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समाज के हर वर्ग में पसंद किये जाते है जुझारू छवि के राजनाथ

समाज के हर वर्ग में पसंद किये जाते है जुझारू छवि के राजनाथ

लखनऊ, 30 मई (वार्ता) महज 13 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की पाठशाला में राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निष्ठा और अनुशासन के गुर सीखने वाले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कद्दावर नेता राजनाथ सिंह की पहचान सौम्य,सरल लेकिन जुझारू प्रवृत्ति के राजनीतिज्ञ के तौर पर की जाती है।

संगठन और सरकार में अपनी जिम्मेदारियों काे बेहद कुशलता से निभाने वाले श्री सिंह को राजनीतिक गलियारों में बेहद सम्मान की नजरों से देखा जाता है। अपनी बेदाग छवि के चलते उन्हें समाज के हर वर्ग का समर्थन हासिल हुआ है और इसी के चलते वह मिश्रित आबादी वाले लखनऊ से लगातार दूसरी बार सांसद निर्वाचित हुये।

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी के बाद श्री सिंह भाजपा के ऐसे इकलौते नेता है जिन्होंने पार्टी की कमान दो बार संभाली है। उत्तर प्रदेश में चंदौली जिले के भाभौरा गांव में 10 जुलाई 1951 में किसान परिवार में जन्मे श्री सिंह ने वर्ष 1964 में संघ को अपनाया और अपनी सक्रियता के चलते जल्द ही उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली।

गोरखपुर विश्‍वविद्यालय से भौतिक शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल करने के बाद वह 1971 में केबी डिग्री कॉलेज मिर्जापुर में बतौर प्रोफेसर नियुक्‍त हुए। हालांकि इसके पहले 1969 से 1971 तक, वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) में गोरखपुर मंडल के संगठनात्मक सचिव रहे। वर्ष 1974 में मिर्ज़ापुर क्षेत्र से उन्हें भारतीय जनसंघ का सचिव नियुक्त किया गया जबकि अगले ही साल वह जनसंघ के जिलाध्यक्ष बने । आपातकाल के दौरान कई महीनों तक जेल में बंद रहने वाले राजनाथ सिंह को 1975 में जनसंघ ने मिर्जापुर जिले का अध्‍यक्ष बनाया।

श्री सिंह ने पहली बार 1977 में संसद की दहलीज लांघी जब वह मिर्जापुर निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुने गए जबकि 1984 में वह भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बने। अपनी ईमानदार और जुझारू छवि के चलते श्री सिंह ने राजनीति के क्षेत्र में हर चुनौती को बेहद शालीनता और सहजता से निपटाया। इस बीच वर्ष 1986 में वह भाजपा युवा मोर्चा के महासचिव के रूप में नियुक्त किए गए और दो साल के भीतर ही वह भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष नियुक्त हुये। इसी साल उनको उत्तर प्रदेश में विधान परिषद का सद्स्य चुना गया।

श्री सिंह 1991 में कल्याण सिंह सरकार में उन्हे शिक्षा मंत्री बनाया गया। बतौर शिक्षा मंत्री उन्होने एंटी-कॉपिंग एक्‍ट लागू करवाया था। साथ ही वैदिक गणित को सिलेबस में शामिल करवाया। वर्ष 1994 में वह राज्य सभा सांसद चुने गये। संघ से बेहद नजदीकी रिश्तों का लाभ उन्हें अपने राजनीतिक जीवन में हर पल मिला और 25 मार्च 1997 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश भाजपा पार्टी के अध्यक्ष बनाये गये।

वर्ष 1997 में राजनीतिक संकट के दौरान, उन्होंने भाजपा नेतृत्व वाली सरकार को दो बार बचाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बाईस नवम्बर 1999 में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री के रूप में, उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) परियोजना को शुरू किया। इस परियोजना को लागू कर उन्होंने श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सपने को साकार किया।

इस बीच 28 अक्टूबर 2000 को, उन्होंने उत्तर प्रदेश के 19वें मुख्यमत्रीं के रूप में शपथ ग्रहण की हालांकि उनका कार्यकाल दो साल से भी कम रहा। वर्ष 2002 में श्री सिंह को भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव के तौर पर एक और बड़ी जिम्मेदारी मिली जिसे उन्होने बखूबी निभाया। अगले ही साल 24 मई 2003 को वह अटल बिहारी सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री बनाये गये जबकि बाद में उन्होंने खाद्य प्रसंस्करण के लिए कार्य किया। कृषि मंत्री के रहते उन्होंने कृषि आय बीमा योजना और किसान कॉल सेंटर जैसी बेहतरीन परियोजनाओं की शुरुआत की।

वर्ष 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान उन्हे एक बार फिर संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गयी और वह भाजपा के महासचिव के रूप में नियुक्त हुये जबकि 31 दिसंबर 2005 को उन्हे भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में संप्रग को एक बार फिर बहुमत मिला लेकिन उस चुनाव में श्री सिंह गाजियाबाद के सांसद निर्वाचित हुये जबकि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सक्रिय राजनीति से कदम खीचने के बाद वह 2014 में पहली बार श्री वाजपेयी के कर्मक्षेत्र लखनऊ के सांसद चुने गए और मोदी मंत्रिमंडल में देश के गृह मंत्री बने।

हाल ही में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में श्री सिंह दोबारा लखनऊ के सांसद चुने गये जब उन्होने अपने निकटतम प्रतिद्धंदी समाजवादी पार्टी (सपा) की पूनम सिन्हा को साढे तीन लाख से अधिक वोटों से हराया था।

प्रदीप त्यागी

वार्ता

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