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हाईकोर्ट ने पंचायत चुनावों पर निर्वाचन आयोग, सरकार से मांगा जवाब

नैनीताल 26 जुलाई (वार्ता) उत्तराखंड में निकाय चुनावों की तरह ही पंचायत चुनावों पर भी सरकार घिरती नजर आ रही है। उच्च न्यायालय ने प्रदेश में पंचायत चुनाव नहीं कराये जाने के मामले में गंभीर रूख अख्तियार करते हुए सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग से शपथपत्र के माध्यम से आगामी गुरुवार तक जवाब पेश करने को कहा है।
इस मामले की सुनवाई आज मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ में हुई। अदालत ने राज्य निर्वाचन आयोग के रवैये पर भी प्रश्न चिह्न लगाया और कहा कि आयोग ने भी अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा नहीं किया है। न्यायालय ने कहा कि आयोग संवैधानिक संस्था है और आयोग को पंचायत चुनावों के संबंध में आवश्यक कदम उठाने चाहिए था। न्यायालय ने पंचायतों को प्रशासकों के हवाले करने के मामले को भी गंभीरता से लिया। इससे पहले निकायों के चुनाव भी समय पर कराने में असफल रहने पर सरकार ने निकायों को भी प्रशासकों के हवाले कर दिया था।
सरकार की ओर से न्यायालय में कहा गया कि सरकार मौजूदा पंचायती राज एक्ट में बदलाव कर रही है। सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता परेश त्रिपाठी अदालत में स्वयं पेश हुए और कहा कि चुनाव कराने के लिये सरकार को कम से कम चार महीने के समय की जरूरत है। सरकार पंचायती राज एक्ट में संशोधन कर रही है। उसको तमाम तरह की औपचारिकतायें पूरी करनी हैं। सरकार के जवाब से अदालत संतुष्ट नहीं हुई और पूछा कि अभी तक चुनाव क्यों नहीं कराये गये हैं।
याचिकाकर्ता गूलरघट्टी निवासी नईम अहमद की ओर से दायर जनहित याचिका पर आज सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि प्रदेश में पंचायतों का कार्यकाल 15 जुलाई को खत्म हो गया है। सरकार पंचायतों के चुनाव कराने में असफल रही है। सरकार ने पंचायतों को प्रशासकों के हवाले कर दिया है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि प्रदेश सरकार अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पा रही है। सरकार की लापरवाही का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। इसलिये याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट से धारा 356 के तहत प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की गयी है।
इससे पहले अदालत ने सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग से आज पूरे मामले में स्थिति स्पष्ट करने को कहा। न्यायालय ने सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिये कि वह शपथपत्र के माध्यम से जवाब दे कि प्रदेश में पंचायत चुनाव क्यों नहीं कराये गये हैं।
रवीन्द्र, उप्रेती
वार्ता
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