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मंहगाई की मार से अछूते नहीं है शिल्पकार

मंहगाई की मार से अछूते नहीं है शिल्पकार

प्रयागराज, 31 अगस्त (वार्ता) विघ्नविनाशक गणपति बप्पा की शिल्पकारों पर मंहगाई की मार कुछ अधिक ही पड़ रही है बावजूद इसके खरीददार मूर्ति की गुणवत्ता नहीं बल्कि मूल्यों को देखकर खरीद रहे है।


      शिल्पकारों का कहना है कि मूर्ति बनाने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले निर्माण सामग्रियों मिट्टी, बांस, पुआल कपड़ा और लकड़ी का पटरा में पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 25 से 30 प्रतिशत के दाम में बढोत्तरी हुई है जिसका सीधा असर व्यवसाय पर पड़ रहा है और मूर्तियों की बिक्री पर ही उनका लाभ-हानि तय होता है।

      पिछले साल जो बांस 100 से 150 रुपए में मिल जाता था वही बांस इस बार 150 से 200 रुपए के बीच में मिल रहा है। इसके अलावा कॉटन का पुरानी धोती 20 से 30 रुपए में मिल जाती थी अब इसकी कीमत 40 से 50 रुपए की हो गई है। लकड़ी पटरे का बेस बनाकर मूर्ति बनाते हैं उसका मूल्य 50 रुपए के स्थान पर 75 से 80 रुपए के बीच मिल रहा है। इसके अलावा मूर्ति पर लगने वाले रंग के मूल्यों में वृद्धि हुई है।

      शिल्पकारों ने बताया कि किसी भी प्रतिमा का निर्माण करने के लिए मिट्टी पहलीे आवश्यकता है। बीते साल एक ट्राली मिट्टी दो से ढाई हजार रुपए में मिल जाती थी अब उसका मूल्य भी बढ़कर चार हजार से 4500 रूपया हो गया है। एक ट्राली में करीब 30 बोरी मिट्टी आती है।

कटरा निवासी शिल्पकार सोहन लाल ने बताया कि गणेश प्रतिमा बनाने के लिए काली चिकनी और बालू की रेता वाली मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। काली मिट्टी की खासियत होती है कि इसमें पानी अंदर नहीं जा पाता है। इस मिट्टी का डोंगा भी प्रतिमा के बनाने में प्रयोग किया जाता है। जहां पर जोड़ होता है वहां पर कॉटन का कपड़ा इसी डोंगे में भिगोकर लगा दिया जाता है ताकि लाने ले जाने पर जोड़ टूटने न पाए। काली मिट्टी में भूसा मिलाते हैं ताकि क्रैक न आए और प्रतिमा में हाथ पैर का आकार देने के लिए पुआल का प्रयोग करते हैं। बालू की रेता वाली मिट्टी लगाने से प्रतिमा चिटकती नहीं है।

        उन्होने बताया कि मंहगाई के कारण गणेश मूर्ति को बनाने में प्रति फीट 1500 रुपए का खर्च आ रहा है। दस फिट की मूर्ति करीब 10-12 हजार रुपए की लागत आती है। लेकिन ग्राहक इनके लागत के मूल्य बराबर भी दाम देने में माेल-भाव करता है। उन्होने बताया कि 10-12 हजार रूपये की मूर्ति पर दो से ढाई हजार रूपये ही मुश्किल से मिल पाते हैं।

        शहर की कई पूजा कमेटियों की ओर से अलग-अलग आकार, प्रकार से मूर्तियां तैयार करायी जा रही हैं। महर्षि भरद्वाज पार्क, रामबाग सेवा समिति परिसर और बाई का बाग में शिल्पकारों की ओर से कलात्मक मूर्तियां बनाई जा रही हैं। कमेटियों के आर्डर के अनुसार मूर्तियों में टैग लगाकर रंग-रोगन किया जा रहा है।

चन्द्रशेखर आजाद पार्क के पीछे रहने वाले शिल्पकार मनीष अग्रवाल ने बताया कि गणेश प्रतिमा पर घातक रंगों का प्रयोग नहीं करते। उन्होने कहा कि आजकल मूर्तियों की आभा को निखारने के लिए चटख और घातक रंगों के प्रयोग से भी लोग पीछे नहीं हट रहे हैं।  “मैं हमेशा अपनी स्थिति के लिए पीओपी और रंगों या वार्निश का उपयोग करता हूं।”

       गौरतलब है कि गणेश जन्मोत्सव दो सितंबर से श्रद्धा, उल्लास के साथ शुरू होकर सामाजिक और धार्मिक संगठनों की ओर से कहीं पांच एवं दस दिनों तक मनाया जाता है। इस अवसर पर धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम की आयोजित किए जाएंगे। विघ्नहर्ता गणपति बप्पा की महाराष्ट्र में इन दिनो बहुत धूम रहती है।

       आवास विकास योजना-3 झूंसी के श्रीगणेश पूजा पार्क में सिद्धि विनायक के पूजन महोत्सव का आगाज हो गया। इसके अलावा शहर में सार्वजनिक गणेश महोत्सव समिति बैरहना, बाल एकता कमेटी नयापुरा करेली, सिद्धि विनायक

सांस्कृतिक समिति प्रीतम नगर, भारतीय वैदिक अनुसंधान ट्रस्ट दारागंज और श्रीगणेश महोत्सव कमेटी कटरा की ओर से गणपति की स्थापना की गई।

दिनेश प्रदीप

वार्ता

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