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क्षेत्र के विकास को गति देने में लगा है विश्वविद्यालय: प्रो वैशम्पायन

झांसी 15 अक्टूबर (वार्ता) उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित बुंदेलखंड विश्वविद्यालय(बुंविवि) के कुलपति प्रो जे वी वैशम्पायन ने मंगलवार को विश्वविद्यालय के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि युवाओं को शिक्षा देने के साथ क्षेत्र की संस्कृति ,साहित्य के संरक्षण और प्रसार में विश्वविद्यालय अपनी भूमिका अदा कर रहा है। जनसमस्याओं के निस्तारण करने के साथ ही साथ यह क्षेत्र के विकास को गति देने के प्रयास में लगा हुआ है।
यहां बुविवि के राजीव गांधी इनडोर स्टेडियम में आयोजित पुस्तक प्रदर्शनी के दूसरे दिन मंगलवार को आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रो वैशम्पायन ने कहा कि अगले साल वे तीनदिवसीय कार्यक्रम का आयोजन करेंगे जिसमें एक एक दिन हिंदी, अंग्रेजी और बुंदेली साहित्य संसार पर विस्तार से विचार मंथन किया जाएगा। संगोष्ठी में क्षेत्र के नामवर साहित्यकारों ने बुंदेली संस्कृृति और साहित्य की विशेषताओं को रेखांकित किया। इस मौके पर बुविवि में बुंदेली साहित्य के लिए अलग से पीठ करने की मांग भी उठी।
उन्होंने कहा कि कोई भी विश्वविद्यालय के केवल शिक्षा देने का ही कार्य नहीं करता है वरन वह संबंधित क्षेत्र के विकास में भी योगदान देता है। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय अपनी भूमिकाओं का निर्वहन बखूबी कर रहा है। उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि बड़ी संख्या में लोग पुस्तक प्रदर्शनी में आ रहे हैं। कुलपति ने बुविवि को राज्य से कोई अनुदान नहीं मिलने पर चिंता भी जतायी।
इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि राज्य सरकार के दरजा प्राप्त मंत्री हरिगोविंद कुशवाहा ने कहा कि बुंदेलखंड की धरती सबसे पुरानी है। यहां का साहित्य भी सबसे पुराना है। उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास की श्रीरामचरित मानस दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कृति है। श्रीरामचरित मानस की चौपाइयों को सामने रखते हुए उन्होंने बुंदेलखंड की संस्कृति और साहित्य की विशेषताओं को भी रेखांकित किया। उन्होंने लोगों से बुंदेली संस्कृति और साहित्य की विशेषताओं का भी जिक्र किया। उन्होंने कुलपति से बुविवि में बुंदेली पीठ की स्थापना करने की भी मांग की। इस कार्यक्रम में बुंदेलखंड क्षेत्र के नामवर साहित्यकार डा. राम नारायण शर्मा, डा. केबीएल पाण्डेय तथा पन्नालाल असर ने भी बुंदेली साहित्य और लोक साहित्य की विशेषताओं का विस्तार से जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बुंदेली भाषा बहुत समृद्ध भाषा है,इसके साहित्य को संजोए रखने की आवश्यकता है।
इस कार्यक्रम में अतिथियों को पुस्तक प्रदर्शनी की समन्वयक डा. जे. श्रीदेवी, डा. पुनीत बिसारिया आदि ने पुस्तकें भेंटकर सम्मानित किया। इस कार्यक्रम में प्रो. वीके सहगल, डा. मुन्ना तिवारी, डा. कौशल त्रिपाठी, उमेश शुक्ल, राघवेंद्र दीक्षित, डा. अनु सिंगला, डा. अचला पाण्डेय, डा. मुहम्मद नईम, डा. सुनील त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार रघुवीर शर्मा, कुंवर बहादुर आदिम , मघु श्रीवास्तव समेत अनेक लोग उपस्थित रहे।
सोनिया
वार्ता
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