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राजस्थान उच्च न्यायालय की स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण होने पर विचार गोष्ठी

राजस्थान उच्च न्यायालय की स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण होने पर विचार गोष्ठी

जयपुर, 30 मार्च (वार्ता) राजस्थान उच्च न्यायालय स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण होने पर शनिवार को राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (रालसा) द्वारा 'विधिक सहायता एवं सामाजिक न्याय तक पहुंच में चुनौतियां एवं अवसर' विषय पर एक दिवसीय विचार गोष्ठी एवं संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

राजस्थान उच्च न्यायालय के प्लेटिनम जुबली सेलिब्रेशन के इस अवसर पर राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में न्यायालय के तत्वावधान में

'राजस्थान दिवस' पर आयोजित इस कार्यक्रम में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं कार्यकारी अध्यक्ष राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण संजीव खन्ना ने मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की। विशिष्ट अतिथि के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश संदीप मेहता मौजूद थे वहीं राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और रालसा के मुख्य संरक्षक एम एम श्रीवास्तव और रालसा के कार्यकारी अध्यक्ष पंकज भंडारी और न्यायाधीश डॉ पुष्पेंद्र सिंह भाटी कार्यक्रम में मौजूद थे।

न्यायमूर्ति खन्ना ने राजस्थान के प्रो-बोनो अधिवक्ता पैनल के साथ-साथ संपूर्ण विधिक सेवा प्रणाली की उपलब्धियां की सराहना करते हुए विधिक सेवा तंत्र को और मजबूत कर सेवाओं को घर-घर तक पहुंचाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संपूर्ण देश और राजस्थान में दी जाने वाली विधिक सेवाओं के आंकड़ों का गहन विश्लेषण करने से पता चलता है कि धरातल पर काम करने वाले पैरा लीगल वॉलिंटियर्स की सेवा के माध्यम से ही विधिक सेवा का नया दौर आरंभ किया जा सकता है। श्री खन्ना ने प्री-अरेस्ट स्टेज से लेकर जेल में दाखिल विचाराधीन बंदियों को न्याय की शीघ्र, सुलभ और गुणवत्तापूर्ण पहुंच दिलाने के लिए जेल प्रशासन के साथ मिलकर सकारात्मक प्रयास करने पर विशेष जोर दिया।

न्यायमूर्ति श्रीवास्तव ने राजस्थान में विधिक सेवा गतिविधियों की जानकारी दी और बताया कि प्रत्येक योग्य व्यक्ति को निशुल्क विधिक सहायता दिलाने के लिए रालसा निरंतर नए प्रयास कर रहा है। उन्होंने विशेष योग्यजनों को राजकीय कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने, आदर्श विधिक सेवा केंद्र जैसी रालसा की विभिन्न योजनाओं का उल्लेख करते हुए राज्य स्तर पर किए जा रहे विधिक सेवा प्रयासों से अवगत कराया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि न्याय तक पहुंच केवल उच्च वर्ग के लिए ही नहीं है बल्कि समाज के दलित-पिछड़े तबके की न्याय तक पहुंच आसान होनी चाहिए, तभी हम न्यायसंगत समाज की स्थापना कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि न्याय तक पहुंच समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति का सार्वभौमिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि हमें समाज के कमजोर वर्ग की तकलीफों और आवश्यकताओं को जानना होगा और वर्तमान न्यायिक व्यवस्था को समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए पहुंचने योग्य, समझने योग्य और स्वीकार करने योग्य बनाना होगा। श्री श्रीवास्तव ने प्रत्येक व्यक्ति तक न्याय की पहुंच में आने वाली बाधाओं पर भी विस्तार से चर्चा की‌।

न्यायमूर्ति मेहता ने कहा कि मीडिएशन और लोक अदालत में राजस्थान द्वारा सफल प्रयास किए जाते रहे हैं। वैकल्पिक विवाद निस्तारण के माध्यम से ही भविष्य में न्यायालय के भार को कम किया जा सकेगा। श्री मेहता ने विधिक शिक्षा प्रदान कर रही संस्थाओं के पाठ्यक्रम के पुनः परीक्षण किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि विधिक सिद्धांतों को विधिक पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विधिक शिक्षण संस्थाएं, भावी विधिक विशेषज्ञों का प्रशिक्षण विद्यालय है और समाज के प्रति दायित्व के भाव इन्हीं संस्थाओं के माध्यम से विद्यार्थियों में स्थापित किए जाने चाहिए।

उन्होंने विधिक सहायता संबंधी कार्य करने पर विद्यार्थियों को क्रेडिट एवं रिवॉर्ड दिए जाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि विधि पाठ्यक्रम को भी समाज की बदलती मांग के अनुरूप बदला जाना चाहिए।

इस अवसर पर रालसा द्वारा प्रकाशित दो पुस्तकों बाल रचनाएं और एक्शन प्लान (वर्ष 2024-2025) और रालसा चैटबॉट का विमोचन भी किया गया।

कार्यक्रम के दूसरे भाग में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वावधान में राजस्थान स्टेट कॉन्फ्रेंस ऑफ डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज का आयोजन किया गया।

जोरा

वार्ता

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