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मुरैना लोकसभा : सबकी निगाहें बसपा प्रत्याशी पर टिकीं

मुरैना, 13 अप्रैल (वार्ता) मध्यप्रदेश की बहुचर्चित मुरैना-श्योपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने-अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतार चुकी है, लेकिन पिछले कई चुनाव से इन दोनों पार्टियों का समीकरण बिगाड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं और ऐसे में अब सभी की निगाहें बसपा पर टिकी हुई हैं।
इस बार इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा ने क्षत्रिय समाज के प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतार कर सभी को चौंका दिया है। पिछले चुनावों पर नजर डाली जाए तो बसपा का हाथी चंबल संभाग की मुरैना श्योपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस को पिछले तीन लोकसभा चुनाव में लगातार पछाड़ता आ रहा है और बसपा प्रत्याशियों को लगातार कांग्रेस से ज्यादा वोट हासिल हो रहे हैं। ये तीनों चुनाव कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में लड़े थे। श्री सिंधिया इस बार स्वयं गुना शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी हैं और अपने क्षेत्र में प्रचार में जुटे हैं।
भाजपा ने इस बार यहां से विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के कट्टर समर्थक शिव मंगल सिंह तोमर को मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने यहाँ से भाजपा से सुमावली विधायक रहे सत्यपाल सिंह सिकरवार को मैदान में उतार कर लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। यहां भाजपा प्रत्याशी की जीत पर श्री तोमर की साख दांव पर लगी है, वहीं कांग्रेस इस सीट को जीतने के लिये हर प्रयास करने में जुटी है।
पिछले चुनाव में यहां से भाजपा ने अपने वरिष्ठतम नेता श्री तोमर को फिर मैदान मे उतारा। इसी बीच उनका सामना फिर से कांग्रेस के श्री रावत से हो गया, लेकिन बसपा ने यहां अवतार सिंह भड़ाना को लाकर कांग्रेस का गणित बिगाड़ दिया और श्री रावत को फिर से हार का सामना करना पड़ा।
वर्ष 1990 से अस्तित्व में आई मुरैना श्योपुर लोकसभा सीट पहले आरक्षित थी, लेकिन 2009 में ये सामान्य वर्ग की हो गई। तब हुए पहले चुनाव में भाजपा ने कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर को प्रत्याशी बनाया, वहीं कांग्रेस नें ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक रामनिवास रावत को प्रत्याशी बना दिया। ऐन वक्त पर बसपा ने बलवीर सिंह दंडौतिया को हाथी के टिकट पर मैदान में डटा दिया।
मुरैना श्योपुर लोकसभा क्षेत्र में पहले भिंड जिला और शिवपुरी की पोहरी तहसील तक का क्षेत्र शामिल था। यह क्षेत्रफल के हिसाब से बहुत बड़ा इलाका था। ऐसे में 1957 में इसे पुनर्गठित किया गया।
2009 में यह सीट सामान्य हो गई तबसे इस पर भाजपा का कब्जा है। वर्ष 1980 से 2024 तक के 44 सालों में सिंधिया कांग्रेस यहाँ से 2 बार जीती और 8 बार हारी।
सं गरिमा
वार्ता
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