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जींद कांड: तथ्य जांच समिति में दो मंत्रियों को शामिल करने पर सवाल

चंडीगढ़, 25 अप्रैल (वार्ता) हरियाणा के जींद जिले एक सरकारी कन्या विद्यालय में छात्राओं से तथाकथित यौन उत्पीड़न की घटनाओं की तथ्य जांच समिति में दो मंत्रियों को शामिल करने पर सवाल उठने लगे हैं।
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के वकील हेमंत कुमार ने वीरवार को यहाँ बताया कि मंगलवार को हरियाणा विधानसभा सचिवालय की तरफ से प्रदेश सरकार के गजट में प्रकाशित एक अधिसूचना के आदेशानुसार पिछले साल 22 दिसम्बर को गठित तथ्य-जांच समिति (फैक्ट फाइंडिंग कमेटी) में प्रदेश की नायब सिंह सैनी सरकार के दो राज्य मंत्रियों शिक्षा राज्यमंत्री सीमा त्रिखा (अध्यक्ष) जबकि परिवहन राज्यमंत्री असीम गोयल (सदस्य) को नामित किया गया है।
हरियाणा विधानसभा के दिसम्बर, 2023 के शीतकालीन सत्र में जींद जिले के उचाना मंडी
के राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल के तत्कालीन प्राचार्य करतार सिंह द्वारा वर्ष 2005 से 2023 के दौरान कई छात्राओं से तथाकथित यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर चर्चा के बाद विधानसभा अध्यक्ष द्वारा एक तथ्य जांच समिति का गठन किया गया था, जिसके अध्यक्ष तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री कँवर पाल बनाये गये थे और समिति में उनके अतिरिक्त अम्बाला शहर से भाजपा विधायक असीम गोयल, रोहतक से कांग्रेस विधायक भारत भूषण बतरा, जुलाना से जजपा विधायक अमरजीत ढांडा एवं हरियाणा के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल ) बलदेव राज महाजन को उक्त कमेटी में विशेष आमंत्री बनाया गया था। अब, पिछले महीने श्री मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री पद से हटने और श्री नायाब सिंह सैनी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी सरकार में स्कूली शिक्षा विभाग सीमा त्रिखा को कँवर पाल
के स्थान पर अध्यक्ष बनाया गया है। पहले से कमेटी के सदस्य भाजपा विधायक असीम गोयल जो अब हालांकि नायब सैनी सरकार में परिवहन राज्यमंत्री हैं, को भी समिति में कायम रखा गया है। इसलिए अब उक्त समिति में प्रदेश सरकार के दो राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हो गये हैं।
श्री कुमार के अनुसार हरियाणा विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली के नियम संख्या 204 (1 ), जैसा आज तक संशोधित है एवं जो नियम सदन की समितियों के सामान्य नियमों से सम्बंधित है, के अनुसार सदन द्वारा गठित की जाने वाली विभिन्न कमेटियों में कार्य सलाहकार समिति और प्रवर समिति को छोड़कर किसी अन्य कमेटी में मंत्री को सदस्य के रूप में नामित नहीं किया जायेगा। वहीं अगर किसी समिति में शामिल सदस्य को मंत्री के तौर पर नियुक्त किया जाता है, तो वह मंत्री पद पर नियुक्ति की तिथि से उस समिति का सदस्य ही नहीं रहेगा।
श्री कुमार के अनुसार हालांकि इसमें दोराय है कि क्या तथ्य जांच समिति को प्रवर समिति कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि विधानसभा सदन के प्रस्ताव पर स्पीकर द्वारा गठित तथ्य-जांच कमेटी के कार्य-क्षेत्र में प्रदेश सरकार के किसी राजकीय विभाग (वर्तमान मामले में स्कूली शिक्षा विभाग) के अधीन नियमित सेवा में नियुक्त किसी आरोपी अधिकारी/कर्मचारी के आचार-व्यवहार की जांच आदि का विषय हो, तो उसी विभाग के राज्यमंत्री (सीमा त्रिखा) को ऐसी गठित विधायी कमेटी का चेयरपर्सन बनाना न्यायोचित नहीं है, क्योंकि जब कमेटी की अंतिम रिपोर्ट राज्य सरकार के पास जायेगी तो बतौर शिक्षा राज्यमंत्री को ही उस पर अपनी आधिकारिक टिप्पणी देकर कर उसे आगे मुख्यमंत्री को अंतिम निर्णय के लिए भेजना होता है। अब अगर शिक्षा राज्यमंत्री ही उस कमेटी का अध्यक्ष रहा हो, तो समिति की रिपोर्ट पर बाद में मंत्री के तौर पर उससे संबद्ध होना शासनिक और प्रशासनिक दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। श्री कुमार के अनुसार यदि मुख्यमंत्री के आदेशों से गठित किसी कैबिनेट सब-कमेटी या किसी सरकारी कमेटी, जो विधानसभा सदन से बाहर राज्य सरकार द्वारा गठित की जाती है, उसमें सम्बन्धित विभाग के मंत्री बतौर अध्यक्ष बन सकते हैं क्योंकि उस समिति का दर्जा विधायी कमेटी का नहीं होता। संसदीय कार्यप्रणाली में विधायिका और कार्यपालिका के कार्य क्षेत्रों में स्पष्ट अंतर एवं एक विभाजन रेखा होती है।
महेश.श्रवण
वार्ता
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