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सदनों का एजेंडा आखिरी व्यक्ति की आकांक्षाओं के अनुरूप हो: बिड़ला

सदनों का एजेंडा आखिरी व्यक्ति की आकांक्षाओं के अनुरूप हो: बिड़ला

मुंबई, 16 जून (वार्ता) लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला ने संसद, विधान सभाओं में हंगामे और गतिरोध को गंभीर चिंता का विषय बताते हुए कहा कि संसद और राज्यों की विधायिकाओं का एजेंडा देश जनता, खास कर समाज के आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्तियों की आकांक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए।

श्री बिड़ला यहां राष्ट्रीय विधायक सम्मेलन (एनएलसी) के बैनर तले पुणे स्थित एमआईटी स्कूल ऑफ गवगर्नमेंट में देश भर से आये विधानसभाओं और विधान परिषदों सदस्यों के विशाल सम्मेलन के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुय यह बात कही।

श्री बिड़ला ने कहा, “जैसा कि पूर्व वक्ताओं ने भी कहा है संसद और विधानमंडलों के सदनों का एजेंडा समाज के आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्तियों की भावनाओं को ध्यान में रख कर तय होना चाहिए पर आज संसद और विधानमंडलों के सदनों में जिस प्रकार का आचरण हो रहा है वह हम सब के लिए चिंता का विषय है।” उन्होंने कहा कि पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलनों में सदन में अनुशासनहीनता तथा बैठकों की संख्या में कमी इन दो विषयों पर बराबर चिंता व्यक्त की जाती रही है और इन पर बात होती है। श्री बिड़ला ने कहा, “सदनों में नीतियों और मुद्दों पर चर्चा ही न हो तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।”

यहां नवनिर्मित जियो वर्ल्ड सेंटर के विशाल सभागार में गुरुवार से शुरू इस तीन दिन के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में 31 राज्यों से आए सभी दलों के करीब 1500 से अधिक जन प्रतिनिधियों ( विधान सभा और विधान परिषद सदस्यों तथा अध्यक्ष एवं सभापति ) की सभा को लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, डॉ मीरा कुमार, शिवराजपाटिल, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस, राज्य विधान सभा के अध्यक्ष राहुल नारवेकर, एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिर्सिटी, पुणे के संस्थापक डॉ विश्वनाथ डी कराड और कार्यक्रम के संयोजक राहुल वी कराड़ ने भी संबोधित किया।

इससे पहले श्री फडनवीस ने कहा , “आज हमारा एजेंडा मीडिया से तय हो रहा है। हम मीडिया में आने को इतने लालाइत हो गए हैं कि मूल एजेंडा पीछे छूट जाता है।”

लोकसभा अध्यक्ष श्री बिड़ला ने कहा, “सदनों में व्यवधान पैदा करना, कार्रवाई स्थगति कराना” वेल (सदन के बीचो बीच) में आ कर नारेबाजी करना, पढ़ने वाले काजों का फाड़ना क्या हमारे लिए चिंता का विषय नहीं है।” उन्होंने यह कहते हुए कि देश की संसद को लोक तंत्र का मंदिर माना गया है। संसद और राज्यों की विधायिकाएं संविधान के अनुसार चालती है। विधायिका का काम यह सुनिश्चित करना है कि कार्यपालिका संविधान के अनुसार चले। इसी तरह जन प्रतिनिधयों को जन भावनाओं का ध्यान रहे पर‘ क्या , जिन संस्थाओं को हमने मंदिर माना है, जहां हम जतना के कल्याण के लिए अंतिम व्यक्ति के जीवन में सुधार के लिए आते हैं वहां इस तरह का आचरण मर्यादित कहा जा सकता है।”

उल्लेखनीय है कि संसद के पिछले बजट अधिवेशन का पूरा दूसरा भाग हंगामे की भेट चढ़ गया था। श्री बिड़ला ने भारतीय संविधान के रचयिता डॉ भीमराव अंबेडकर की प्रसिद्ध यूक्ति का उद्धरण देते हुए कहा कि कोई संविधान कितना अच्छा है यह उसपर अमल करने वालों पर निर्भर करता है।

उन्होंने कहा कि विधान मंडल लोकतंत्र के ऐसे मंदिर है जिनके माध्यम से हम जन कल्याण का कार्य करने का प्रयास करते हैं। सर्वोच्च जनप्रतिनिधि संस्था होने के कारण हमसे अपेक्षा की जाती है कि हम देश के अन्य संस्थाओं और संगठनों के लिए आदर्श संस्था के रुप में कार्य करें। अनुशासन और शालीनता के उच्च मापदंड बनाए रखे। किसी विधान मंडल की विशिष्टता उसके सदस्यों की भूमिका और आचरण से जुड़ी होती है।

लोक सभा अध्यक्ष ने विश्वास जताया कि एक निजी संस्थान की पहल पर यह अनूठा सम्मेलन प्रतिभागियों को एक दूसरे के अनुभवों से सीखने का बड़ा अवसर प्रदान करेगा और इससे विधायिका के कामकाज में सुधार की दिशा में एक सार्थक बदलाव लाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, “ देश के अलग अलग राज्यों से, अलग अलग राजनीतिक विचारधाराओं के माननीय सदस्य यहाँ पर इस सम्मेलन में आए हैं और इस सम्मेलन में देश की विधायी संस्थाओं के समक्ष वर्तमान समस्याओं या चुनौतियों पर हम चर्चा संवाद करेंगे, मंथन करेंगे और अपने उत्कृष्ट कार्यों और बेस्ट प्रैक्टिस को साझा भी करेंगे। हम हमारी विधायिकाओं को किस प्रकार सशक्त और मजबूत बनाएं, इस पर चर्चा करेंगे।”

उन्होंने कहा कि भारत विश्व का सबसे प्राचीन, विशाल और सबसे जीवंत लोकतंत्र है। हमारे देश में अलग अलग क्षेत्रों में हजारों वर्षों से लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं लोकतांत्रिक संस्थाओं का अस्तित्व रहा है। भारतीय लोकतंत्र की स्वीकार्यता पूरे विश्व में आज भी है। इसी लोकतान्त्रिक विरासत के कारण पूरे विश्व में “लोकतंत्र की जननी ” के रूप में भारत की पहचान है।

श्री बिड़ला ने कहा कि हम हमारे नैतिक बल से समाज को बदल सकते हैं, व्यवस्था बदली जा सकती है। इसके लिए हमें एक स्वस्थ लोकतांत्रिक वातावरण की आवश्यकता है। लोकतंत्र हमारी नैतिक व्यवस्था है, इसलिए हमें अपनी कमियों का आत्म - विश्लेषण करना होगा और भविष्य की चुनौतियों का सही दिशा में समाधान ढूंढना होगा। हमें हमारे लोकतंत्र के मंदिरों यानी विधान मंडलों को गरिमापूर्ण बनाना होगा। लेकिन, हाल में जो विधान मंडलों में घटनाएं घट रही हैं, वे हमारे लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।

उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधयों को इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हम किसी भी दल के हो लेकिन जब हम विधायक चुन लिए जाते हैं तो जनता के विधायक बन जाते हैं। श्री बिड़ला ने कहा कि लोकतंत्र के मंदिर को सशक्त बनाना है तो जनप्रतिनिधयों को जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी बढ़ाना होगा। हमारा संविधान लंबी बहस के बाद आम सहमति से बना है अैर आज भी यह हमारा मार्गदर्शक है। हमारे संविधान में समता, समानता , स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे मूल्यों को अपनाया गया है, इनकी रक्षा कैसे की जाए , इसकी हमें चिंता होनी चाहिए । इसके लिए ही प्रयास होने चाहिए।

मनोहर राम

वार्ता

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