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गहलोत ने बीआर एक्ट में किये संशोधन पर पुनर्विचार की मांग की

जयपुर, 20 अक्टूबर (वार्ता) राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर बैंकिग रेगुलेशन (बी.आर.) एक्ट के कुछ प्रावधानों में किये गए संशोधनों को राज्य के सहकारी बैंकों पर विपरीत असर होने की आशंका जताते हुए इन पर पुनर्विचार करके पुरानी व्यवस्था बहाल करने का आग्रह किया है।
श्री गहलोत ने पत्र में लिखा है कि संसद में हाल ही में पारित बिल संख्या 56 के माध्यम से बी.आर. एक्ट के सेक्शन 10 एवं 10ए को सहकारी बैंकों के लिए प्रभावी कर दिया गया है। इन संशोधनों के जरिए सहकारी बैंकों के संचालक मण्डल के 51 प्रतिशत सदस्यों के पास व्यवसायिक अनुभव होना आवश्यक कर दिया गया है, जो व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है।
उन्होंने कहा कि सहकारी बैंकों को वाणिज्यिक बैंकों की भांति शेयर एवं प्रतिभूतियां जारी करने का अधिकार शेयरधारकों के प्रतिनिधित्व ‘एक व्यक्ति - एक वोट’ के सहकारी सिद्धांत के विपरीत उसकी शेयरधारिता से अधिक प्रतिशत पर जो समय-समय पर सेक्शन 12 के अन्तर्गत आरबीआई द्वारा निर्धारित की जायेगी, दिए जाने का प्रावधान है, यह सहकारिता के मूल सिद्धान्तों के विपरीत है।
श्री गहलोत कहा कि राजस्थान सहकारी सोसायटी अधिनियम, 2001 के विभिन्न प्रावधानों में समिति के पदाधिकारियों द्वारा निर्धारित कर्तव्य एवं मापदण्ड में किसी प्रकार की त्रुटि करने पर संचालक मण्डल को भंग करने का अधिकार रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां को है। सहकारी बैंकों में वित्तीय अनियमितता पाये जाने पर आरबीआई की अनुशंसा पर रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां द्वारा संचालक मण्डल को भंग करने के प्रावधान हैं। संशोधन के बाद ये समस्त अधिकार आरबीआई को दे दिए गए हैं। परिवर्तित व्यवस्था से सहकारी बैंकों पर राज्य सरकार के सहकारी विभाग का प्रभावी नियंत्रण नहीं रह पाएगा।
उन्होंने पत्र में मोदी से सहकारी बैंकों में ग्रामीण पृष्ठभूमि के सदस्यों को देखते हुए व्यवसायिक अनुभव आवश्यक होने की शर्त तथा अन्य संशोधनों पर सहकारी बैंकों एवं सहकारिता की मूल भावना के हित में पुनर्विचार करते हुए पुरानी व्यवस्था बहाल करने का आग्रह किया है।
सुनील
वार्ता
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