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उत्तर प्रदेश-योगी राष्ट्र रक्षा दो गोरखपुर

श्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ एवं गोरखपुर के वर्तमान स्वरूप के शिल्पी योगिराज बाबा गम्भीरनाथ और उनके तपस्या से पले बढ़े महन्त दिग्विजयनाथ । उन्होंने हर क्षेत्र की अपूर्णता को पूर्णता प्रदान की। नाथ सम्प्रदाय के बिखरे योगी समाज को एक किया और उन्हें धर्म, आध्यात्म के साथ-साथ राष्ट्रोन्मुख किया। हिन्दुत्व के मूल्यों और आदर्शो की पुनस्र्थापना के लिए वे राजनीतिक दलदल में कूदे।
उन्होंने कहा कि भारत-नेपाल सम्बन्ध पर तत्कालीन नेहरू सरकार को बार-बार ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की सहायता लेनी पड़ी थी। ब्रह्मलीन महाराज के धर्म, राजनीति, शिक्षा, समाज के सन्दर्भ में विचार आज भी प्रासंगिक
है। शिक्षा और स्वास्थ्य की दृष्टि से अति पिछड़े इस पूर्वी उत्तर प्रदेश में महन्त दिग्विजयन ने शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाओं और तकनीकी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना कर हिन्दुत्व आधारित सामाजिक परिवर्तन में अपनी सक्रिय भागीदारी निभायी। वह अपने समय के वे धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में एक सशक्त हस्ताक्षर थे।
गोरक्षपीठाधीश्वर ने कहा कि महात्मा गांधी द्वारा खिलाफत आन्दोलन के बाद कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति के विरूद्ध कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी राजनीति का शंखनाद किया। आज गोरखपुर में जो कुछ भी गौरव प्रदान करने वाली चीजें हैं उनमें पूज्य दोनों ब्रह्मलीन सन्तों का सर्वाधिक योगदान रहा। उन्होंने कहा कि जब वाराणसी में विश्वनाथ के मन्दिर में दलितों का प्रवेश वर्जित था तब था महन्त दिग्विजयन ने अपने आन्दोलन के माध्यम से मन्दिर का दरवाजा सबके लिए खुलवाया। उन्होंने कहाक इसी प्रकार मेरे (योगी) गुरूदेव राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ ने मीनाक्षीपुरम् में दलितों को सम्मान दिलाने के लिए आन्दोलन किया तथा उनके साथ बैठकर सहभोज कर हिन्दू समाज को जोड़ने का काम किया।
उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की संस्थाएँ दोनों ब्रह्मलीन महंत के सपनों को साकार करने में अपनी पूर्ण सामथ्र्य का उपयोग करें यही उन्हें वास्तविक श्रद्धान्जलि होगी।
समारोह के मुख्य अतिथि अयोध्याधाम से पधारे जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य ने कहा कि महन्त दिग्विजयनाथ ने राजनीति को धर्म के खुटें से बाँधा। उन्होंने कहा कि दुनिया के राजनीति इतिहास में इस पीठ ने उस विशिष्ट परम्परा को प्रतिष्ठित किया है जो धर्म और राजनीति को सिक्के का एक पहलू मानती है। जो परम्परा
राजनीति को भी लोक कल्याण का साधन मानती है। भारत की इस सनातन परम्परा के वैचारिक अधिष्ठान को इस पीठ ने वर्तमान युग में व्यवहारिक धरातल पर प्रतिष्ठित किया है। मध्य युग से लेकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम तक
व्याप्त धर्म, राष्ट्र और राजनीति को एक साथ साधने का प्रयत्न करने वाले ऋषियों की एक लम्बी परम्परा है मगर वह परम्परा वर्तमान युग में आकर श्रीगोरक्षपीठ में आकार पाती है।
उदय त्यागी
जरी वार्ता
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