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देश की 10 फीसदी आबादी क्रॉनिक किडनी रोग से प्रभावित: डॉ पुरोहित

जालंधर 07 मार्च (वार्ता) एसोसिएशन ऑफ स्टडीज फॉर किडनी केयर के प्रधान अन्वेषक
डॉ नरेश पुरोहित ने गुरुवार को कहा कि किडनी रोग के बारे में जागरूकता की कमी के कारण देश में हर साल दो लाख लोगों की मौत हो जाती है।
नौ मार्च को विश्व किडनी दिवस से पहले इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुये, प्रसिद्ध महामारी विशेषज्ञ डॉ. पुरोहित ने अमृतसर स्थित श्री गुरु राम दास इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च द्वारा ‘गुर्दे की बीमारियों के खिलाफ लड़ाई’ विषय पर आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करते हुये कहा कि भारत की 10 प्रतिशत आबादी क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) से प्रभावित है और यह जल्द ही भारत में मृत्यु का 5वां प्रमुख कारण हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह सरकारों के साथ-साथ चिकित्सकों की भी जिम्मेदारी है कि
वे उन लोगों को जागरूकता, सहायता और आश्वासन प्रदान करें जो किडनी रोग से पीड़ित
हैं, ताकि जीवन में आशा लाई जा सके।
डॉ पुरोहित ने बताया कि किडनी हमारे शरीर में अद्भुत अंग हैं, प्रत्येक किडनी में 10 लाख माइक्रोफिल्टर होते हैं - इसलिये, यह जरूरी है कि हम किडनी के अच्छे स्वास्थ्य को बनाये रखें। गुर्दे शरीर के तरल पदार्थों में परिवर्तनों की निरंतर निगरानी और समायोजन करके होमियोस्टैसिस/ संतुलन बनाये रखते हैं। वे पानी और नमक की मात्रा को बनाये रखते हैं, मूत्र में अशुद्धियों को दूर करते हैं, और हीमोग्लोबिन के स्तर, हड्डियों के स्वास्थ्य और समग्र प्रतिरक्षा को भी बनाये रखते हैं।
डॉ पुरोहित ने चेताया , “जैसे-जैसे किडनी कमजोर होती है, उत्सर्जन उत्पाद शरीर में
जमा होने लगते हैं और विभिन्न अंगों को प्रभावित करना शुरू कर देते हैं। उच्च रक्तचाप , गुर्दे की पथरी, हर्बल उत्पाद और दर्द निवारक जैसी दवायें और उच्च शर्करा का स्तर
किडनी को नुकसान पहुंचाने वाले सबसे आम कारण हैं। किडनी खराब होने के अन्य
कारण आनुवांशिक, ऑटोइम्यून, प्रोस्टेट जैसी मूत्र बहिर्वाह समस्यायें हैं। उन्होंने कहा,
“ किडनी की बीमारी का आमतौर पर पहले और दूसरे चरण में पता नहीं चल पाता है, क्योंकि इसमें कोई लक्षण नहीं होते हैं। क्रॉनिक किडनी रोग (सीकेडी) से ग्रस्त व्यक्तियों
की नियमित जांच से शुरुआती चरणों को पहचाना जा सकता है। बाद के चरणों में, रोगियों
में कम ऊर्जा स्तर, कम भूख, मतली, उल्टी और नियमित काम करते समय सांस लेने में तकलीफ और प्री-डायलिसिस चरणों में सांस की अत्यधिक कमी, दौरे, परिवर्तित सेंसरियम, और झटके जैसे लक्षण विकसित हो सकते हैं। ”
सेमिनार में विशेषज्ञों ने बताया कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह, अन्य अंग विफलता और ऑटोइम्यून रोग जैसी बीमारियां सीधे तौर पर किडनी को प्रभावित कर सकती हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन बीमारियों को नियंत्रण में रखना सबसे महत्वपूर्ण है। इन बीमारियों की नियमित जांच और दवाओं के उपयोग से किडनी पर पड़ने वाले उनके दुष्प्रभावों को रोकने में मदद मिल सकती है।
ठाकुर.श्रवण
वार्ता
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