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सरकारी खरीद केंद्रों का कांटा, किसानों को दे गया घाटा

कोटा,28 मई (वार्ता) राजस्थान के कोटा संभाग में विभिन्न कृषि उपजों के लिए सरकारी समर्थन मूल्य खरीद करने की केंद्र सरकार की घोषणा के बावजूद कृषि जिंसों की खरीद की पुख्ता व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों को कई करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है।
कृषि उपज मंडियों में रबी के कृषि सत्र की मुख्य उपज में शामिल चना, सरसों आदि का बाजार भाव कम होने के कारण राजनीतिक दलों और विभिन्न किसान संगठनों के राष्ट्रीय स्तर पर यह मसला उठाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने समर्थन मूल्य पर खरीद की घोषणा की थी लेकिन किसान संगठनों का आरोप है कि सरकार ने समर्थन मूल्य पर किसानों से उपज के खरीद की तो घोषणा कर दी लेकिन खरीद के लिए समुचित व्यवस्था ही नहीं थी जिसके कारण न केवल किसानों को परेशानी उठानी पड़ी बल्कि भारी आर्थिक घाटा भी झेलना पड़ा।
असल में हुआ यह कि कोटा संभाग में सरकारी कांटों पर किसानों का ऑनलाइन पंजीयन तो कर लिया गया लेकिन इन सरकारी केन्द्रों पर खरीद की प्रक्रिया इतनी अधिक धीमी थी कि ज्यादातर किसानों का धैर्य जवाब दे गया क्योंकि ऐसे किसानों की संख्या बहुत अधिक थी जो किराए के परिवहन संसाधनों के जरिए अपनी कृषि जिन्सों को बेचने के लिए सरकारी कांटो तक पहुंचे थे लेकिन खरीद की प्रक्रिया की धीमी गति के कारण यह काम घंटों से दिनों में बदल गया और बीच-बीच में सरकारी खरीद केंद्रों पर बारदाना खत्म हो जाने के कारण किसानों को अपनी उपज को बेचने के लिए लंबा इंतजार करने की नौबत आई जिसकी वजह से जो किसान किराए की ट्रैक्टर ट्रोलियों,मेटाडोर आदि के जरिए सरकारी कांटों पर अपनी उपज बेचने को आए थे,उनके लिए मालभाड़े के रूप में अतिरिक्त वित्तीय भार के साथ इंतजार करना मुश्किल हो गया और इनमें से ज्यादा किसानों ने लंबी प्रतीक्षा कर अतिरिक्त मालभाड़ा भुगतने के बजाय आढतियों को ही ओने-पौने दामों में उपज बेचना मुनासिब समझा।
इसका नतीजा यह निकला किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य नहीं मिल पाया।
राष्ट्रीय किसान समन्वय समूह के राष्ट्रीय संयोजक दशरथ कुमार का आरोप है कि संभाग में सरकारी कांटों पर कृषि जिंसों की खरीद की धीमी रफ्तार और बार-बार बारदाना समाप्त हो जाने की समस्या के चलते कोटा संभाग के किसानों को उनकी उपजों की खरीद का सरकारी समर्थन मूल्य घोषित हो जाने के बावजूद लाभकारी दाम नहीं मिल पाने से काफी घाटा उठाना पड़ा है।
हाडा रामसिंह
वार्ता
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