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सियासी ‘जमीं’ पर खुद का ‘आसमा’ बनाने निकले दिग्गज राजनेताओं के रिश्तेदार

(प्रेम कुमार से)
पटना, 18 अप्रैल (वार्ता) बिहार लोकसभा चुनाव में विभिन्न पार्टियों के कई दिग्गजों के रिश्तेदार अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने के साथ ही सियासी ‘जमीं’ पर अपना खुद का ‘आसमा’ बनाने के लिये चुनावी समर में उतरेंगे।
राजनीति में वंशवाद की पुरानी परंपरा रही है। देश की राजनीति में अपना वर्चस्व रखने वाले कुछ दमदार राजनीतिज्ञों के खानदान का नाम उनके चिराग रोशन कर रहे हैं। राजनेताओं ने राजनीतिक वैतरणी पार करने के लिए परिवारवाद को मजबूत सहारा माना है। राजनीति में परिवारवाद के मुद्दे को लेकर भले ही सभी राजनीतिक दल हमेशा से एक दूसरे पर आरोप लगाते रहे हों, लेकिन वास्तविकता यह है कि इससे कोई भी दल अछूता नहीं है।उम्मीदवार चुनते समय राजनैतिक पार्टियों का लक्ष्य चुनाव जीतना होता है। वह कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। राजनेता की जनता में पैठ यदि अच्छी है तो उसके पारिवारिक सदस्यों को टिकट मिल जाता है।अधिकांश राजनेता राजनीति से विदा लेने के पहले अपने पुत्र या पुत्री को विधायक या सांसद के रूप में देखना चाहते हैं।एक राजनीतिज्ञ के परिवार के सदस्यों, के राजनीति में सफल होने की संभावनाएं अधिक होती है।शायद इसी वजह से राजनीति परिवारवाद से मुक्त नहीं हो पा रही है।
एक आम मान्यता रही है कि डॉक्टर का बेटा डॉक्टर और इंजीनियर का बेटा इंजीनियर। आजादी के बाद राजनीति में भी इस मान्यता को स्थापित करने का पूरा प्रयास हुआ कि राजनेता का बेटा भी राजनेता ही हो। इसके पक्ष में राजनेताओं ने तर्क दिया कि हर क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति यदि पुत्र-पुत्रियों को अपनी विरासत सौंपने की इच्छा रख सकता है तो हमारा बेटा क्यों नहीं हमारी राजनीतिक विरासत को आगे ले जा सकता,आखिर उसने जब से होश संभाला अपने इर्द-गिर्द राजनीतिक माहौल ही तो देखा हैं।
राजनीति में कई दिग्गज जनता के बीच सियासत के हस्ताक्षर के रूप में जाने जाते हैं। दिग्गजों की वर्तमान पीढि़यां पारिवारिक विरासत को सहेजते हुए राजनीति के मैदान में हैं।इस बार के बिहार लोकसभा चुनाव में भी विभिन्न पार्टियों के कई दिग्गजों ने अपनी राजनीतिक विरासत अपने परिवार के ही सदस्यों को सौंपी है। राजनीति में वंशवाद और परिवारवाद के विरोध का अब कोई मायने नहीं रहा। एक तरह से लगभग सभी दलों ने इससे समझौता कर लिया है। शायद यही कारण है कि वर्तमान राजनीति में उन सभी नेताओं की दूसरी पीढ़ी भी पूरी तरह सक्रिय हैं जिनकी राजनीति की शुरुआत ही वंशवाद और परिवादवाद के विरोध में हुई थी।
इस बार के लोकसभा चुनाव में भी विभिन्न पार्टियों के कई दिग्गजों के रिश्तेदार अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने के लिये चुनावी समर में उतरेंगे। इनमें से कई राजनेताओं ने अपनी राजनीतिक पहचान बना ली है, पर कुछ ऐसे भी हैं जो सियासी ‘जमीं’ अपना खुद का आसमां बनाने की कोशिश में हैं।राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ,जनता दल यूनाईटेड (जदयू), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) समेत कई छोटी-बड़ी कई पार्टियों के कई राजनेता अपनी राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने के लिये तैयार हैं।
इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस (इंडी गठबंधन) के घटक दल राजद के बैनर तले कई राजनेता अपनी-अपनी राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने के लिये तैयार हैं। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की दो पुत्री राज्यसभा सांसद मीसा भारती पाटलिपुत्र जबकि रोहिणी आर्चाय सारण संसदीय सीट से चुनाव लड़ रही है। चारा घोटाले में सजा होने से श्री यादव के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। राजद अध्यक्ष लालू खुद प्रसाद यादव खुद चुनाव नहीं लड़ सकते इसलिए उन्होंने जहां अपनी दो पुत्री मीसा भारती और रोहिणी आर्चाय को लोकसभा के रण में उतारा है जबकि विधानसभा में अपने दोनों पुत्र तेज प्रताप यादव और तेजस्वी प्रसाद यादव को विरासत सौंप दी है। राजद अध्यक्ष श्री यादव से जब एक बार उनके पुत्रों के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा था, “मेरा बेटा नेता नहीं बनेगा तो क्या भैंस चरायेगा।
राजद के टिकट पर गया (सु) से पूर्व सांसद राजेश कुमार के पुत्र कुमार सर्वजीत, राजद के प्रदेश अध्यक्ष सुधाकर सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह बक्सर सीट से, पूर्व केंद्रीय गृहराज्य मंत्री तस्लीमुद्दीन के पुत्र शहनवाज आलम अररिया सीट से ,पूर्व सांसद तुलसी दास मेहता के पुत्र आलोक कुमार मेहता उजियारपुर सीट से ,पूर्व सांसद और भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति रहे पूर्व सांसद डॉ. रविंद्र कुमार यादव रवि के पुत्र और संविधान सभा के सदस्य कमलेश्वरी प्रसाद यादव के पौत्र कुमार चंद्रदीप मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ेंगे। सीवान संसदीय सीट से पूर्व सांसद ओम प्रकाश यादव के समधी और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं।
इंडी गठबंधन के घटक कांग्रेस के टिकट पर किशनगंज सीट से पूर्व मंत्री मोहम्मद हुसैन आजाद के पुत्र डा.मोहम्मद जावेद चुनाव लड़ रहे हैं।पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय जय नारायण प्रसाद निषाद के पुत्र अजय निषाद को इस बार के चुनाव में भाजपा ने बेटिकट कर दिया है। श्री निषाद ने मुजफ्फरपुर सीट से लगातार दो बार वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव जीता है। श्री निषाद हाल ही में भाजपा का साथ छोड़ कांग्रेस का ‘हाथ’ थाम लिया है। यदि सबकुछ सही रहा तो वह मुजफ्फरपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर अपनी नयी सियासी पारी का आगाज कर सकते हैं। पूर्व विधायक रामसेवक हजारी के पुत्र और पूर्व सांसद महेश्वर हजारी के पुत्र सनी हजारी हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुये हैं। सनी हजारी कांग्रेस के टिकट पर समस्तीपुर (सु) सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। इसी सीट पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री बालेश्वर राम के पुत्र अशोक राम के भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की चर्चा है। महाराजगंज की सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह के पुत्र आकाश कुमार सिंह के नाम की चर्चा चल रही है। पटनासाहिब सीट पर पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम के नाती और पूर्व सांसद मीरा कुमार के पुत्र अंशुल अभिजीत जबकि पश्चिम चंपारण सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री केदार पांडेय के पौत्र और पूर्व सांसद मनोज पांडेय के पुत्र शाश्वत केदार के कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की चर्चा है।
वहीं वामदल में शामिल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के टिकट पर खगड़िया सीट से पूर्व विधायक योगेन्द्र सिंह के पुत्र और विभूतिपुर के विधायक अजय कुमार के भाई संजय कुमार चुनावी संग्राम में उतर रहे हैं।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल भाजपा के बैनर तले भी कई दिग्गज राजनेताओं के रिश्तेदार अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने के लिये चुनावी मैदान में उतर रहे है। पूर्व सांसद मदन मोहन जायसवाल के पुत्र डा. संजय जायसवाल पश्चिम चंपारण सीट से, पूर्व सांसद हुक्मदेव नारायण यादव के पुत्र अशोक कुमार यादव, मधुबनी सीट से , भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों मे से एक पूर्व मंत्री स्वर्गीय ठाकुर प्रसाद के पुत्र रवि शंकर प्रसाद पटनासाहिब सीट से ,पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुनि लाल के पुत्र शिवेश राम सासाराम (सु) सीट से , पूर्व सांसद रामनरेश सिंह के पुत्र सुशील कुमार सिंह औरंगाबाद से और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सी.पी.ठाकुर के पुत्र राज्यसभा सांसद विवेक ठाकुर नवादा से चुनावी रणभूमि में ताल ठोक रहे हैं।
राजग में शामिल जदयू के टिकट पर वाल्मिकीनगर से पूर्व सांसद वैधनाथ महतो के पुत्र सुनील कुमार, शिवहर से पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नीलवली आनंद चुनाव लड़ रही हैं।
राजग के घटक दल लोजपा-रामविलास के बैतर तले पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिवंगत राम विलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान हाजीपुर (सु) से, चिराग पासवान के जीजा पूर्व मंत्री डा.ज्योति के पुत्र अरूण भारती जमुई (सु) सीट से और पूर्व सांसद महाबीर चौधरी की पोती और बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी की पुत्री शांभवी चौधरी समस्तीपुर (सु) से अपनी राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने के लिये चुनावी संग्राम में उतरेंगी।
पूर्व विधायक अरूण यादव के भाई और उनकी पत्नी विधायक विभा देवी के देवर विनोद यादव नवादा संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं पूर्व सांसद मोहम्मद शाहबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब बतौर निर्दलीय सीवान संसदीय सीट से अपनी पति की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने के लिये चुनावी रणभूमि में तैयार है। पूर्व सांसद सूरजभान भाई के रिश्ते में समधी और सारण स्थानीय निकाय सीट से लगातार दूसरी बार विधान पार्षद सच्चिदानंद राय ने महाराजगंज लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।
देखना दिलचस्प होगा कि इस बार के चुनाव में कितने राजनेता अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा पाने मे सफल हो पाते हैं और सियासी ‘जमीं ’ पर अपना खुद का आसमां बना पाते हैं।
प्रेम सूरज
वार्ता
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