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बाहरी नेताओं के हाथों में रहा बलरामपुर का भविष्य

बलरामपुर, 3 अप्रैल (वार्ता) देवीपाटन मंडल में भारत नेपाल सीमा से सटा महत्वपूर्ण जिला बलरामपुर 27 वर्ष पूर्व अस्तित्व में आ चुका था लेकिन राजनैतिक महत्वकांक्षा की कमी के चलते यहां के लोगों की स्थानीय जनप्रतिनिधि की तलाश पूरी नहीं हाे सकी है।
हमेशा लहरों के मुताबिक चुनावी बयारो में बह जाने वाली बलरामपुर की जनता मजबूरन बाहरी नेताओं के हाथों में बलरामपुर की बागडोर देती आयी है, जिसका खामियाजा भी बलरामपुर अपने पिछड़ेपन और उपेक्षा से भोग रहा है। दिलचस्प है कि मौजूदा आम चुनाव में भी तमाम बड़े राजनीतिक दलों ने बलरामपुर (श्रावस्ती) लोकसभा पुनः बाहरी उम्मीदवारों को ही उतारना शुरू कर दिया है, जिससे बलरामपुर में चुनावी तपिश बढ़ती जा रही है।
अगर बलरामपुर लोकसभा सीट की बात करें तो अस्तित्व में आने के बाद सर्वप्रथम वर्ष 1957 में पूर्व प्रधानमंत्री पंडित अटल बिहारी वाजपेयी को बलरामपुर का नेतृत्व करने का अवसर जनता ने दिया, तत्पश्चात 1962में सुभद्रा जोशी,1967 में फिर से अटल बिहारी वाजपेयी को जनता ने दिल्ली भेजा। इसके बाद 1971 में चन्द्र भाल मणि तिवारी,1977 में नानाजी देशमुख,1980 में पुनः चन्द्र भाल मणि तिवारी 1984 में महंत दीपनारायण बन,1989 में फसीऊर्रहमान उर्फ मुन्नन खां सांसद चुने गए।
जब राममंदिर आंदोलन चला तो रामलहर में वर्ष 1991और 1996 के चुनाव में जयश्रीराम के उद्घोष संग सत्यदेव सिंह ने कमल का परचम लहरा कर बाहरी सांसद की परम्परा कायम रखी लेकिन जब 1998 और 1999 का सामने आया तो पहली बार स्थानीय नेता के रूप में बाहुबली सांसद रिज़वान ज़हीर बने। आगे जब 2004 का चुनावी अखाड़ा तैयार हुआ तो रिजवान को पटखनी देकर बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह ने विजय हासिल कर ली।
इस पूरे चुनावी कुरुक्षेत्र में भारतीय जनसंघ,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस,जनता पार्टी, भाजपा और सपा ने एक के बाद एक जीत दर्ज कराई और सभी ने रिजवान को छोड़कर बाहरी नेताओ को ही अवसर दिया। 2009 के परिसीमन में बलरामपुर लोकसभा की बलरामपुर सदर, तुलसीपुर, गैसडी संग श्रावस्ती जिले की इकौना और भिनगा समेत सभी पांचों विधानसभाओ को मिलाकर श्रावस्ती लोकसभा सीट सृजित की गई,तब 2009,2014, और 2019 के तीनों चुनावों में श्रावस्ती की जनता ने कांग्रेस, भाजपा और बसपा को भले ही क्षेत्रीय विकास के लिऐ मौका देकर उनके नुमाइदो को संसद भवन तक का सफर तय कराया लेकिन बलरामपुर जिले की हालत विकास की बाट जोहते जोहते बद से बदतर बनी रही।
खैर जो भी हुआ इस बार जब जनता ने कुछ नया सोचा तो उनकी सोच पर फिर पानी फिरता नजर आने लगा। मोदी योगी मैजिक के चलते स्थानीय उम्मीदवार की प्रतीक्षा कर रही जनता आखिर वही फिर खड़ी होने को मजबूर दिखने लगी जहां से चली थी क्योंकि श्रावस्ती सीट से जहां भाजपा ने श्री राममंदिर निर्माण ट्रस्ट के अध्यक्ष पूर्व आईएएस अधिकारी नृपेंद्र मिश्र के सुपुत्र साकेत मिश्र को कमल निशान से उम्मीदवारी दी है वहीं सपा से साइकिल की सवारी कर मसूद आलम खां भी जंघा ठोककर मैदान में दौड़ लगा रहें है जबकि बहुजन समाज पार्टी ने कुछ बड़ा सोचा लगता है दरअसल पार्टी से बड़े बड़े नेताओं बाहर का रास्ता दिखाने में महारथ हासिल करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने श्रावस्ती के मौजूदा सांसद राम शिरोमणि वर्मा को भी पार्टी के कुनबे से बाहर कर दिया है। अब देखना ये है कि बसपा की चाल क्या होती है फिलहाल सभी की निगाहे पार्टी पर टिकीं है l सं प्रदीप
वार्ता
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