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राष्ट्रपिता के विचारों को आत्मसात करने की जरूरत : हृदय नारायण

दरभंगा, 30 जनवरी (वार्ता) बिहार के सर्वोदयी एवं गांधीवादी चिंतक हृदय नारायण चौधरी ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों को आत्मसात करने की जरूरत पर बल देते हुए आज कहा कि गांधी के ‘राम’ कर्मयोगी थे और उन्होंने पूरी जिंदगी कर्म की पूजा की, इसलिए राम के पीछे भागने की बजाय उसे वरण करने की सर्वाधिक जरूरत है।
श्री चौधरी ने महात्मा गांधी एवं ललितेश्वरी चरण स्मृति दिवस के मौके पर आज यहां जन जागरण परिषद् की ओर से ‘गांधी के राम’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि गांधी ने अपने संपूर्ण जीवन में राम को हृदयंगम किया, जिस कारण उनके सभी कर्मों में ईश्वरीय दृढ़ता दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि बाल मन में ही महात्मा गांधी ने राम को महामंत्र के रूप में धारण किया। शैशवावस्था में गांधी छाया और भूत-प्रेत से डरा करते थे तो रंभा धाय ने उन्हें राम का नाम लेकर कार्य करने को कहा और वहीं से गांधी जी को राम के प्रति अटूट आस्था हुई। आज गांधीमय और राममय होकर कार्य करने की जरूरत है।
हिंदी के समालोचक प्रोफेसर किरण शंकर प्रसाद ने कहा कि गांधी में निर्भीकता थी और वह भयमुक्त थे। सत्याग्रही का भय मुक्त होना अनिवार्य है इसलिए गांधी सत्ता के खिलाफ बोलने की हिम्मत रखते थे। उन्होंने राम को जीते हुए सत्ता से संघर्ष की बुनियाद रखी। आज जिस प्रकार राम के नाम का उपयोग हो रहा है वह कहीं भी गांधी का राम नहीं है। गांधी के राम और आज के राम में बुनियादी फर्क है। आज राम कभी सत्ता की इर्द-गिर्द घूमते नजर आते हैं तो कहीं सत्ता के लिए नजर आते हैं ऐसे में गांधी के राम को समझने और दृढ़ निश्चय के साथ उस पर चलने की जरूरत है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर अजीत कुमार वर्मा ने कहा कि आज चरित्र का नहीं चारित्र्य का अनुकरण करना चाहिए। महापुरुषों के चारित्र्य का अनुकरण किया जाएगा तब मानव में परिवर्तन की धारा प्रस्फुटित होगी। उन्होंने कहा कि गांधी ने स्वदेशी की परिकल्पना की थी जो भारतीयता के रूप में है यदि इसे अपनाया जाए तो भारत की अनेक समस्याओं का स्वताः समाधान हो जाएगा। अथितियों का स्वागत परिषद के अध्यक्ष नरेश राय ने किया वहीं, धन्यवाद ज्ञापन राजू राम ने किया जबकि संचालन अभिताभ कुमार सिन्हा ने किया।
सं.सतीश सूरज
वार्ता
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