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लोकरूचि-रावण आर्शीवाद दो प्रयागराज

सीता से कहा कि राम लंका विजय की कामना समुद्रतट पर महेश्वर लिंग विग्रह की स्थापना करने जा रहे हैं और रावण को आचार्य वरण किया है । यजमान का अनुष्ठान पूर्ण हो यह दायित्व आचार्य का भी होता है। तुम्हें ज्ञात है कि अर्द्धांगिनी के बिना गृहस्थ के सभी अनुष्ठान अपूर्ण रहते हैं। विमान आ रहा है, उस पर बैठ जाना।
जानकी जी ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया । स्वस्थ कण्ठ से सौभाग्यवती भव कहते रावण ने दोनों हाथ उठाकर भरपूर आशीर्वाद दिया। सीता और अन्य आवश्यक उपकरण सहित रावण आकाश मार्ग से समुद्र तट पर उतरा। आदेश मिलने पर आना कहकर सीता को उसने विमान में ही छोड़ा और स्वयं राम के सम्मुख पहुँचा ।
वनवासी श्रीराम सम्मुख होते ही आचार्य दशग्रीव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। दीर्घायु भव, लंका विजयी भव। दशग्रीव के इस आशीर्वचन के शब्द ने सबको चौंका दिया। उसने कहा यह आर्शीवाद आचार्य ब्राह्मण रावण ने अपने यजमान वनवासी राम को दिया न/न कि लंकाधिकपति राजा रावण ने अपने धुर विरोधी अयोध्यापति श्रीराम को दिया है।
रामायण में प्रसंग है कि भूमि शोधन के उपरान्त रावणाचार्य ने कहा कि यजमान, अर्द्धांगिनी कहाँ है, उन्हें यथास्थान आसन दें। श्रीराम ने मस्तक झुकाते हुए हाथ जोड़कर अत्यन्त विनम्र स्वर से प्रार्थना की कि यदि यजमान असमर्थ हो तो योग्याचार्य सर्वोत्कृष्ट विकल्प के अभाव में अन्य समकक्ष विकल्प से भी तो अनुष्ठान सम्पादन कर सकते हैं। आचार्य आवश्यक साधन, उपकरण अनुष्ठान उपरान्त वापस ले जाते हैं । स्वीकार हो तो किसी को भेज दो, सागर सन्निकट पुष्पक विमान में यजमान पत्नी विराजमान हैं ।
दिनेश प्रदीप
जारी वार्ता
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