राज्य » बिहार / झारखण्डPosted at: Sep 23 2021 7:08PM जयंती के मौके पर याद किए गए राष्ट्रकवि दिनकरदरभंगा, 23 सितंबर (वार्ता) राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती के मौके पर गुरूवार को यहां कई कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें याद किया गया। ललित नारायण मिथिला विश्विद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में राष्ट्रकवि की जयंती के उपलक्ष्य में ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दिनकर की राष्ट्रीय चेतना’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो.राजेन्द्र साह ने कहा कि ओज, पौरुष, विद्रोह एवं हुँकार के कवि दिनकर की राष्ट्रीय चेतना मानवीय मूल्यों से अनुप्राणित है। युगधर्म के कवि दिनकर ने 'कलम' में अपरिमित शक्ति, तेजस्विता, जनमानस की सुषुप्त चेतना को जाग्रत करने में समर्थ, जोश-खरोश पैदा करने एवं उत्साह का अथक संचार करने में सामर्थ्यवान माना है- “कलम देश की बड़ी शक्ति है, भाव जगानेवाली/ दिल ही नहीं, दिमागों में भी भाव जगानेवाली।” दिनकर ने 'कलम आज उनकी जय बोल' शीर्षक गीत की रचना कर शहीदों की आहुतियों को, उनके बलिदान को जीवंत कर दिया है। प्रो. साह ने कहा कि राष्ट्र कवि दिनकर की राष्ट्रीय चेतना का सम्बंध सिर्फ देश की सीमाओं की रक्षा से नहीं है, अपितु राष्ट्रीय-स्तर पर जो ज्वलंत विषमताएँ हैं, समस्याएँ हैं उनकी ओर इशारा करते हुए अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को मुखरित किया है। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक शोषण से लेकर किसानों-मजदूरों की दयनीय स्थिति, सामाजिक भेदभाव, साम्प्रदायिकता, युद्ध एवं शांति आदि विविध विषयों के माध्यम से अपनी प्रखर राष्ट्रीय चेतना को उभारा है। 'हुंकार', 'कुरुक्षेत्र', 'रश्मिरथी', 'बापू', 'दिल्ली', 'परशुराम की प्रतीक्षा', आदि की रचना कर दिनकर ने राष्ट्रवादी चिंतन को विस्तृत फ़लक प्रदान किया तथा मनुष्यत्व की रक्षा के लिए व्यापक दृष्टिकोण को उपस्थापित कर अपनी समर्थ रचनाशीलता का परिचय दिया। प्राचार्य डॉ०सुमन प्रसाद सुमन ने दिनकर जी को याद करते हुए कहा कि दिनकर जनता के समर गाण के कवि हैं। दिनकर अगर याद किये जाते हैं तो कुरुक्षेत्र के लिए, हुंकार के लिए, रश्मिरथी के लिए। लोग जब भी जीवन संग्राम में होते हैं तो दिनकर को गाते हैं। यह बात दीगर है कि दिनकर जी को पुरस्कार 'उवर्शी' के लिए मिला। वे जनता के बीच रश्मिरथी, कुरुक्षेत्र, हुंकार में जीवित हैं। वहीं, महात्मा गांधी महाविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान एवं ख्याति लब्ध साहित्यकार एवं महाविद्यालय के शासी निकाय के सचिव डॉ० हरि नारायण सिंह ने कहा कि दिनकर विरले कवि थे। वे जब उर्वशी लिखे तो उनकी बहुत आलोचना हुई। उन्होंने हुंकार की पंक्ति देकर प्रेम की कविता ही नहीं बल्कि हुंकार की भी कविता लिखी।आलोचकों को करारा जवाब 'रसवंती' लिख कर दे दिया। उन्होंने 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रासंगिकता पर बल दिया। प्रधानयाचार्य डॉ रामदेव चौधरी ने उर्वशी को प्रेम की कविता बताते हैं तो दूसरी तरफ विद्रोही कविता के माध्यम से विद्रोही व राष्ट्रकवि के रूप में स्थापित किए ।सं.सतीशवार्ता