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हिंदी संवेदना एवं प्रेम की तूफानी भाषा : डॉ. पाठक

दरभंगा, 10 जनवरी (वार्ता) हिंदी के प्रख्यात विद्वान डॉ. प्रभाकर पाठक ने हिंदी को संवेदना, प्रेम और सहजता से जुबान पर चढ़ने वाली भाषा बताते हुए कहा कि हिंदी आज बाजार का सिरमौर बनी हुई है।
डॉ. प्रभाकर ने आज यहां प्रभात दास फाउण्डेशन एवं एमआरएम कॉलेज के हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर “बाजारवाद एवं हिंदी का प्रसार” विषय पर संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि हिंदी संवेदना, प्रेम की तूफानी भाषा है। यह सहजता से जुबान पर चढ़ जाती है। इसलिए आज हिंदी बाजार का सिरमौर बनी हुई है। बाजारवाद हिंदी का भला नहीं कर रही बल्कि हिंदी बाजारवाद पर उपकार कर रही है। बाजार के विस्तृत होने में हिंदी मददगार साबित हो रही है।
हिंदी भाषा के विद्वान ने कहा कि बाजार आज से नहीं प्राचीन काल से ही है। पर वैश्विक युग में यह घर-घर छा चुकी है। बाजारवाद ने हमारी सांस्कृतिक हत्या की है। इसने चिंतन, मनन सब को प्रभावित किया है। निःसंदेह बाजार ने हिंदी का प्रसार किया है पर इसका मतलब यह नहीं है कि बाजार हिंदी को बढ़ा रही है। बाजार को एक ऐसी भाषा चाहिए जो सहजता से विश्व पटल पर छा सके। हिंदी में यह गुण है इसलिए बाजार हिंदी के साथ है। बाजारवाद ने समाजवाद को स्थापित कर सबको एक समान बना दिया है।
संगोष्ठी को प्रधानाचार्य डॉ. अरविंद कुमार झा , डॉ. विवेकानंद झा, प्रो. सुप्रिया, डॉ कन्हैया चौधरी, डॉ. शिखरवासिनी, डॉ. नीला झा, मुक्ता झा, डॉ. सुकृति झा आदि ने भी संबोधित किया।
सं.सतीश
वार्ता
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