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लोंगेवाला विजय दिवस की 48वीं बरसी

जैसलमेर 04 दिसम्बर (वार्ता) राजस्थान के जैसलमेर जिले के लोंगेवाला क्षेत्र में भारत पाकिस्तान के बीच वर्ष 1971 में लड़े गये युद्ध में भारतीय सेना के अदम्य साहस और जांबाज़ी के कारण लोंगेवाला विजय दिवस आज अपने 48 साल पूरे करने जा रहा हैं और युद्ध का साक्षी बना यह स्थान भारतीय सैनिकों की वीरता का बखान कर रहा है।
थार रेगिस्तान में भारत और पाकिस्तान के बीच लोंगेवाला का युद्ध पांच और छह दिसंबर 1971 को लड़ा गया था। इसमें 23वीं पंजाब रेजीमेन्ट के 120 भारतीय जवानों ने पाकिस्तानी सेना के दो से तीन हज़ार जवानों को धूल चटा दी थी। भारतीय वायु सेना ने इस लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना जनरल आगा मुहम्मद याहया खान के नेतृत्व में भारत के पश्चमी इलाक़े पर क़ब्ज़ा जमाना चाहती थी लेकिन भारतीय वीर सैनिकों ने संख्या में कम होने के बावजूद भी पाकिस्तान के हजारों सैनिकों को धूल चटाकर अपनी वीरता के झंडे गाड़ दिये।
पाकिस्तान के ब्रिगेडियर तारिक मीर ने अपनी योजना पर विश्वास प्रकट करते हुए कहा था, इंशाअल्लाह हम नाश्ता लोंगेवाला में करेंगे, दोपहर का खाना रामगढ़ में खाएंगे और रात का खाना जैसलमेर में होगा। उन दिनों लोंगेवाल पोस्ट पर तेईसवीं पंजाब रेजीमेन्ट तैनात थे जिसके मुखिया मेजर के एस चांदपुरी। बाक़ी बटालियन सत्रह किलोमीटर उत्तर-पूर्व में साधेवाल में तैनात थी। जैसे ही तीन दिसंबर को पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत पर हमला किया, मेजर चांदपुरी ने लेफ्टीनेन्ट धर्म वीर के नेतृत्व में बीस फौजियों की टोली को सीमा पिलर 638 की हिफ़ाज़त के लिए गश्त लगाने भेज दिया। ये पिलर भारत पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर लगा हुआ था। इसी गश्त ने पाकिस्तानी सेना की मौजूदगी को सबसे पहले पहचाना था।
रात में मेजर चांदपुरी को अपने गश्ती दल से सूचना मिली कि पाकिस्तान की एक बड़ी सेना लोंगेवाला चौकी की तरफ बढ़ रही है। मेजर चांदपुरी ने अपने कमांडिंग ऑफीसर को संदेश भेजकर मदद मांगी। लेकिन सुबह पौ फटने से पहले कोई मदद भेजना संभव नहीं थी क्योंकि उस समय हमारी वायुसेना के लड़ाकू जहाजों में रात में हमला करने की क्षमता नहीं थी। इसके बावजूद मेजर चांदपुरी ने पोस्ट नहीं छोड़ने तथा दुश्मन से लड़ने का फैसला किया। मेजर के पास सिर्फ दो एंटी टैंक गन्स थीं , कुछ मोर्टार और शेष राइफल्स. जबकि सामने दुश्मन के पास 45 शरमन टैंक्स और 500 से ज़्यादा बख्तरबंद गाड़ियाँ और दो हजार से ज़्यादा सैनिकों सहित लोंगेवाला चौकी पर पूरी ब्रिगेड ने हमला कर दिया था और उनका इरादा लोंगेवाला से आगे बढ़ कर रामगढ़ और फिर जैसलमेर तक कब्जा करने का था।
मेजर ने तब तक इंतज़ार किया जब तक दुश्मन एकदम नज़दीक नहीं आ गया, जब वह केवल सौ मीटर दूर रहा तभी भारत की एंटी टैंक गन्स गरजीं और चार पाकिस्तानी टैंक हवा में उड़ा दिये। पाकिस्तानी फ़ौज ठिठक गयी। हमला इतना अचानक और इतना तीव्र हुआ कि पाकिस्तानी हतप्रभ। तभी उनका सामना ए कंपनी की कंटीली तारो की फेंसिंग से हुआ। उनको लगा पूरे इलाके में माइंस बिछी हैं। दुश्मन वहीं रुक गया। एंटी टैंक गन्स ने दो और पाकिस्तानी टैंक उड़ा दिए और उस पर लदे डीज़ल के बैरल जलने लगे। इससे खूब तेज़ रोशनी हो गयी और उसमे पूरी पाकिस्तानी सेना रात के अंधेरे में साफ दिखने लगी। सिर्फ दो घंटे में हमारे सैनिकों ने बारह टैंक मार गिराए।
इस लड़ाई में 120 भारतीय सैनिकों ने पूरे छह घंटा पाकिस्तानी सेना को रोके रखा, तब तक पौ फट गयी और उजाला होते ही वायुसेना ने हमला कर दिया और दुश्मन के 22 टैंक और सौ से भी ज़्यादा बख़्तरबंद गाड़ियां उड़ा दी गई। सभी गाड़ियों पर डीज़ल लदा था, क्योंकि उनका इरादा जैसलमेर तक पहुंचने का था। युद्ध में सौ ज्यादा दुश्मन के सैनिक मारे गये और वह अपनी पांच सौ से ज़्यादा बख्तरबंद गाड़ियां छोड़कर पैदल ही भागे।
भाटी जोरा
वार्ता
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