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निकाय चुनाव ने फिर साबित की योगी की लोकप्रियता

लखनऊ 13 मई (वार्ता) उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिली बंपर जीत ने एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता को जगजाहिर कर दिया है।
नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने सभी 17 नगर निगमो में जीत दर्ज की है वहीं नगर पालिका और नगर पंचायत के चुनाव में भी पार्टी को पिछले चुनाव के मुकाबले में अप्रत्याशित सफलता हासिल हुयी है। जीत का श्रेय मुख्यमंत्री ने संगठन और सरकार के बेहतर तालमेल और कार्यकर्ताओं की मेहनत को दिया है। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है मगर यह भी सच है कि निकाय चुनाव में श्री योगी के व्यक्तित्व और कर्मठता को भी जनता ने सिर आंखों पर लिया है। माफिया तत्वों और अपराधियों के प्रति मुख्यमंत्री का कड़क रवैया और कार्रवाई से लोग खासे खुश हैं वहीं सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन और कामकाज में पारदर्शिता के भी कायल हैं।
निकाय चुनाव में भाजपा के कई प्रत्याशी ऐसे भी थे जिन्हे निजी रूप में क्षेत्रीय लोग पसंद नहीं करते थे। चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद भी इन प्रत्याशियों को परिणाम को लेकर संदेह था मगर जब पिटारा खुला तो उनके खाते में जीत आयी जबकि कई को जीत का तो भान था मगर इतने लंबे अंतर से जीत मिलेगी,इसका अंदाज कतई नहीं था। इन सबके पीछे भाजपा संगठन की ताकत और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता थी और ये बात वे प्रत्याशी शायद सार्वजनिक रूप से स्वीकार न करें लेकिन क्षेत्रीय जनता ने खुले तौर पर माना कि उन्होने वोट योगी के व्यक्तित्व से प्रेरित होकर भाजपा को दिया है।
कानपुर के गोविंदनगर क्षेत्र के एक व्यापारी नेता ने कहा कि उनका परिवार कई सालों से कांग्रेस को वोट देता आ रहा है मगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के अपराधी और माफिया तत्वों के खिलाफ की जा रही कार्रवाई से व्यापारी समाज खुद को सुरक्षित महसूस करने लगा है और यही कारण है कि 2022 में उन्होने पहली बार विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट दिया और इस निकाय चुनाव मे भी उनके परिवार का वोट भाजपा को दिया गया, न कि पार्टी की महापौर प्रत्याशी को।
लखनऊ के चौक क्षेत्र के निवासी राधेश्याम ने कहा कि वे भाजपा को पसंद करते हैं। भाजपा ऐसा दल है जहां आम कार्यकर्ता से लेकर प्रदेश अध्यक्ष,मंत्री और यहां तक मुख्यमंत्री सब चुनाव के समय एकीकृत हो जाते है जो किसी भी सशक्त पार्टी की पहली पहचान होती है और जब राज्य में योगी आदित्यनाथ जैसा कर्मठ मुख्यमंत्री हो तब तो कहना ही क्या। सपा की उम्मीदवार वंदना मिश्रा बेहद शालीन और कर्मठ हैं मगर हमें पता था कि यहां महापौर के पद पर भाजपा ही जीत दर्ज करेगी।
गौरतलब है कि श्री योगी ने नगर निकाय चुनाव में कुल 50 रैलियां कीं। पहले चरण में योगी आदित्यनाथ की कुल 28 रैली हुई। इसमें गोरखपुर में चार, लखनऊ में तीन व वाराणसी में दो स्थानों पर रैली-सम्मेलन में योगी शामिल हुए। पहले चरण के 37 जिलों में चार मई को मतदान हुआ। दूसरे चरण में सीएम योगी ने 22 रैलियां कीं। इसमें नौ मंडल की सात नगर निगमों के लिए वोट पड़े। यहां अयोध्या नगर निगम के लिए सीएम योगी दो बार पहुंचे। यहां संत सम्मेलन में भी सीएम की उपस्थिति जीत के लिए काफी कारगर रही। श्री योगी ने इसके साथ ही कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। मुख्यमंत्री का दायित्व संभालने के अति व्यस्त कार्यक्रम के साथ चुनाव प्रचार के लिये समय निकालना भी लोगों को खूब भाया।
श्री योगी के अलावा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य,ब्रजेश पाठक,प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी,संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह ने लगभग हर रोज कई कई रैलियां कर भाजपा के पक्ष में माहौल तैयार किया। भाजपा की इस मुहिम मेे केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी,राजनाथ सिंह समेत कई अन्य नेता और वरिष्ठ पदाधिकारी शामिल हुये जिसने न सिर्फ जनता के दिलोदिमाग में भाजपा के प्रति जगह पैदा की बल्कि कार्यकर्ताओं का भी उत्साहवर्धन किया।
समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव और संगठन में खासी पकड़ रखने वाले शिवपाल सिंह यादव के अलावा प्रो रामगोपाल यादव ने भी सपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार किया मगर योगी और उनके मंत्रियों एवं भाजपा नेताओं के मुकाबले यह काफी कम रहा। सपा ने हालांकि इटावा समेत कई अन्य स्थानो पर अपनी ताकत दिखायी मगर निकाय चुनाव के नतीजों से उन्हे समझना होगा कि अगले साल होने वाले आमचुनाव में सपा को कड़ी मेहनत की जरूरत है।
कांग्रेस इस चुनाव में पूरी तरह बिखरी बिखरी दिखायी पड़ी। कांग्रेस के जिन प्रत्याशियों ने इस चुनाव में जीत दर्ज की, उसमें उनका और पार्टी के स्थानीय नेताओं का योगदान ही रहा। प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस उम्मीदवारों को सिर्फ निराशा हाथ लगी। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में उलझे कांग्रेस नेताओं को राजनीति के लिहाज से उत्तर प्रदेश की इस चुनाव में कोई फिक्र नहीं थी।
प्रदीप
वार्ता
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