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143 साल पुरानी सोन नहर प्रणाली ने सिखाई सिंचाई की नई तकनीक, दिलाई अकाल से मुक्ति

औरंगाबाद 11 जुलाई (वार्ता) दक्षिण बिहार के आठ जिलों की लाइफ लाइन मानी जाने वाली डिजाइन आधारित 143 साल पुरानी सोन नहर प्रणाली ने न केवल दुनिया को सिंचाई की नई तकनीक सिखाई बल्कि तत्कालीन बंगाल प्रांत (पश्चिम बंगाल, बिहार और ओडिशा) को अकाल जैसी त्रासदी से मुक्ति दिलाने में मददगार भी साबित हुई।
इस महान नहर प्रणाली का जन्म तत्कालीन बंगाल के भयानक अकालों की पृष्ठभूमि में हुआ । बंगाल अंग्रेजों का मुख्य कार्यक्षेत्र था जिसमें आज के बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और ओडिशा शामिल थे। बंगाल की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि आधारित थी और बंगाल की खाड़ी के बेहद अनिश्चित मौसम ने मॉनसून को बुरी तरह प्रभावित किया था। इसकी वजह से लगातार बंगाल में भयंकर अकाल पड़ रहे थे । वर्ष 1769 का भयंकर अकाल जो 1773 तक लगातार चला, विश्व के सबसे भयंकर अकालों में से एक माना जाता है, जिसमें लगभग एक करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद भी लगातार अकाल आते रहे जिससे बचने के लिए बंगाल क्षेत्र में सिंचाई प्रणालियां विकसित करने की बात सोची जाने लगी।
उस वक्त बंगाल का इलाका, जिसे आज शाहाबाद और मगध के नाम से जानते हैं, काफी सूखा इलाका था और यहां बारिश बहुत कम होती थी। इसे एक हद तक रेगिस्तानी इलाका माना जाता था। कहा जाता है कि ब्रिटिश राज में इस इलाके को रेगिस्तान घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव भी था लेकिन बाद में ब्रिटिश सरकार ने सोन नदी के जल प्रवाह को देखते हुए इससे एक सिचाई तंत्र के तौर पर विकसित करने की योजना बनाई। उस वक्त सोन नदी में काफी जल प्रवाह हुआ करता था। इसका पाट बारून क्षेत्र के पास लगभग छह किलोमीटर चौड़ा था जो अब घटकर बमुश्किल तीन किलोमीटर रह गया है। मध्यप्रदेश के अमरकंटक से लेकर बिहार में औरंगाबाद जिले के बारून एनीकट तक कोई अन्य बांध नहीं था इसलिए सोन नदी में पानी भी काफी आता था।
सं सूरज शिवा
जारी (वार्ता)
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