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माघी पूर्णिमा स्नान के साथ ही समाप्त हुआ कल्पवास

माघी पूर्णिमा स्नान के साथ ही समाप्त हुआ कल्पवास

कुंभ नगर,17 फरवरी (वार्ता) पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलीला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती की रेती पर कुम्भ में पौष पूर्णिमा स्नान के साथ ही संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन का 'कल्पवास' माघी पूर्णिमा स्नान के साथ ही खत्म हो गया और कल्पवासियों की घर वापसी शुरू हो गयी।

त्रिवेणी में आध्यात्मिक संबल देने वाली रेती पर बसे तंबुओं की अस्थायी नगर में कल्पवासी आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक माह का कल्पवास करता है। श्रद्धालु यहाँ एक महीने तक संगम तट पर निवास करते हुए जप, तप, ध्यान, साधना, यज्ञ एवं दान आदि विविध प्रकार के धार्मिक कृत्य करते हैं। कल्पवास का वास्तविक अर्थ है काया और कल्प। यह कायाकल्प शरीर और अन्तःकरण दोनों का होना चाहिए। इसी द्विविध कायाकल्प के लिए पवित्र संगम तट पर जो एक महीने का वास किया जाता है उसे कल्पवास कहा जाता है।

वैदिक शोध एवं सांस्कृतिक प्रतिष्ठान कर्मकाण्ड प्रशिक्षण केन्द्र के आचार्य डा आत्माराम गौतम ने बताया कि पौष पूर्णिमा से ही एक महीने के कल्पवास का भी आरंभ हो जाता है और माघी पूर्णिमा के स्नान के साथ ही इसका समापन होता है। कल्पवासी इसी दिन अपने घरों के लिए रवाना हो जाते हैं।

उन्होंने बताया कि कल्पवासी तीर्थपुरोहितों के आचार्यत्व में मंत्रोच्चार के बीच मां गंगा और भगवान वेणी माधव एवं पूर्वजों का स्मरण कर त्याग और तपस्या के 21 नियमों काे निष्ठा भक्ति के साथ निभाते हैं। कल्पवासी अपने शिविर के बाहर दरवाजे पर तुलसी का बिरवा लगाते हैं और जौ बोते हैं। प्रात:काल स्नान के बाद यहां जल अर्पित करते हैं और सांध्य बेला में दीपक जलाते हैं। डा गौतम ने कहा कि घर वापसी के समय कल्पवासी प्रसाद स्वरूप इसे अपने साथ लेकर जाते हैं। कल्पवास समाप्त कर जब श्रद्धालु अपने घर पहुंचते हैं तब परिजन इनका आदर भाव से पूजा (सम्मान) करते हैं। लोगों का मानना है कि एक मास तक त्रीवेणी तट पर कल्पवास करने वाले में पवित्रता के साथ भगवान का वास होता है। इसलिए इनके पैरों को जल से धोकर घरों में छिडकाव करने के साथ ही परिजन आचमन भी करते हैं।

इस मास में देवी-देवताओं का संगम तट पर निवास करते हैं। इससे कल्पवास का महत्त्व बढ़ जाता है। मान्यता है कि माघ पूर्णिमा पर ब्रह्म मुहूर्त में नदी स्नान करने से शारीरिक समस्याएं दूर हो जाती हैं। इस दिन तिल और कंबल का दान करने से नरक लोक से मुक्ति मिलती है।

उन्होने बताया कि माघी पूर्णिमा ही वह दिन है जब कल्पवासियों और तीर्थयात्रियों का एक माह का कल्पवास पूर्ण हो जाता है। इसके बाद कल्पवासी सूर्योदय से पहले संगम में स्नान करके मां गंगा की आरती और पूजा करते हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार साधु, सन्यासियों, ब्राह्मणों और गरीबों को दान करते हैं। इसके बाद कल्पवासी अपनी कुटिया में यज्ञ और हवन भी करते हैं और मां गंगा का आभार व्यक्त करते हुए अपने अपने घरों को लौट जाते हैं

संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन का ही 'कल्पवास' नहीं होता बल्कि उस दिनचर्या (एक माह तक ठंडे जल में स्नान करने, एक समय भोजन , जमीन पर शयन और आध्यात्मिक विचार)से उनके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढोत्तरी होती है। डा गौतम ने बताया कि कुंभ हमारी सभ्यता का संगम है, आत्म जागृति का प्रतीक है, मानवता का अनंत प्रवाह है, प्रकृति और मानवता का संगम, ऊर्जा का स्रोत। मानव जाति को पाप-पुण्य का प्रकाया-अंधकार का एहसास कराता है।

प्रयागराज में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम स्थल पर कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। तीर्थराज प्रयाग में संगम के निकट हिन्दू माघ महीने में कल्पवास करते हैं। पौष पूर्णिमा से कल्पवास आरंभ होता है और माघी पूर्णिमा के साथ संपन्न होता है। पिछले एक माह से संगम किनारे घर गृहस्थी से दूर रहकर जप-तप कर रहे लोगों का कल्पवास आज पूरा हो गया और कल्पवासी अपने-अपने घरों को लौटना शुरू कर दिया।

कल्पवास के लिए सास-ससुर की सेवा कर रही चन्देलनपुरा निवासी मीनाक्षी द्विवेदी ने बताया कि इस दौरान जो सामान उनके पास बचा था उसका अधिकांश भाग वह शिविर के पंडा को दान देकर अगले साल फिर से आने का संकल्प लेकर घर जाने की तैयारी कर रहे हैं। पिछले एक माह से संगम की रेती पर कल्पवास कर रहे सैकड़ों परिवार आज माघी पूर्णिमा स्नान के बाद फिर से गृहस्थ जीवन में प्रवेश करेंगे।

उन्होंने बताया कि एक माह के दौरान कठिन तपस्या एवं जप-तप के साथ जीवनयापन करने वाले कल्पवासी विभिन्न कठिन परिस्थितियों में संगम तट पर रहकर अपना जीवनयापन करने के साथ ही पूरा समय पूजा-पाठ करने में ही बिताते है। इस एक माह के दौरान उनको घर परिवार के साथ ही गृहस्थ जीवन के बारे में कोई चिंता नहीं रहती है। शिविर में कुछ परिवार ऐसे है जो कई कुंभ से कल्पवास करते आ रहे हैं।

सर्दी-गर्मी-बरसात के साथ ही हर मौसम में मिलने वाली कठिनाइयों को झेलते हुए यह कल्पवासी पूरा एक माह संगम तट पर रहकर जीवनयापन करने के साथ ही पूजा-पाठ और सादा जीवन जीते है। इस दौरान इनका पूरा समय पूजा-पाठ में ही व्यतीत होता है।

आज माघी पूर्णिमा के स्नान के बाद कुंभ में बसे कल्पवासी अपने-अपने घरों को जाने की तैयारी में जुट गए और कई तो ऐसे है जिनको लेने के लिए उनके घर वाले सुबह से ही मेला क्षेत्र में पहुंच गए थे और साथ ले जाने का इंतजार कर रहे थे।

दिनेश प्रदीप

वार्ता

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