राज्य » राजस्थानPosted at: Mar 31 2021 4:29PM राजस्थान दिवस पर प्रदर्शनी एवं संगोष्ठी का आयोजनजैसलमेर, 31 मार्च (वार्ता) राज्य के सीमांत जैसलमेर में राजस्थान दिवस पर जिला प्रशासन तथा पर्यटन विभाग की ओर से प्रदर्शनी एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम मंगलवार रात सम्पन्न हो गए। इस दौरान राजस्थान की लोक कला, संस्कृति और पर्यटन विषयों पर केन्द्रित बहुरंगी चित्रमय प्रदर्शनी लगाई गई तथा संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इसमें लोेक कला, संस्कृति, साहित्य और पर्यटन आदि क्षेत्रों से जुड़े विशेषज्ञों एवं प्रबुद्धजनों, लोक कलाकारों, पर्यटन प्रेमियों, होटल, रिसोर्ट एवं पर्यटन जगत से संबद्ध व्यवसायियों एवं संस्थाओं के प्रतिनिधियों, जिलाधिकारियों आदि ने हिस्सा लिया। संगोष्ठी में सहायक निदेशक (लोक सेवाएं) अशोक कुमार, जाने-माने इतिहासविद् एवं साहित्यकार नन्दकिशोर शर्मा, मशहूर लोक संस्कृतिविद् एवं लेखक लक्ष्मीनारायण खत्री, महिला अधिकारिता विभाग के उप निदेशक अशोक कुमार गोयल, पर्यटन गाईड नरेन्द्र छंगाणी आदि ने राजस्थान और जैसलमेर के इतिहास, कला-संस्कृति और साहित्य की परंपराओं, पर्यटन विकास आदि पर विचार रखे और समन्वित प्रयासों को तेज करने पर बल दिया। इस अवसर पर सम वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष के.के. व्यास, हैण्डीक्राफ्ट्स प्रमोटर एवं जयपुरी सामान ऑनलाईन बिजनैस ग्रुप की सीईओ मनीषा पाण्डेय, लोक कलाकार अजीज खां मोकला, सलीम खां, घेवर खां सहित लोक कलाकारों तथा गणमान्य नागरिकों ने शिरकत की। ख्यातनाम इतिहासकार एवं वयोवृद्ध लोक संस्कृतिमर्मज्ञ नन्दकिशोर शर्मा ने राजस्थान के गठन और जैसलमेर के बहुआयामी इतिहास, संस्कृति और क्रमिक पर्यटन विकास पर विस्तार से चर्चा की और कई ऎतिहासिक महत्व के रहस्यों से रूबरू कराते हुए बताया कि 1200 वर्ष पूर्व तनोट एवं देरावल में विकसित हुई भाईपा संस्कृति बनाम भाटी का राज की संस्कृति आज भी जैसलमेर में जीवित है, जिसको लोग सिन्धु घाटी हडप्पन संस्कृति कहते हैं। यह प्राचीन काल की भाईपा संस्कृति का घोतक है। श्री शर्मा ने कहा कि नेशनल म्युजियम की मूर्ति को डांसिंग गर्ल बताया जा रहा हैं, वह वास्तव में भाईपा संस्कृति की बखूबी पहचान कराती है, क्योंकि उसके हाथ में चूड़ा पहना हुआ है। यह चूड़ा, भाईपा संस्कृति एवं समुदाय की महिलाएं ही पहनती थी, जो कि 9वीं शताब्दी में विजयराज चूड़ाला के शासन काल में प्रारम्भ हुई है, वह आज भी परम्परा विद्यमान हैं। जिसके अन्तर्गत हिन्दू, मुसलमान तथा बौद्ध धर्म की महिलाएं ये चूड़ा पहनती हैं, जो सदा सुहागन का प्रतीक माना गया है। उन्होंने कहा कि पर्यटन विकास जरूरी है लेकिन इसके साथ ही कला-संस्कृति और पुरातन परंपराओं का संरक्षण जरूरी है, तभी पर्यटन विकास और बेहतर आधार प्राप्त हो सकता है। संगोष्ठी में सभी ने लोक कलाओं तथा लोक कलाकारों के प्रोत्साहन और विकास के लिए भरपूर कोशिशों की जरुरत जताई। इस मौके सभी ने राजस्थान दिवस प्रदर्शनी का अवलोकन किया तथा इसकी सराहना की। जोरावार्ता