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लोकरुचि


इटावा में कालिका देवी मंदिर का ऐतिहासिक तालाब हुआ प्रदूषित

इटावा में कालिका देवी मंदिर का ऐतिहासिक तालाब हुआ प्रदूषित

इटावा, 19 फरवरी(वार्ता) उत्तर प्रदेश मे इटावा के लखना कस्बे के ऐतिहासिक कालिका देवी मंदिर की आस्था से जुड़ा तालाब अब रखरखाव के अभाव में प्रदूषित हो गया है।

एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशभर में स्वच्छता अभियान चलाया है, वही दूसरी ओर लोगों की आस्था से जुड़े इस तालाब की ओर अभी तक किसी की नजर नही गयी है। तालाब का उचित रखरखाव नहीं होने के कारण गंदगी से पटा पड़ा है। पानी पर काई जम चुकी तथा बदबू से श्रदालुओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है ।

ऐतिहासिक कालिका देवी मंदिर के अस्तित्व में आने के साथ ही यह पक्का तालाब भी जादुई करिश्मे से वजूद में आया था। यह तालाब लगभग डेढ़ सौ सालों से हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों के लिए आस्था का केन्द्र रहा है। इस तालाब का पानी कभी नहीं सूखता। लोगों की मान्यता रही है कि तालाब के पानी में इतनी तासीर है कि त्वचा संबंधित कई रोग केवल पानी से धो देने पर ही ठीक हो जाते हैं। इसलिए आज भी दूर-दूर से लोग अपनी बीमारियों के इलाज के लिए यहां आते हैं।

घनी बस्ती और अतिक्रमण के चलते ऐतिहासिक तालाब का अस्तित्व भी समाप्त होने लगा है। इस तालाब का जुड़ाव भोगनीपुर नहर से था। नाले के रास्ते से ही भोगनीपुर नहर का पानी तालाब में आया करता था,लेकिन अतिक्रमणकारियों ने नाले पर कब्जा करके उसे पाट दिया।

            भक्तो का मानना है कि कालिका देवी की पूजन अर्चन से पूर्व इस तालाब में स्नान या आचमन करना जरूरी है । तभी कालिका देवी अपने भक्तों की मन्नत पूरी करती है। देवी भक्त तालाब में स्नान और जल से आचमन करके ही देवी माता की पूजा करते है । देवी भक्त तालाब के पानी को गंगा जल की तरह पवित्र मानकर बोतलों में भर कर अपने साथ भी ले जाते है ।

कालिका देवी मेला प्रबंधक लखना राज रविशंकर शुक्ला ने बताया कि समय-समय पर तालाब की सफाई कराई जाती है, लेकिन यह गंदगी तालाब के आसपास रहने वाले लोगो ने फैलाई है जिससे तालाब का पानी प्रदूषित हो रहा है।

लखना नगर पंचायत के अधिशाषी अधिकारी शेर बहादुर का कहना है कि ऐतिहासिक तालाब पर लखना राज का स्वामित्व है। इसलिए तालाब की गंदगी की सफाई के लिए तालाब स्वामी को जल्द ही नगर पंचायत नोटिस देगी।

चंबल क्षेत्र मे स्थापित कालिका देवी का यह एक ऐसा मंदिर है जिसका काफी महत्व माना जाता है । यहॉ पर दलित पुजारी का होना अपने आप मे अहम बात मानी जा रही है। करीब चार पीढियों से एक ही दलित परिवार के सदस्य इस मंदिर के महंत की जिम्मेदारी संभाले हुए है। इस कारण यह मंदिर देशभर में चर्चा में भी रहा है1

कालिका देवी का मंदिर हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के लिए अनूठी मिसाल है। मां काली के इस एेतिहासिक मंदिर में इबादत और पूजा का ऐसा संगम देखने को मिलता है जो शायद ही कहीं देखने को मिले। कालिका देवी के इस मंदिर के अंदर ही सैयद बाबा की मजार स्थित है। मान्यता है कि यहां मां भक्तों की मुराद तभी पूरी करती हैं जब सैयद बाबा की मजार की इबादत भी की जाए। मंदिर में हिंदू-मुस्लिम एक भाव से दर्शन करने आते हैं और नवरात्र के दौरान यहां पूरे देश से भक्त दर्शनों के लिए आते हैं।

इस मंदिर का निर्माण राजा राव जसवंत ने करवाया था। राजा राव यमुना नदी पार कंधेसी धार में स्थापित आदिशक्ति कालिका देवी के भक्त थे। वह रोजाना माता के दर्शन के लिए नदी पार करके जाते थे। आज भी यहां का आंगन गोबर से लीपा जाता है और दर्शन परिसर में कोई प्रतिमा मौजूद नहीं है।

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