 5 अगस्त 2015 को रक्षा खरीद प्रक्रिया 2013 में पूर्व प्रभाव से संशोधन कर रक्षा सौदों पर हस्ताक्षर से पहले विक्रेता द्वारा ऑफसेट साझीदार की सूची रक्षा मंत्रालय को देने की बाध्यता खत्म कर दी। पहले की नीति के अनुसार रक्षा मंत्रालय ऑफसेट कंपनी का मूल्यांकन कर सौदे पर हस्ताक्षर से पहले इस सूची को मंजूरी देता था। लेकिन संशोधन के बाद विक्रेता रक्षा मंत्रालय को अपने ऑफसेट साझीदार की जानकारी सौदे पर हस्ताक्षर के बाद देगा। उन्होंने कहा कि सरकार यह बताये कि यह संशोधन पूर्व प्रभाव से क्यों किया गया? इसके पीछे क्या उद्देश्य था?
प्रवक्ता ने कहा कि हलफनामे में कहा गया है कि 126 बहुउद्देशीय राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद का संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार (संप्रग) का सौदा और मोदी सरकार का 36 राफेल विमान की खरीद का सौदा अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा कि यदि यह सही है तो सरकार ने पहले सौदे को रद्द करने से तीन महीने पूर्व दूसरे सौदे की घोषणा कैसे कर दी। क्या दूसरे सौदे के लिए सभी नियम प्रक्रियाओं को अपनाया गया।
संजीव उनियाल
जारी वार्ता