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लोकरूचि होली कानपुर दो अंतिम कानपुर

वर्ष 1942 में हुयी गंगा मेला की शुरूआत स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी है। दरअसल, आजादी से पहले हटिया में लोहा, कपड़ा और गल्ले का व्यापार होता था। व्यापारियों के यहां आजादी के दीवाने और क्रांतिकारी डेरा जमाते और आंदोलन की रणनीति बनाते थे। गुलाब चंद सेठ हटिया के बड़े व्यापारी हुआ करते थे। जो बड़ी धूमधाम से वहां होली का आयोजन करते थे।
एक बार होली के दिन अंग्रेज अधिकारी घोड़े पर सवार होकर आए और होली बंद करने को कहा। इस पर गुलाब चंद सेठ ने उनको साफ मना कर दिया। अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी का विरोध करने पर जागेश्वर त्रिवेदी, पं. मुंशीराम शर्मा सोम, रघुबर दयाल, बालकृष्ण शर्मा नवीन, श्यामलाल गुप्त 'पार्षद', बुद्धूलाल मेहरोत्रा और हामिद खां को भी हुकूमत के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार करके सरसैया घाट स्थित जिला कारागार में बंद कर दिया।
इसकी खबर जब लोगों को लगी तो पूरा शहर भड़क उठा। सबने मिलकर आंदोलन छेड़ दिया और इसमें स्वतंत्रता सेनानी भी जुड़ते चले गए। आठ दिन विरोध के बाद अंग्रेज अधिकारी घबरा गए और उन्हें गिरफ्तार लोगों को छोड़ना पड़ा। यह रिहाई अनुराधा नक्षत्र के दिन हुई। होली के बाद अनुराधा नक्षत्र के दिन उनके लिए उत्सव का दिन हो गया और जेल के बाहर भरी संख्या में लोगों ने एकत्र होकर खुशी मनाई। इसी खुशी में हटिया से रंग भरा ठेला निकाला गया और लोगों ने जमकर रंग खेला। शाम को गंगा किनारे सरसैया घाट पर मेला लगा, तब से कानपुर शहर इस परंपरा का निर्वाह कर रहा है। आज भी सरसैया घाट पर पूर्व की भांति शाम को होली मिलन समारोह होता है।
प्रदीप
वार्ता
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