भारतPosted at: Sep 17 2018 10:13PM किसी पर वर्चस्व नहीं चाहता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: भागवत
नयी दिल्ली 17 सितंबर (वार्ता) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि उनका संगठन सत्ता या किसी व्यवस्था पर वर्चस्व कतई नहीं चाहता है और अगर कोई कहता है कि संघ के वर्चस्व से कुछ हुआ है तो यह संघ की हार है।
श्री भागवत ने यहां विज्ञान भवन में ‘भविष्य का भारत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण’ विषय पर अपनी व्याख्यानमाला के प्रथम चरण में संघ एवं हिन्दुत्व के बारे में अपने विचार रखे। उन्होंने अपने उद्बोधन में यह भी साफ किया कि संघ स्वतंत्रता संग्राम का समर्थक और गांधी जी के आचार-विचार का प्रशंसक रहा है और राष्ट्रीय तिरंगे को राष्ट्रध्वज चुने जाने पर स्वयंसेवकों ने उसे लेकर परेड निकाली थी।
सरसंघ चालक ने कहा कि महिलाओं को लेकर संघ में कोई भेदभाव नहीं है। संघ के पौने दो लाख से अधिक प्रकल्पों में सभी मिलजुल कर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इसी विचार को रख कर सात आठ साल तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक मंडल के नाम से विभिन्न प्रयोग करने के बाद हिन्दू शक्ति और समाज को संगठित करने के लिए संघ का बीजारोपण किया था। संघ की शाखाएं लोगों में अच्छे आचरण की आदतें विकसित करने का काम करतीं हैं।
उन्होंने बताया कि डॉ. हेडगेवार की स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका थी। क्रांतिकारियों के साथ संबंधों के बावजूद उनका नेताजी सुभाष चंद्र बोस, पं. जवाहरलाल नेहरू आदि नेताओं से भी संपर्क था। उन्होंने गांधी जी के बारे में कहा था कि बापू के उच्चकोटि के त्याग और देश के प्रति उनकी सेवा का अनुकरण करे बिना काम नहीं चलेगा।
श्री भागवत ने बताया कि लाहौर में कांग्रेस के अधिवेशन में संपूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा में तिरंगे को राष्ट्रध्वज चुने जाने पर डॉ. हेडगेवार ने एक परिपत्र निकाल कर देश भर में भेजा था कि तिरंगे के साथ पथ संचलन (परेड) निकाला जाए। स्वतंत्रता के सभी प्रतीकों को स्वयंसेवक पूरा सम्मान दें।
सरसंघचालक ने सत्ता एवं व्यवस्था पर वर्चस्व कायम करने की प्रवृत्ति के अारोपों का खंडन करते हुए कहा, “हम कहीं भी संघ का डोमिनेशन (वर्चस्व) नहीं चाहते। संघ के डोमिनेशन से कुछ हुआ तो यह संघ की पराजय होगी।” उन्होंने कहा कि सामान्य लोगोंं के परिश्रम और उनकी सामूहिक शक्ति से परिवर्तन आना चाहिए। संघ को यह मंजूर नहीं है कि संघ आ गया तो ऐसा हो गया। उन्होंने कहा, “संघ में सामूहिकता कदम-कदम पर दिखायी देती है। संघ चेहराविहीन रहना चाहता है ताकि लोगों में अहंकार ना पैदा हो। सत्ता में कौन बैठेगा यह समाज देखे। हमको तो केवल यह चिंता है कि समाज का आचरण कैसा बनेगा।”
सरसंघचालक ने कहा कि संघ का उद्देश्य सफल राष्ट्र के लिए सुयोग्य समाज का निर्माण है और समाज बनाने के लिये व्यक्ति निर्माण जरूरी और यही कार्य संघ 1925 से करता आ रहा है। उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना के पहले विचार आया था कि समाज को बदले बिना स्थायी परिवर्तन नहीं अा सकता है। शासन के परिवर्तन से कुछ नहीं होता। देश के लोगों में देश के प्रति विश्वास पैदा करने की आवश्यकता है और इसके लिए लोकशक्ति का जागरण करना पड़ेगा। विविधता भरे समाज में हर जगह स्थानीय संस्कृति के नायक खड़े करने पड़ेंगे जो मूल्य आधारित आचरण से लोगों को प्रेरित करें।
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सचिन, यामिनी
वार्ता