Saturday, Apr 27 2024 | Time 06:51 Hrs(IST)
image
नए सांसद


चुनावी वादाखिलाफी का शिकार, चिमनियों का शहर कानपुर

चुनावी वादाखिलाफी का शिकार, चिमनियों का शहर कानपुर

कानपुर 19 अप्रैल (वार्ता) प्रदूषण और जाम की समस्या से कराहते औद्योगिक नगरी कानपुर के बाशिंदो ने आजादी के बाद हुये हर चुनाव में जातिगत समीकरणों की बजाय विकास के मुद्दे को तरजीह दी लेकिन राजनीतिक दलों की वादाखिलाफी का शिकार यह शहर आज भी बदहाली का दंश झेलने काे मजबूर है।

जनसंख्या घनत्व के मामले में उत्तर प्रदेश में अव्वल यह शहर प्रदूषण के मामले में दुनिया भर में सुर्खियां बटोरता रहा है। धूल और धुयें के उठते गुबार से यहां की आबोहवा श्वांस और हृदय रोगियों के लिये जानलेवा है वहीं जीवनदायिनी गंगा भी इसी शहर में प्रदूषण की सबसे ज्यादा मार झेलती है। शहर के बीचोंबीच से गुजरती अनवरगंज-मंधना रेल लाइन शहर की रफ्तार को सुस्त करने में अहम भूमिका निभाती है।

आटो मोबाइल, रेडीमेड वस्त्र, इलेक्ट्रिक उपकरणों के बड़े निर्माण केन्द्र के अलावा खाद्य पदार्थो की बड़ी मंडी के तौर पर विख्यात कानपुर को एक जमाने में पूरब का मैनचेस्टर कहा जाता था। टेक्सटाइल्स और चर्म उत्पादों की कई मिलों में यहां हजारों श्रमिक काम करते थे। ब्रिटिश टेक्सटाइल कारपोरेशन (बीटीसी), स्वदेशी काटन मिल,म्योर मिल, एल्गिन मिल,जेके जूट मिल और लाल ईमली शहर की शान हुआ करती थी लेकिन मिल्स यूनियनो और राजनेताओं की मिलीभगत से एक एक कर सभी मिलों में तालाबंदी होती चली गयी और आज इनमें से अधिसंख्य मिलों में चमगादड़ों का बसेरा है जबकि कई मिल परिसरों में पुलिस और अन्य विभागों ने कब्जा जमा रखा है।

शत प्रतिशत शहरी आबादी वाले कानपुर के बाशिंदों ने विकास की आस में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समेत अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों को मौका दिया है लेकिन चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधियों ने शहर के विकास पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। नतीजन विकास की दौड़ में यह शहर साल दर साल पिछड़ता चला गया।

आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों की पनाहगार के तौर पर विख्यात कानपुर के बाशिंदो ने लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को सबसे अधिक बार मौका दिया हालांकि पांच विधानसभा क्षेत्रों वाली इस सीट पर 1991, 1996 और 1998 में में भाजपा का कमल खिला। इसके बाद 1999, 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल यहां सांसद चुने गए। वह दो बार केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के उफान में भाजपा के दिग्गज मुरली मनोहर जोशी ने जीत का परचम लहराया।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इस संसदीय सीट की कैंट विधानसभा सीट पर कांग्रेस, आर्यनगर और सीसामऊ सीट पर सपा तथा गोविंद नगर एवं किदवई नगर सीट पर भाजपा ने कब्जा किया। कानपुर में पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था जब कांग्रेस के हरिहर नाथ शास्त्री पहले सांसद चुने गये। दिलचस्प है कि 1952 से लेकर 2009 तक यहां स्थानीय उम्मीदवारों ने ही जीत हासिल की थी जबकि भाजपा ने पिछले चुनाव में बाहरी उम्मीदवार उतार कर भी परचम लहराया।

इस बार भाजपा ने गोविंदनगर क्षेत्र के विधायक सत्यदेव पचौरी पर दांव लगाया है जबकि कांग्रेस ने भी एक बार फिर अपने पुराने धुरंधर श्रीप्रकाश जायसवाल पर भरोसा किया है। यहां सीधी लडाई कांग्रेस और भाजपा के बीच है। श्रीप्रकाश अपने पुराने कामों को गिनाकर वोट मांग रहे है जबकि पचौरी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि को भुनाने का प्रयास कर रहे है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने श्री पचौरी को 2004 के लोकसभा चुनाव में कानपुर से टिकट दिया था लेकिन वह श्रीप्रकाश जायसवाल से लगभग 5638 वोटों से हार गए थे। इसके बाद 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में वह गोविन्द नगर के विधायक बने और अब वह योगी सरकार में मंत्री हैं।

विकास के मुद्दे के साथ सभी दलों को आजमाने के लिये मशहूर कानपुर में 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के हरिहर नाथ शास्त्री सांसद बने थे जबकि 1957 से 1971 तक यहां निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर एस एम बनर्जी ने जीत का परचम लहराया। वर्ष 1977 के चुनाव को जीतकर भारतीय लोक दल के मनोहर लाल यहां के सांसद चुने गये वहीं 1980 में कांग्रेस के आरिफ मोहम्मद खान सांसद बने। वर्ष 1984 में कांग्रेस के नरेश चन्द्र चतुर्वेदी सांसद बने जबकि 1989 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया की सुभाषनी अली ने शहर का प्रतिनिधित्व किया।

वर्ष 1991 में भाजपा ने पहली बार यहां जीत का स्वाद चखा जब भाजपा के जगतवीर सिंह द्रोण को सांसद चुना गया। इसके बाद 1996 और 1998 में भाजपा के द्रोण ने यहां जीत की हैट्रिक जमायी। वर्ष 1999 में कांग्रेस के श्रीप्रकाश ने उन्हे पछाड़ दिया और बाद में 2004 और 2009 में जीतकर जीत की हैट्रिक बनायी।

कानपुर को जाम से निजात दिलाने के लिये कई योजनायें बनायी गयी। अनवरगंज मंधना रेल लाइन को हटाने, मेट्रो रेल चलाने और ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम के आधुनिकीकरण जैसी तमाम योजनायें फिलहाल ठंडे बस्ते में है। कानपुर से दिल्ली के बीच पिछले दो दशकों में सिर्फ दो ट्रेन मिली। नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में भी यह शहर पिछड़ा ही रहा। कई बार अहिरवां हवाई अड्डे से अन्य शहरों के लिये हवाई उड़ाने शुरू की गयी जो कुछ समय बाद दम तोड़ गयी। इसके बावजूद शहर के विकास के लिये मोदी सरकार की तमाम परियोजनाये गिनाकर भाजपा अपने उम्मीदवार के पक्ष में वोट की अपील कर रही है। उसका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में पनकी में 1980 मेगावाट के बिजलीघर की अनुमति मिली। कानपुर-सागर हाईवे का चौड़ीकरण हुआ। कांशीराम ट्रामा सेंटर मिला। हवाई सेवाएं मिलीं।

अब देखना दिलचस्प होगा कि हिन्दू बाहुल्य इस क्षेत्र में 29 अप्रैल को चौथे चरण के मतदान में यहां के बाशिंदे कांग्रेस के श्रीप्रकाश को गले लगायेंगे या फिर श्री नरेन्द्र मोदी की योजनाओं से आकर्षित होकर भाजपा उम्मीदवार की विजय का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

प्रदीप जय

वार्ता

There is no row at position 0.
image