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बांका संसदीय सीट से चुनावी चौका लगाने की फिराक में गिरधारी यादव, दूसरी बार जीत की आस में जयप्रकाश

पटना, 20 अप्रैल (वार्ता) लोकसभा चुनाव 2024 में बांका संसदीय सीट पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक जनता दल यूनाईटेड (जदयू) प्रत्याशी गिरधारी यादव जहां इस सीट से चुनावी चौक लगाने की फिराक में है, वहीं इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया गठबंधन) के घटक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रतयाशी पूर्व सांसद जय प्रकाश नारायण यादव एक बार फिर इस सीट पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश करेंगे।
जदयू उम्मीदवार गिरधारी यादव ने वर्ष 1999, 2004 और वर्ष 2019 में बांका संसदीय सीट से जीत हासिल की है। श्री यादव बांका संसदीय सीट से चुनावी चौका लगाने की फिराक में है। राजद प्रत्याशी जय प्रकाश नारायण यादव ने वर्ष 2014 के चुनाव में बांका सीट पर राजद का विजयी पताका लहराया था। जदयू के गिरधारी यादव और राजद के जय प्रकाश नारायण यादव बांका संसदीय सीट पर तीसरी बार आमने-सामने हैं।
बांका लोकसभा क्षेत्र वर्ष 1957 में अस्तित्व में आया। बांका लोकसभा सीट से बिहार के कई दिग्गजों ने चुनाव लड़ा। इनमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. चंद्रशेखर सिंह, श्री सिंह की पत्नी मनोरमा सिंह, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडीस, दिग्विजय सिंह शामिल रहे। बांका संसदीय सीट से अबतक तीन महिलाएं पांच बार जीत दर्ज कर चुकी है। वहीं दो बार यह सीट निर्दलीय प्रत्याशी के जीतने के कारण भी चर्चा में रही। वर्ष 1957 में हुये चुनाव में कांग्रेस की शकुंतला देवी ने जीत हासिल की। शकुन्तला देवी 1962 के चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरीं और जीतीं। हालांकि वर्ष 1967 के चुनाव को भारतीय जनसंघ के बेनी शंकर शर्मा ने जीता।उन्होंने काग्रेस की शुकंतुला देवी के हैट्रिक बनाने के सपने को चूर कर दिया। वर्ष 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर वापसी की और शिव चंद्रिका प्रसाद ने जीत हासिल की।
वर्ष 1973 में तत्कालीन सांसद शिव चंडिका प्रसाद के असामयिक निधन से खाली हुई बांका सीट से उपचुनाव लड़ने पहली बार मधु लिमये बांका आये थे। महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले मधु लिमये मराठी होने के बावजूद लगातार दो-दो बार बांका और मुंगेर यानी कुल चार बार बिहार से जीत कर संसद पहुंचे थे। गोवा मुक्ति आंदोलन से सुर्खियों में आये मधु लिमये के लिए बांका में अपनी सियासी पैठ जमाना चुनौती थी। छात्र आंदोलन और आपातकाल के बाद समाजवाद की जड़ें जमनीं शुरु हुई। इसके पहले हर जगह कांग्रेस का किला अभेद्य बना हुआ था। लेकिन आपातकाल से पूर्व ही समाजवादी दिग्गज मधु लिमये ने 1973 में बांका संसदीय सीट से चुनाव जीतकर कांग्रेस के किले को ढहा दिया था। देश के दूसरे बड़े समाजवादी नेता राजनारायण भी बांका पहुंच गये। वह उत्तरप्रदेश में बनारस के रहने वाले थे। इससे पूर्व वह वर्ष 1971 के चुनाव में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से रायबरेली सीट हारकर वे बांका पहुंचे थे। दोनों ही तरफ से समाजवादी धारा के दिग्गजों का बांका में जुटान हुआ।मधु लिमये की जीत हो गयी, राज नारायण पराजित हुये। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के बरगद चुनाव चिह्न से मधु लिमये जीत गये। राजनारायण तब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी थे।मधु लिमये जयप्रकाश आंदोलन में लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देने वाले पहले सांसद थे। संवैधानिक प्रावधानों के दुरुपयोग के माध्यम से इंदिरा गांधी द्वारा अपने कार्यकाल के अनैतिक विस्तार पर श्री लिमये ने लोकसभा की सदस्यता से विरोध में इस्तीफा दे दिया।जनता के बीच में लगातार सक्रियता से न सिर्फ 1973 के उपचुनाव, बल्कि 1977 के चुनाव में भी मधु लिमये विजयी रहे।इस दौरान श्री लिमये के विरोधी उम्मीदवारों ने 'बिहारी बनाम बाहरी' का नारा दिया। उनके विरोध में कांग्रेसियों ने 'बम्बईया बाहर जाओ' का नारा भी लगाया गया. लेकिन मधु लिमये बराबर जनता की पहली पसंद बने रहे! बिहार के सियासी जनमानस ने उन्हें अपार स्नेह दिया।
वर्ष 1977 में भारतीय लोक दल (बीएलडी) के टिकट पर मधु लिमये जीते।उनके मुकाबले में कांग्रेस प्रत्याशी चंद्रशेखर सिंह थे। कांग्रेस प्रत्यासी श्री सिंह से करीब तीन गुणा अधिक वोट मधु लिमये की झोली में आए। उन्हें 2.39 लाख मत मिले, जबकि चंद्रशेखर सिंह करीब 79 हजार वोट में ही सिमट गये। वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई चाहते थे कि मधु लिमये भी सरकार में शामिल हों लेकिन मधु लिमये ने मंत्री बनने के बजाय संगठन में बने रहने को प्राथमिकता दी। समाजवादी लिमये ने केंद्र में मंत्री बनना स्वीकार नहीं किया। अपने बदले उन्होंने अपने मित्र जार्ज फर्नाडिज की सिफारिश की थी।
चन्द्रशेखर सिंह ने पहली बार 1980 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंदिरा) के टिकट पर जीत हासिल की। इस चुनाव में चंद्रशेख सिंह ने जनता पार्टी (सेक्युलर) के उम्मीदवार मधु लिमये को पराजित किया।मधु लिमये के चुनाव की बागडोर जॉर्ज फर्नांडीस संभालते थे।ढाकामोड़ स्थित सोशलिस्ट पार्टी के लीडर हरिशंकर सहाय के घर पर मधु लिमये के साथ वे सभी चुनावी रणनीति बना रहे थे। जॉर्ज फर्नांडीस चुनाव के लिए मुंबई से एक गाड़ी भरकर साजो समान लाये थे। इसमें बैनर, पोस्टर इत्यादि सामग्री थी। चंदा से इकट्ठा धनराशि का भी प्रबंध कर लाये थे, लेकिन मधु लिमये ने संसाधन और पैसे लेने से साफ मना कर दिया।मधु लिमये ने साफ शब्दों में जॉर्ज से कहा-‘कुछ भी हो जाये जॉर्ज जी मैं पैसे की राजनीति नहीं करूंगा.’ उन्होंने पैसा सहित सभी समान को लेने से सम्मान पूर्वक मना कर दिया। जार्ज साहब सभी चुनावी सामग्री और पैसे लेकर वापस लौट गये. जाते-जाते जॉर्ज फर्नांडिस ने पार्टी के कार्यकर्ताओं से कहा-अबकी मधु जी चुनाव हार गये. हुआ भी कुछ ऐसा ही।इस चुनाव के बाद मधु लिमये ने एक प्रकार से बांका की राजनीति से किनारा कर लिया।
वर्ष 1983 में मुख्यमंत्री बनने बाद चंद्रशेखर सिंह ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। वर्ष 1984 में श्री कृष्ण सिंह की पत्नी मनोरमा सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और भाजपा के जर्नादन यादव को मात दी। 1985 के संसदीय उपचुाव में फिर चन्द्रशेखर सिंह यहां से चुनाव जीते थे। लेकिन उनके निधन के बाद 1986 में हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी मनोरमा सिंह चुनाव जीतीं। वर्ष 1989 में कांग्रेस के विजय रथ को जनता दल के उम्मीदवार ने रोका। प्रताप सिंह जमुई के गिद्धौर देसी रियासत के वंशज थे। बांका की जनता और अधिकतर नेता उन्हें राजा साहेब के नाम से ही पुकारती थी। प्रताप सिंह ने अपने समधी एवं पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के कहने पर जनता दल से पहली बार 1989 में बांका लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मनोरमा सिंह को पराजित किया।इसके बाद प्रताप सिंह ने 1991 में भी जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस की मनोरमा सिंह को पराजित किया। इस चुनाव में एक और नेता दिग्विजय सिंह का पर्दापण हुआ।दिग्विजय सिंह हालांकि हार गये लेकिन इस चुनाव से दिग्विजय सिंह ने बांका में सियासी लकीर खींच दी थी। इसके सहारे उन्होंने भविष्य में बांका को अपने लिए मुफीद बना लिया।दिग्विजय सिंह का भी गिद्धौर राजघराने से ही संबंध था।
वर्ष 1996 में जनता दल उम्मीदवार गिरधारी यादव जीते, समता पार्टी उम्मीदवार दिग्विजय सिंह दूसरे और कांग्रेस प्रत्याशी मनोरमा सिंह तीसरे नंबर पर रही। वर्ष 1998 में समता पार्टी के दिग्विजय सिंह ने राजद प्रत्याशी गिरधारी यादव को पराजित किया। वर्ष 1999 में भी दिग्विजय सिंह, ने जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर जीत हासिल की। निर्दलीय प्रत्याशी गिरधारी यादव दूसरे जबकि राजद प्रत्याशी शकुनी चौधरी तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 2004 में राजद के गिरधारी यादव यादव ने जदयू के दिग्वजिय सिंह को मात दे दी।
वर्ष 2009 में जदयू से टिकट नहीं मिलने पर दिग्विजय सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ा। इस चुनाव में श्री सिंह का मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी गिरधारी यादव, राजद प्रत्याशी जय प्रकाश नारायण यादव और जदयू प्रत्याशी दामोदर रावत से हुआ, बावजूद इसके दिग्वजिय सिंह ने अपने प्रतिद्धंदियों को धूल चटा दी। दिग्विजय सिंह ने निधन के बाद वर्ष 2010 के हुये उपचुनाव में दिग्विजय सिंह की पम्नी पुतुल कुमारी सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में राजद के जय प्रकाश नारायण यादव को पराजित कर जीत हासिल की। वर्ष 2014 में राजद प्रत्याशी जय प्रकाश नारायण यादव ने भाजपा की पुतुल कुमारी को पराजित किया। 2019 के चुनाव में जदयू के गिरधारी यादव ने बाजी अपने नाम की, इस चुनाव में राजद के जय प्रकाश नारयण यादव दूसरे जबकि निर्दलीय उम्मीदवार पुतुल कुमार तीसरे नंबर पर रही।
समाजवादी राजनीति के धुरंधर जार्ज फर्नांडीस बांका को बंबई बनाने का सपना देखकर बांका की धरती पर उतरे थे। जार्ज फर्नाडींस, मधुलिमिये के दोस्त थे जो वर्ष 1973 से बांका संसदीय चुनाव लड़ते रहे थे। इस दौरान स्व. जॉर्ज उनके स्टार प्रचारक के रूप में बांका पहुंचते थे। धीरे-धीरे बांका से उनका इस कदर लगाव बढ़ा की स्व. जॉर्ज ने भी बांका में जमीन तलाशनी शुरू कर दी थी।वह दो संसदीय चुनाव जनता पार्टी के टिकट पर बांका से लड़े, लेकिन उन्हें दोनों बार हार का सामना करना पड़ा।पहली बार वह बिहार के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के दिग्गज चंद्रशेखर सिंह से 1985 का संसदीय चुनाव हारे। उनके निधन पर 1986 में हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी मनोरमा सिंह से जार्ज साहब को हार का सामना करना पड़ा।जॉर्ज साहब ने बांका के युवाओं के लिए ‘युवक जीना है तो मरना सीखो-कदम कदम पर लड़ना सीखो का नारा दिया था।
बांका संसदीय सीट पर अबतक हुये लोकसभा चुनाव में भाजपा का ‘कमल’ नहीं खिला है। वहीं एक समय बांका कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन डेढ़ दशक से कांग्रेस यहां अपना उम्मीदवार नहीं उतार पा रही।
बांका संसदीय क्षेत्र कुल छह विधानसभा क्षेत्र बांका, अमरपुर, कटोरिया, बेलहर, धोरैया, सुल्तानगंज शामिल है। सुल्तानगं,अमरपुर और बेलहर मे जदयू,बांका और कटोरिया में भाजपा जबकि धोरैया में राजद का कब्जा है।लोकसभा चुनाव 2024 में बांका संसदीय क्षेत्र से जदयू और राजद समेत दस उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इस क्षेत्र में 18 लाख 58 हजार 566 मतदाता हैं। इनमें पुरूष मतदाता 0 9 लाख 79 हजार 126, महिला मतदाता 08 लाख 79 हजार 412 और थेर्ड जेंडर 28 हैं, जो 26 अप्रैल को इन दस उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में लॉक कर देंगे।
प्रेम सूरज
वार्ता
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