राज्य » बिहार / झारखण्डPosted at: Nov 19 2018 10:50AM मेले में पक्षी मेला भी लगता है। हरिहर क्षेत्र मेले का एक बड़ा आकर्षण मीना बाजार भी होता है। यहां देश के विभिन्न स्थानों से व्यापारी अपने सामानों के साथ पहुंचते है। सोनपुर मेले की प्रसिद्धि इतनी है कि विदेशों से सैलानी इस मेले को देखने बड़ी संख्या में पहुंचते है। मेले में सैलानियों के ठहरने के लिए खास इंतजाम किये जाते हैं। यह मेला पहले हाजीपुर में लगता था। सिर्फ हरिहर नाथ की पूजा सोनपुर में होती थी लेकिन बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश से मेला भी सोनपुर में ही लगने लगा। सोनपुर का मेला अपने आप में समृद्ध विरासत को समेटे हुए है। प्राचीनकाल से लगनेवाले इस मेले का स्वरूप भले कुछ बदला हो लेकिन इसकी महत्ता आज भी बरकरार है। करीब 20 वर्ग किलोमीटर में फैले इस मेले की भव्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मेले के एक छोर से दूसरे छोर तक घूमते-घूमते लोग भले ही थक जाएं लेकिन उत्सुकता बनी रहती है। देश के 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के लिए बाबू वीर कुंवर सिंह ने इसी मेले से अरबी घोड़े, हाथी और हथियारों का संग्रह किया था। सिख ग्रंथों में यह जिक्र है कि गुरू नानक देव यहां आये थे। बौद्ध धर्म के अनुसार, अपने अंतिम समय में महात्मा बुद्ध इसी मार्ग से होकर कुशीनगर की ओर गये थे, जहां उनका महापरिनिर्वाण हुआ था। सोनपुर की इस धरती पर हरिहरनाथ मन्दिर दुनिया का इकलौता ऐसा मन्दिर है, जहां हरि (विष्णु ) तथा हर (शिव) की एकीकृत मूर्ति है। इस मन्दिर के बार में कई धारणायें प्रचलित हैं।प्रेम सूरजजारी वार्ता