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लोकरुचि


कडी सुरक्षा व्यवस्था के बीच एक माह तक चलने वाले देवीपाटन मेले का आगाज

बलरामपुर 30 मार्च (वार्ता ) देश-विदेश के श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र मां पाटेश्वरी देवी धाम में कडी सुरक्षा के बीच एक मास तक चलने वाला मेला शुरू हो गया। योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन जाने से यहां के लोग काफी उत्साहित हैं क्योकि वह गोरखपुर के गोरक्ष पीठ के साथ ही देवीपाटन के भी पीठाधीश्वर हैं। श्रद्धालुओं का इक्यावन शक्तिपीठों मे एक आदि शक्ति माँ पाटेश्वरी देवी का दर्शन करने के लिए आज दूसरे दिन तांता लगा हुआ है। मेला सुरक्षा प्रभारी बी डी यादव के अनुसार एक मास तक चलने वाले मेले मे सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किये गये है। मंदिर में मां का दर्शन करने के लिए देश-विदेश से बडी संख्या में यहां भक्त पहुंचते हैं। भक्तों को तुलसीपुर स्टेशन आसानी से पहुँचने के लिये रेल प्रशासन ने तीन जोड़ी मेला स्पेशल रेलगाडियों का अतिरिक्त संचालन गोंडा -गोरखपुर रेल प्रखंड पर किया है। राज्य सरकार ने भी श्रद्धालुओं की बडी भीड को देखते हुए अतिरिक्त बसों का भी संचालन किया जा रहा है।


                देवी पाटन मंदिर नेपाल सीमा से सटा होने के कारण अत्यंत संवेदनशील और महत्वपूर्ण है। आतंकियों की टेढ़ी नज़र के मद्देनजर मंदिर परिसर को विशेष सुरक्षाव्यूह मे रखा गया है। यहाँ एसएसबी, नागरिक पुलिस, पीएसी, होमगार्ड, महिला पुलिस के जवान एवं अन्य सुरक्षा एजेंसियां तैनात हैं। मेटल डिटेक्टर, बम निरोधक दस्ता, एंटी रोमियो स्क्वाड, अग्निशमन दल ,सीसीटीवी कैमरे, स्वानदल , खुफिया तंत्र और अन्य सुरक्षा जवानो को चप्पे चप्पे पर तैनात किया गया है। मेले मे आ रहे देशी विदेशी श्रद्धालु मुण्डन ,कनछेदन, नकछेदन, विवाहरस्म, नामकरण संस्कार और अन्य रस्म- रिवाजों को हिंदू वैदिक रीति से करा रहे हैं। नवरात्रि के दिनो मे विशाल प्रसाद वितरण और भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। मेले मे महिलाएँ पुरुष और बच्चे सर्कस ,झूला और तमाम प्रकार के श्रृंगार सामग्रियों से सजी दुकानों से खूब जमकर खरीददारी कर रहे है। देवीपाटन मंदिर उत्तर प्रदेश मे बलरामपुर जिले के भारत-नेपाल सीमा से सटे तुलसीपुर तहसील क्षेत्र के पाटन गांव मे सिरिया नदी के तट पर स्थित है। देवी पाटन मंदिर मे मुख्य रुप से माँ पाटेश्वरी की पुष्प, नारियल, चुनरी, लौंग, इलायची, कपूर एवं अन्य पूजन सामग्रियां चढाकर पूजा अर्चना की जाती है। दूर दराज से आये अधिकांश देवीभक्त यहाँ स्थित सूर्य कुंड मे स्नान कर पेट पलनिया (लेटकर) चलकर माँ के दर्शन करते हैं।


             मंदिर के महन्त योगी मिथिलेश नाथ ने बताया कि मान्यताओं के अनुसार पिता दक्ष प्रजापति के यहाँ आयोजित बड़े अनुष्ठान मे अपने पति इष्टदेव देवाधिदेव महादेव को न्यौता और स्थान न दिये जाने से क्षुब्ध माँ जगदम्बा ने स्वयं को अपमानित महसूस करते हुए अग्नि को भेंट कर सती कर लिया था। माता के सती होने से आक्रोशित महादेव अत्यंत दुखी हुये। वह सती के शव को कंधे पर रखकर तांडव करने लगे। शिव तांडव से धरती थर्राने लगी और संसार मे व्यवधान उत्पन्न होने लगा। संसार को विनाश से बचाने के लिये भगवान विष्णु ने सती के अंगो को सुदर्शन चक्र से खण्डित कर दिया। जिन इक्यावन स्थानों पर माता के अंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ माने गये। पाटन गांव मे माँ जगदम्बा का बांया स्कंद पाटम्बर समेत गिरा तभी से इसी शक्तिपीठ को माँ पाटेश्वरी देवी पाटन मंदिर के नाम से जाना जाता है। नव दुर्गाओं में माँ शैलपुत्री, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कालरात्रि, महागौरी, चंद्रघंटा, सिद्धदात्री, ब्रह्मचारिणी और कात्यायनी की प्रतिमायें मंदिर मे स्थापित हैं।


         मंदिर मे स्थित गर्भगृह सुरंग पर माँ की प्रतिमा विद्यमान है। यहाँ कई रत्नजडित छतर हैं। ताम्रपत्र पर दुर्गा सप्तशती अंकित है। यहाँ प्रमुख रुप से रोट का प्रसाद चढ़ाया जाता है। महन्त योगी मिथिलेश नाथ ने बताया कि नेपाल के दाँग चौधड के राजकुंवर रतन परीक्षक ने देवी पाटन की कड़ी उपासना की। उनकी साधना से प्रसन्न होकर माँ पटेश्वरी ने बाबा रतन परीक्षक को आशीर्वाद दिया। तभी से उन्हे बाबा रतननाथ के नाम से जाना जाने लगा। रतननाथ ने नाथ सम्प्रदाय की स्थापना कर अफगानिस्तान, नेपाल और कई देशों मे इसका प्रचार प्रसार किया। देवी पाटन मंदिर परिसर मे बाबा पीर रतननाथ का दरीचा स्थित है। नवरात्रि की पंचमी तिथि को नेपाल के दाँग चौधड से पीर बाबा की भव्य पद शोभा यात्रा यहाँ आती है। महंत ने बताया कि पंचमी से अगले तीन दिनो तक मंदिर मे बिना घंटा घड़ियाल बजाये बाबा की पूजा-अर्चना विशेष रुप से नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी करते हैं। उसके बाद पुन: अपने गंतव्य स्थान पर वापस ले जाकर उन्हे दाँग मे स्थापित कर दिया जाता है।


                

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