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कोरोना नहीं प्रकृति के साथ रहना सीखें: पर्यावरणविद

इटावा, 04 जून (वार्ता) नोवल कोरोना वायरस के संकटकाल में आज देश में हर एक की जुबां पर है कि लोगों काे अब ताउम्र कोरोना के साथ रहने की आदत डालनी होगी वहीं पर्यावरणविदों का मानना है कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल होने की बजाय लोगबाग अगर प्रकृति का सम्मान करें तो वह कोरोना वायरस जैसे घातक विषाणु के असर से बचे रह सकते हैं।
पर्यावरणविद और स्वामी विवेकानंद सेवा संस्थान के अध्यक्ष संजय सक्सेना ने कहा “ कोरोना के साथ रहने की बात समझ में नहीं आती है। इसकी जगह यह कहा जाना चाहिए कि हमें प्रकृति के साथ रहना सीखना होगा और जब हम प्रकृति के साथ रहेंगे तो तमाम परेशानियों से बचे रहेंगे । ”
उन्होने कहा “ प्रकृति को नुकसान ना पहुंचाएं तथा वन्यजीवों को भी अनावश्यक रूप से परेशान ना करें। कोरोना के दौर में जिस तरह से रहने की बातें हो रही हैं, यह सब वही बातें हैं जिनका हम सब पहले अनुसरण करते आए हैं । हम भारतीय परंपरा के अनुसार प्रकृति के साथ जिए तो हमें ना कोरोना वायरस तरह का कोई और रोना हमारे सामने आएगा।”
श्री सक्सेना ने कहा “ प्राचीन काल में कहावत रही है कि जो वन (जंगल) गया वह बन गया। भगवान राम भी वन (जंगल) गये तभी उन्होंने कई ऐसे कार्य किए जिसके कारण वह पूज्यनीय है। चाहे अन्याय से पीडित लोगों को न्याय दिलाने का काम हो या फिर आतताईयो का अंत करने का काम हो। यह सभी उन्होंने वन (जंगल) में जाकर ही किया। वर्तमान दौर में जब कोरोना हमारी जान के पीछे पडा है तब जरूरत इस बात की है कि हम भारतीय परंपराओं का पालन करते हुए प्रकृति के साथ रहना सीखें।”
सं प्रदीप
वार्ता
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