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लोकरुचि


मथुरा में बंजारा समाज के संत की मूर्ति स्थापना

मथुरा, 17 जून (वार्ता) बंजारा समाज के उत्तर भारत के मशहूर एवं सम्मानित संत ,उदासीन आश्रम जयसिंहपुरा के ब्रह्मलीन संत बाबा चन्द्रमादास की उनके अनुयायियों द्वारा बाबे दयाल की तपस्थली क्षेत्र में 18 जून को बाबा लक्खी शाह बंजारा की मूर्ति स्थापित की जाएगी। महाराष्ट्र के पूर्व सांसद एवं विधायक हरिभाऊ राठोड ने आज यहां बताया कि उदासीन आश्रम जयसिंहपुरा के ब्रह्मलीन संत बाबा चन्द्रमादास गत दो जून को गोलोकवासी हुए थे। 18 जून को देश के कोने-कोने से मथुरा आ रहे बंजारा समाज के बाबा के हजारों अनुयायियों एवं समाज के संतो की उपस्थिति में उदासीन आश्रम के नये महंत की ताजपोशी की जाएगी। उन्होंने कहा कि बंजारा समाज के अतिप्रतिष्ठित संत ब्रह्मलीन बाबा चन्द्रमादास अपने जीवनकाल में ही बाबा लक्खी शाह बंजारा की प्रतिमा उदासीन सम्प्रदाय के महान संत बाबे दयाल की जयसिंहपुरा स्थित तपस्थली क्षेत्र में लगवाना चाहते थे किंतु समय से मूर्ति न बनने के कारण वह नही लगाई जा सकी थी। इसलिए इस महान संत की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए ही वह दिन चुना गया जब आश्रम की गद्दी किसी अन्य को सौंपी जानी है।


                        श्री राठोड ने बताया कि हाल में ही उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए बाबे दयाल की तपस्थली के जीर्णोद्धार करने का आदेश दिया था और बाबा को भेंट स्वरूप एक लाख रुपये की नगद राशि भेंट की थी। इस राशि को बाबा ने वहां मौजूद उन फरियादियों को देकर चले आए थे जो कई दिन से मुख्यमंत्री से मिलने का प्रयास कर रहे थे लेकिन उनकी मुलाकात नही हो पा रही थी। उन्होंने बताया कि बाबा के त्याग की इस प्रकार की अनेकों घटनाएं हैं। वे इतने सिद्ध संत थे कि जिसे उनका आशीर्वाद मिल जाता उसका जीवन ही बदल जाता था। कार्यक्रम में भाग लेने आए हाथरस निवासी सत्य प्रकाश गौतम ने बताया कि बाबा चन्द्रमादास की परोपकार की भावना के कारण ही उनके अनुयायी हिंदुओं की विभिन्न जातियों, मुसलमानो, सिख एवं ईसाइयों में हैं, यदि यह कहा जाय कि बाबा राष्ट्रीय एकता की मिशाल थे तो अतिशयोक्ति न होगी। विधायक राठोड़ ने बताया कि जब औरंगजेब ने मशहूर सिखों के नौवें गुरू तेग बहादुर का सिर कलम करने का प्रयास दिल्ली के चांदनी चौक में किया था तो बाबा लक्खीशाह बंजारा उनके पार्थिव शरीर को उनसे छीनकर अपनी कुटिया में ले आए थे तथा उसके ऊपर सूखी मेवा आदि रखकर उनके पार्थिव शरीर को अग्नि को समर्पित कर दिया था जिससे औरंगजेब के मंसूबों पर पानी फिर गया था।


                               उदासीन आश्रम जयसिंहपुरा में मौजूद बंजारा समाज के संत गोपाल चैतन्य जी महाराज ने बताया कि बहुत समय पहलें बंजारा समाज के हाथीराम बाबा तिरूपति बाला जी मंदिर में पुजारी थे। वे भगवत सेवा के प्रति इतने समर्पित थे कि भगवान के साथ चौसर तक खेलते थे। कहा जाता है कि एक बार जब वह चौसर के खेल में हार गए तो उन्होंने सोने का मुकुट हार के बदले में दिया था। उस समय मंदिर से जुड़े लोगों ने हाथीराम बाबा पर शक किया और यह आरोप लगाया कि उन्होंने यह मुकुट कहीं से चुराया है। चोरी के आरोप में उस समय के राजा ने उन्हें जेल में डाल दिया था। उन्होंने बताया कि जब स्वप्न में राजा को पता चला कि जिसे जेल में डाला गया वह सिद्ध संत हैं तो उन्होंने परीक्षा लेने के लिए कई टन गन्ना जेल के बाहर डलवा दिया और हाथीराम बाबा से उसे समाप्त करने को कहा। हाथीराम बाबा हाथी बनकर कुछ ही क्षणों में गन्ने को खा गए तो राजा उनके चरणों में पड़ गया और उसने 3000 एकड़ भूमि दान में दी जिस पर हाथीराम बाबा मठ बनाया गया है। आज भी जब तिरूपति बाला जी मंदिर के विस्तार के लिए भूमि की आवश्यकता होती है तो इसी मठ से भूमि दी जाती है। इस कार्यक्रम में नागपुर से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के संजय जोशी, उत्तर भारत के उदासीन सम्प्रदाय के संत पंचायती बड़ा अखाड़ा वृन्दावन के स्वामी शिवानन्द, उदासीन आश्रम इटावा के महंत गणेशदास, उदासीन आश्रम हरिद्वार के महंत जयन्द्र मुनि, कृाष्णि आश्रम रमणरेती के कृाष्णि गुरूशरणानन्द जी महाराज, स्वामी गोविन्दानन्द , महंत श्यामदास, स्वामी घनश्यामदास आदि भाग लेने के लिए आ रहे हैं।

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