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बिजनेस


एचसीआई को केंद्र द्वारा खारिज करने से छिड़ी बहस

मुम्बई 21 अक्टूबर (वार्ता) विश्व बैंक के ह्युमैन कैपिटल इंडेक्स (एचसीआई) में भारत के खराब प्रदर्शन से देश के भीतर इस इंडेक्स के मानकों को लेकर एक नयी बहस शुरू हो गयी है। सरकार ने जहां इस इंडेक्स की उपादेयता और रैकिंग निर्धारण की प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाये हैं, तो वहीं कई अर्थशास्त्री इससे सबक लेने की सलाह दे रहे हैं।
विश्व बैंक ने गत 11 अक्टूबर को यह सूचकांक पहली बार जारी किया, जिसमें शामिल कुल 157 राष्ट्रों में भारत 115वें पायदान पर है और पाकिस्तान 134वें पर। इस सूचकांक में पहला स्थान सिंगापुर का है जबकि चाड अंतिम पायदान पर है। दक्षिण कोरिया दूसरे, जापान तीसरे, हांगकांग और चीन चौथे तथा ब्रिटेन 15वें और अमेरिका 24वें स्थान पर है।
इस सूचकांक ने न सिर्फ स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों की अनदेखी करने के परिणामों से अवगत कराया है बल्कि इससे वैश्विक मंच पर यह परिचर्चा भी शुरू हो गयी है कि ह्युमैन कैपिटल का निर्माण बुनियादी ढांचों के निर्माण जितना ही महत्वपूर्ण है।
बिलियन प्रेस के मुताबिक एचसीआई ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला है कि व्यक्ति का ह्युमैन कैपिटल के रूप में निर्माण सड़क, पुल और भौतिक पूंजी बनाने जितना ही जरूरी है और ये दोनों मिलकर ही आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं। हालांकि भारत में एचसीआई को लेकर सरकारी महकमे में नाराजगी है और उन्हें यह सूचकांक उतना रास नहीं आ रहा है।
वित्त मंत्रालय का कहना है कि इन सूचकांक काे मापने के मानक बहुत ही धीमी गति से परिणाम दिखाने वाले हैं। इसके कारण कोई भी सूचकांक में बेहतरी लाने के लिये कोई कार्यक्रम शुरू करने में ज्यादा उत्साहित नहीं हो सकता है। व्यस्कों के जीवित रहने की दर, बच्चों का बौनापन और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर ऐसे संकेतक हैं ,जिनमें कंप्यूटिंग जैसे कारोबार में सरलीकरण (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) में प्रयुक्त प्रक्रियात्मक संकेतकों की तुलना में धीमी गति से परिवर्तन आता है।
इस सूचकांक के महत्व को खारिज किये जाने पर तक्षशिला इंस्टीट्यूट के अर्थशास्त्री एवं सीनियर फेलो अजित रानाडे का कहना है कि भारत, जो विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग रिपोर्ट में रैंकिंग में सुधार पर गर्व करता हो, उसके द्वारा सिर्फ रैंकिंग में पीछे रहने के कारण इस सूचकांक को खारिज करना बहुत ही अजीब है। वास्तव में प्रतिस्पर्धा दूसरे देशों के साथ नहीं है, बल्कि अपने साथ है और अपने अतीत के साथ है।
अर्चना
जारी वार्ता
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