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लोकरूचि हिन्दू मजलिस तीन अंतिम जौनपुर

श्री रिजवी ने बताया कि आठवीं मोहर्रम को देश में मशहूर जंजीरों का मातम ऐतिहासिक अटाला मस्जिद पर होता है। इसमें जुलूस जुलजनाह व झूला अली असगर इमामबाड़ा नाजिम अली से निकल कर अटाला मस्जिद से हेाता हुआ राजा बाजार के इमामबाड़ा में समाप्त होता है, इसमें पूरे शहर की अंजुमने नौहा व मातम करती है। नौंवीं मोहर्रम की रात शहर व देहात में ताजिया इमाम चैक पर रखा जाता है, रात भर मजलिस व मातम होता है। इसे शब—ए आशूर कहा जाता है।
दस मोहर्रम को ताजियों को सदर इमामबाड़ा लाकर गमगीन माहौल में दफन किया जाता है , इस दिन लोग भूखे रहते हैं और सायंकाल सदर इमामबाड़े में मजलिसे शामे गरीबां होती है।
श्री रिजवी ने बताया कि मोहर्रम महीने में प्रतिदिन हर मुहल्ले में जुलजनाह अलम का जुलूस निकलता रहता है। मोहर्रम के जुलूस के बाद जौनपुर का प्रसिद्ध ऐतिहासिक अलम नौचन्दी व जुलूस-ए-अमारी इमामबाड़ा स्व. मीर बहादुर अली दालान पुरानी बाजार से निकलता है। इस वर्ष 03 अक्टूबर 2019 को अलम नौचन्दी व जुलूस-ए-अमारी है। इसमें देश और प्रदेश के कोने-कोने से लोग आते हैं और धर्म गुरू मौलाना सैय्यद कल्वे जौव्वाद साहब मजलिस को सम्बोधित करते हैं।
शिराज-ए-हिन्द जौनपुर के मोहर्रम में सिर्फ शिया मुसलमान ही नहीं बल्कि हिन्दू भी मजलिस व मातम में शामिल होते है। फिदा हुसैन अंजुमन अहियापुर में डढ़े दर्जन से अधिक हिन्दू शामिल है जो हर वर्ष मोहर्रम में ताजिया रखते है और मातम भी करते है। इसके अलावा यहां पर कई शब्बेदारियां होती हैं। जहां 24 घंटे लगातार नौहाख्वानी और सीनाजनी का सिलसिला चलता है।
सं प्रदीप
वार्ता
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