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ज्यादातर क्षेत्रों में त्रिकोणीय मुकाबला है गंगानगर जिले में

बीकानेर, 05 दिसम्बर (वार्ता) राजस्थान विधानसभा चुनाव में गंगानगर जिले की ज्यादातर सीटों पर कहीं त्रिकोणीय और कहीं सीधे मुकाबले की स्थिति है।
गंगानगर जिले का श्रीकरणपुर विधानसभा क्षेत्र पाकिस्तान की सीमा से लगता इलाका है। यह क्षेत्र पंजाबी खासकर सिख और अरोड़ा बाहुल्य है, लिहाजा यहां की राजनीति इन्हीं पर केन्द्रित रहती है। यहां से कांग्रेस ने पूर्व मंत्री गुरमीत सिंह कुन्नर को भारी विरोध के बावजूद फिर से प्रत्याशी बनाया है, जबकि भाजपा ने यहां से जातीय समीकरण के चलते खानमंत्री सुरेन्द्र पाल टीटी पर फिर से भरोसा जताया है। इन दोनों की उम्मीदवारी से दोनों दलों में नाराजगी है। दरअसल ये दोनों पांचवी बार आमने सामने है। इससे टिकट के अन्य दावेदारों में भारी आक्रोश है। यही वजह है कि करीब 32 साल कांग्रेस में रहे प्रतिष्ठित नेता पृथ्वीपाल सिंह संधु पार्टी से विद्रोह करके इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। उधर यहां चुनावी इतिहास में एक अनोखा घटनाक्रम हुआ है। दरअसल इन दोनों की लगातार उम्मीदवारी से नाराज दोनों दलों के असंतुष्टों ने स्थानीय स्तर पर साझा मोर्चा का गठन करके श्री संधु को समर्थन दे दिया। बाद में उनके साथ माकपा भी जुड़ गई।
इस क्षेत्र में श्री संधु की साफ सुथरी छवि है। वह ग्राम सहकारी सेवा समिति से लेकर छोटे छोटे 12 चुनाव लड़ चुके हैं और इनमें वह कभी नहीं हारे। एक किसान संगठन है गंगानगर किसान समिति (जीकेएस)। चूंकि गंगानगर के तीन चार इलाके किसान बाहुल्य हैं और नहरी क्षेत्र में आते है। लिहाजा यहां पानी ही प्रमुख मुद्दा रहता है। लिहाजा पानी के लिये इन क्षेत्रों में किसानों आंदोलन करते रहते हैं। इस बार जीकेएस ने उन उम्मीदवारों का समर्थन करने की घोषणा की है जिन्होंने किसान आंदोलनों में उनका साथ दिया। श्री संधु ने हर किसान आंदोलन में शिरकत की है, लिहाजा जीकेएस ने उन्हें खुलकर समर्थन दिया है। उधर कांग्रेस के असंतुष्ट खुलकर संधु का समर्थन कर रहे हैं। इससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। यहां कुन्नर को कांग्रेस के संधु से ही कड़ी चुनौती मिल रही है, जबकि बरार कम पड़ रहे हैं।
सूरतगढ विधानसभा क्षेत्र काफी बडा क्षेत्र है। परिसीमन से पहले तो यह करीब लोकसभा के बराबर क्षेत्र था। हालांकि परिसीमन के बाद यहां अनूपगढ़ के रूप नयी सीट बनी है, इसके बावजूद यह अब भी काफी बडा इलाका है। यहां पर इस बार कांग्रेस और भाजपा ने नये चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा ने निवर्तमान विधायक राजेन्द्र भादू का टिकट काटकर पूर्व मंत्री रामप्रताप कासनियां को प्रत्याशी बनाया है। कासनियां वैसे तो साफ सुथरी छवि के ईमानदार नेता हैं और भूमि विवाद सम्बन्धी मामलों में उन्हें काफी ज्ञान है, लेकिन उनका क्षेत्र टिब्बी रहा है। यह क्षेत्र उनके लिये नया है। दूसरा, उनका बोलने पर नियंत्रण नहीं जो उनके लिये नुकसायी हो सकता है।
कांग्रेस ने यहां से गंगाजल मील के भतीजे हनुमान मील को उम्मीदवार बनाया है। दरअसल यहां कांग्रेस की राजनीति परम्परागत रूप से गंगाजल मील परिवार के दायरे में सिमटी रही है। मुख्य रूप से कांग्रेस यहां के प्रमुख नेता राजस्थान जाट महासभा के राजाराम मील के परिवार के असर में रही है। पिछली बार गंगाजल मील चुनाव हार गये तो इस बार उनकी बढ़ती उम्र को देखते हुए पार्टी में उनकी उम्मीदवारी का विरोध हुआ तो नये चेहरे के नाम पर कांग्रेस ने श्री मील के भतीजे हनुमान मील को टिकट थमा दिया। हनुमान मील की यहां राजनीतिक पहचान ही नहीं है। वह कारोबारी हैं ज्यादातर यहां से बाहर रहे हैं, लिहाजा उन्हें यहां बाहरी माना जा रहा है। उन्हें कितना समर्थन मिलेगा इस बारे में फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता।
यहां से इस बार सबसे मजबूत दावेदारी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के डूंगरराम गेदर की मानी जा रही है। श्री गेदर पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे थे। इससे पहले वह लगातार तीन चुनाव हार चुके है। इस बार स्थिति ऐसी बन रही है कि उनके अवसर बेहतर हो रहे हैं। उनके पक्ष में बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती भी सफल रैली कर चुकी हैं।
आम आदमी पार्टी के सत्य प्रकाश सिहाग भी यहां मैदान में हैं। इस क्षेत्र की भी मुख्य समस्या नहरी पानी ही है। श्री सिहाग ने नहर निर्माण आंदोलन में सक्रिय रहकर पहचान बनाई है। इसके अलावा साझा मोर्चा के यहां ओम प्रकाश राजपुरोहित भी हैं। वह भी कुछ असर रखते हैं। यहां पर मुकाबला त्रिकोणीय लग रहा है।
सुनील सैनी
जारी वार्ता
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