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झांसी: महाकाली के दर पर सिर झुकाकर इंदिरा ने पाया था दोबारा राजयोग

झांसी: महाकाली के दर पर सिर झुकाकर इंदिरा ने पाया था दोबारा राजयोग

झांसी 23 अक्टूबर (वार्ता) बुंदेलखंड की वीरांगना नगरी झांसी स्थित महाकाली विद्यापीठ मंदिर की महिमा यूं पूरे क्षेत्र में विख्यात है और लोग इस शक्ति को मानते हैं। इस सिद्धपीठ की शक्ति को स्वीकारने और उसके आगे नतमस्तक होने वाले बड़े नामों में एक नाम देश की सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री मानी जाने वाली इंदिरा गांधी का भी है जिन्होंने मुसीबत के समय माई के दर पर सिर झुकाया और मां का आर्शीवाद पाकर एक बाद फिर राजयोग प्राप्त किया।

महाकाली विद्यापीठ मंदिर को सिद्धपीठ बनाने वाले मंत्रशास्त्री प़ं प्रेम नारायण त्रिवेदी के नाती और फिलहाल मंदिर के व्यवस्थापक और संचालक प़ं गोपाल त्रिवेदी ने यूनीवार्ता से शुक्रवार को खास बातचीत में मंदिर के गौरवशाली इतिहास से जुडे इस वाकये को उजागर करते हुए बताया कि 1977 में सत्ता से बाहर होकर क्षीण हुई कांग्रेस में एक फिर से नवऊर्जा का संचार करने का उपाय खोजती श्रीमती गांधी भगवती मां काली के दरबार में सिर झुकाने पहुंची थी। माई का ही आर्शीवाद प्राप्त कर ही उन्होंने कांग्रेस का चुनाव चिंह बदला था ,आज कांग्रेस का चुनाव चिंह “ पंजा ” इसी सिद्धपीठ की देन है।

पंडित त्रिवेदी ने बताया कि उनके दादा जी प़ं प्रेम नारायण त्रिवेदी ने झांसी में सबसे पहले 1965 में शाक्त मंडल की स्थापना की थी और मंदिर में लक्षचंडी यज्ञ कराया था। इसके बाद उनको मां भगवती की प्रेरणा हुई और उसी दौरान वह कांग्रेस के कद्दावर नेता और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कमलापति त्रिपाठी के संपर्क में आये। धीरे धीरे श्री त्रिपाठी का इस मंदिर में आगमन प्रारंभ हुआ और इस दौरान उन्हें मेरे दादा जी , जो गुरूजी के नाम से विख्यात थे , उनके ज्ञान और सिद्धी के बारे में काफी गहनता से पता चला। कांग्रेसी नेता श्रीमती गांधी के करीबी नेताओं में से थे और 1977 में जब कांग्रेस निस्तेज हो सत्ता से बाहर हो गयी थी। देश में कांग्रेस विरोधी जबरदस्त लहर थी ऐसे में दोबारा कांग्रेस के वैभव को लौटाने को लेकर श्रीमती गांधी बेहद परेशान थीं।

कांग्रेस को इन मुश्किल हालातों से बाहर निकालने के लिए श्रीमती गांधी ने कई शक्ति पीठों की यात्रा की और सिर झुकाया और इसी क्रम में कमलापति त्रिपाठी के माध्यम से उन्हें झांसी की सिद्धपीठ माँ भगवती के मंदिर के बारे में जानकारी हुई और वह माई के दर्शनों के लिए 1978 में झांसी आयी। यूं तो श्रीमती गांधी उस समय प्रधानमंत्री नहीं थी लेकिन फिर भी उनके साथ एक बडा लाव -लश्कर यहां आया लेकिन उस समय कांग्रेस का प्रभाव देश में काफी कमजोर हो चुका था। उन्होंने पं प्रेम नारायण त्रिवेदी से मुलाकात की । पंडित जी से मुलाकात के दौरान भी वह काफी पसोपेश में थीं और उन्होंने पूछा कि पंडित जी मुझे बताएं कि मेरे मन में क्या चल रहा है इस पर प़ं त्रिवेदी ने कहा कि आप मां भगवती से बहुत सूक्ष्म मांग रही हो और मैं आपके मुख को देखकर यह जान रहा हूं कि जो आप मांग रही हो उससे बहुत अधिक आपको मिलने वाला है।

इस पर श्रीमती गांधी और अधीर हो उठीं और उन्होंने पंडित जी से कहा कि मैं नहीं समझ पार रही हूं कि मुझे क्या मिलने वाला है। तो पंडित जी ने कहा कि मैं आपके मुखमंडल से आपको देश का प्रधानमंत्री दोबारा बनते देख रहा हूं। पंडित जी की यह बात सुनकर वह अवाक रह गयीं और कहा कि इस समय कांग्रेस के लिए देश में हालात बेहद विपरीत हैं और आप दोबारा प्रधामंत्री बनने की बात कह रहे हैं यह कैसे संभव है। पंडित जी ने कहा कि यह निश्चित होगा। मां भगवती की कृपा आप पर हैं और आप देश की सत्ता हासिल करेंगी और आपका वैभव पुन: लौटेगा।

कांग्रेस में पुर्नजीवन लाने के उपाय के बारे में श्रीमती गांधी ने काफी अनुरोध कर पूछा तो पंडित जी ने उन्हें मंदिर में एक विशेष पूजन कराने को कहा। पूजन के बाद पंडित जी ने श्रीमती गांधी को कहा कि मां भगवती प्रेरणा दे रहीं हैं कि आप अपना चुनाव चिंह बदलें। हो सकता है कि इससे कांग्रेस में नवऊर्जा का संचार हो और आपकी पार्टी को नवजीवन मिले। इसके बाद श्रीमती गांधी ने नया चुनाव चिंह के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मां का आर्शीवाद हाथ के रूप में होता है तो आप अब हाथ के निशान को ही पार्टी का चुनाव चिंह बनाये ।

श्रीमती गांधी की अधीरता अब भी कम नहीं हुई और उन्होंने पंडित जी से फिर पूछा कि मां भगवती की कृपा मुझ पर हुई है इसका कोई संकेत होगा , यह हमें पता कैसे चलेता। इस पर पंडित जी ने बताया कि चुनाव परिणामों में जब तीन चौथाई से अधिक मत आपकी पार्टी को मिलने लगे तो समझ जाइयेगा कि आप जो भगवती मां काली के दरबार से ले जा रहीं हैं उसे माई ने आपको वहां प्रदान कर दिया है और आपके वैभव के पुनआर्गमन का समय आ गया है।

मां का आर्शीवाद ले श्रीमती गांधी ने अगला लोकसभा चुनाव पार्टी के पुराने चिंह “ गाय बछडे ” के स्थान पर ,नये चिंह “ हाथ ” के साथ लडा। चुनाव के शुरूआती परिणामों में स्थिति कांग्रेस के विपरीत नजर आने लगी और व्याकुल श्रीमती गांधी ने श्री त्रिपाठी से इस बारे में बात की। जिसके बाद श्री त्रिपाठी ने पंडित जी ने बात की और उन्हें श्रीमती गांधी की व्याकुलता के बारे में बताया जिस पर पंडित जी ने उन्हें माई के चरणों का नारियल प्रदान किया और सब ठीक होने का आर्शीवाद दिया । बस उसी के बाद नये नये क्षेत्रों के बैलेट पेपर के परिणाम सामने आने लगे और स्थिति कांग्रेस के पक्ष में बनती गयी तथा आखिर में अभूतपूर्व बहुमत से कांग्रेस ने यह चुनाव जीता और इस अप्रत्याक्षित जीत के बाद एक बार फिर लेकिन इस बार प्रधानमंत्री के रूप में श्रीमती गांधी भगवती मां काली के द्वार पर पहुंची।

इस सिद्धपीठ और भगवती मां काली की अकथनीय शक्ति ने देश की सबसे शक्तिशाली मानी जाने वाली प्रधानमंत्री को अपनी शक्ति का एहसास कराया और उन्होंने दो बार माँ के चरणों में शीश नमन किया दूसरी बार मां के आर्शीवाद के रूप में मिला “ पंजा ” उन्होंने मंदिर में भी चढाया था।

सोनिया

वार्ता

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