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खींचड़ ने शिक्षा के बाद राजनीति में भी बनाई पहचान

खींचड़ ने शिक्षा के बाद राजनीति में भी बनाई पहचान

जयपुर 31 मई (वार्ता) राजस्थान के झुंझुनूं जिले में निजी शिक्षण संस्था चलाकर शिक्षा के क्षेत्र के नाम कमाने के साथ प्रधानजी के रुप में मशहूर नरेन्द्र कुमार खींचड़ ने राजनीतिक क्षेत्र में भी अपनी अच्छी पहचान बनाई और पहले ही प्रयास में सांसद बनने में कामयाब रहे।

श्री खींचड़ का जन्म 29 जून 1960 को झुंझुनूं जिले में हुआ। वह कमालसर के रहने वाले हैं । उन्होंने जिले में निजी शिक्षण संस्था खोलकर शिक्षा के क्षेत्र में काफी नाम कमाया और 2004 में जिले की अलसीसर पंचायत समिति के प्रधान भी रहे। उन्होंने विधायक बनने के लिए कई बार चुनाव लड़ा और आखिरकार 2013 में निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में विधानसभा का चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने । उन्होंने कांग्रेस का गढ़ रही मंडावा सीट पर कब्जा जमाकर सबका ध्यान अपनी और खींच लिया।

2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर तत्कालीन विधायक रीटा चौधरी ने बागी उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ा और वह दूसरे स्थान पर रही जबकि कांग्रेस उम्मीदवार एवं उसके वरिष्ठ नेता चन्द्रभान की जमानत जब्त हो गई, इस कारण भी श्री खींचड़ पर सबकी निगाहे टिक गई और इसका फायदा उन्हें इसके अगले विधानसभा चुनाव 2018 में उस समय मिला जब भाजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया और वह दूसरी बार विधायक चुने गये। भाजपा ने इस लोकसभा चुनाव में भी झुंझुनूं से सांसद संतोष अहलावत का टिकट काटकर उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया और उन्होंने चुनाव में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के श्रवण कुमार को तीन लाख दो हजार 547 मतों से हराया।

श्री खींचड़ ने 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में भी अच्छा प्रदर्शन करते हुए दूसरे स्थान पर रहे और वह कांग्रेस की रीटा चौधरी से केवल करीब पांच सौ मतों से चुनाव हार गये। इस दौरान भाजपा प्रत्याशी एवं राज्य में सबसे अधिक विधायक का चुनाव जीतने वाली सुमित्रा सिंह चौथे स्थान पर रही थी। इस कारण भी खींचड़ का राजनीतिक प्रभुत्व बढ़ा और वह अगले प्रयास में विधायक बन गये। रीटा चौधरी के पिता कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे रामनारायण चौधरी मंडावा से छह बार विधानसभा का चुनाव जीता और एक बार रीटा चौधरी ने चुनाव जीतकर मंडावा में एकछत्र राजनीतिक प्रभुत्व कायम किया लेकिन श्री खींचड़ ने उनके इस प्रभुत्व को 2013 में तोड़ दिया। इसके बाद रामनारायण चौधरी का परिवार दुबारा अपना प्रभुत्व कायम नहीं कर पाये।

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