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विकलांग बच्चों की कामकाजी माताओं को सीसीएल नहीं देना संवैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन

विकलांग बच्चों की कामकाजी माताओं को सीसीएल नहीं देना संवैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन

नयी दिल्ली 22 अप्रैल (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि विकलांग बच्चों की कामकाजी माताओं को चाईल्ड केयर लीव (सीसीएल) देने से इनकार करना कार्यबल में महिलाओं की समान भागीदारी संवैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन है।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने हिमाचल प्रदेश की एक सरकारी कॉलेज में भूगोल विभाग की सहायक प्रोफेसर शालिनी धर्माणी की याचिका पर यह टिप्पणी की।

पीठ ने हिमाचल प्रदेश सरकार को विशेष जरूरतों वाले बच्चों का पालन-पोषण करने वाली माताओं के लिए छुट्टियों के नियमों पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। इसके अलावा मामले के सभी पहलुओं को देखने के लिए राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति के गठन का भी निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार को भी पक्षकार बनाया और उससे जवाब मांगा। अदालत ने इस मामले में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से मदद करने को कहा।

शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि समिति की रिपोर्ट जुलाई तक तैयार की जानी चाहिए। इस मामले को अगली सुनवाई अगस्त 2024 के बाद की जानी चाहिए‌। सुनवाई के दौरान पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि यह सिर्फ विशेषाधिकार का मामला नहीं है, बल्कि संवैधानिक अधिकार का मामला है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं को बाल देखभाल अवकाश (सीसीएल) का प्रावधान एक महत्वपूर्ण संवैधानिक उद्देश्य को पूरा करता है और विकलांग बच्चों की माताओं को इससे वंचित करना कार्यबल में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के संवैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन होगा।

सहायक प्रोफेसर ने अधिवक्ता प्रगति नीखरा के माध्यम से हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है। उच्च न्यायालय ने केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 1972 के नियम 43-सी के संदर्भ में सीसीएल की मांग करने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता प्रोफेसर धर्माणी का 14 वर्षीय बेटा, जो दुर्लभ आनुवंशिक विकार ओस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा से पीड़ित है। जन्म के बाद से उसकी उसकी कई सर्जरी हो चुकी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के बेटे को जीवित रहने और सामान्य जीवन जीने के लिए निरंतर उपचार और सर्जिकल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

पीठ ने कहा कि अपने बेटे के इलाज के कारण याचिकाकर्ता ने अपनी सभी स्वीकृत छुट्टियां समाप्त कर ली। आगे केंद्रीय सिविल सेवा (छुट्टी) नियम 1972 के नियम 43-सी में सीसीएल देने का प्रावधान है।

पीठ ने कहा, 'केंद्र सरकार ने (एक कार्यालय ज्ञापन 3 मार्च, 2010 द्वारा) महिला कर्मचारियों को 22 वर्ष (18 वर्ष के बजाय) की आयु तक के दिव्यांग बच्चों के की देखभाल के लिए सीसीएल की अनुमति दी, लेकिन हिमाचल प्रदेश ने इस प्रावधान को नहीं अपनाया है।'

उच्च न्यायालय ने 23 अप्रैल 2021 को उस महिला प्रोफेसर की याचिका इस आधार पर खारिज कर दी थी कि नियम 43 (सी) को राज्य में नहीं अपनाया गया है।

बीरेंद्र , जांगिड़

वार्ता

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