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सूचना के अधिकार कानून की वर्षगांठ

अजमेर 12 अक्टूबर (वार्ता) राजस्थान में अजमेर जिले के ब्यावर से देश को दिये गये ' सूचना के अधिकार ' कानून की आज वर्षगांठ है।
ब्यावर में चांगगेट से चलाये गये आंदोलन का आगाज छह अप्रैल 1996 को टेंट में धरने के साथ शुरू किया गया। 40 दिनों तक प्रभावी ढंग से चलाये गये जन आन्दोलन को सभी का व्यापक समर्थन मिला जिसका परिणाम ये रहा कि आन्दोलन ने मजदूर किसान शक्ति संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता अरूणाराय के आगे घूटने टेक दिये।
12 मई 2005 को संसद ने कानून पारित किया। और 15 जून 2005 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई। और आज 12 अक्टूबर को सूचना का अधिकार कानून-2005 'जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू कर दिया।
ब्यावर के चांगगेट के कुमारानंद सर्किल पर आज भी चिरस्थाई स्मृति संजोय ' आरटीआई स्मारक स्तंभ ' खड़ा है जिस पर सूचना के जन अधिकार अभियान की जन्म स्थली को दर्शाया गया है। इस आंदोलन की खास बात यह थी कि देश की जनता को पारदर्शी शासन प्रशासन देने के उद्देश्य में बड़ी संख्या में ग्रामीण भी शामिल हुए थे जिनकी बदौलत अधिकार हासिल करने के लिए देशभर में माहौल तैयार हुआ।
सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय के प्रयासों में कुलदीप नैयर, निखिल चक्रवर्ती, मेघा पाटेकर, अजीत भट्टाचार्य, भारत डोगरा, स्वामी अग्निहोत्री, ब्यावर के पूर्व विधायक व कॉमरेड केसरीमल, आदि का व्यापक सहयोग व समर्थन मिला। आगे चलकर अरुणा राय ने इस पर एक पुस्तक भी लिखी जिसका नाम आरटीआई स्टोरी पावर टू द प्यूपिल रखा गया। खास बात यह है कि पुस्तक का विमोचन भी आंदोलन की जन्म स्थली चांद गेट से किया गया।
सवाल यह है कि सूचना का अधिकार कानून लागू होने के बावजूद भी इस 16 वर्षों के सफर में जिस उद्देश्य से इसे लागू किया गया वह सरकारी स्तर पर ईमानदारी से प्रभावी बनाकर क्या आम जनता को उसका लाभ दिया जा रहा है।
अनुराग रामसिंह
वार्ता
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