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कुम्भ-कुम्भ संस्कृति दो इलाहाबाद

मेले में अलग-अलग वेष भूषा वाले बाबाओं की कमी नहीं है। दुनिया के कोने कोने से पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाने पहुंचे श्रद्धालुओं में किसी बाबा का 70 किलो के रूद्राक्ष की टोपी और उसी का वस्त्र रूप में धारण, किसी के गले में मुंड़ माला तो किसी के बड़ी जटाओं का आकर्षण अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
तीर्थराज प्रयाग के विस्तीर्ण रेती पर बसे विहंगम कुम्भ में जहां विभिन्न वेष भूषा वाले बाबा लोगों को आकर्षण का केन्द्र बन रहे है वहीं छोटे-छोटे बच्चे भी उनसे पीछे नहीं हैं। संगम का किनारा हो या मेला को वृहत क्षेत्र, अलग अलग देवी देवताओं का मुखौटा लगाए बच्चे नजर आते हैं। किसी ने मृगक्षाला धारण किया है तो कोई काली का मुखौटा पहन, हाथ में खड्ग और खप्पर लेकर लोगों को आकर्षित कर रहा है।
मेले में कुछ बाबा ऐसे मिलेगें जो कुटिया में मोटी लकड़ी लगाकर धूनी रमाये बैठे हैं। उनके अगल बगल कुछ विदेशी पर्यटक और अन्य लोगों को घेरा बैठा रहता है। यहां लगातार “सुट्टा” चिलम का दौर चलता रहता है। एक छोटी सी मिट्टी की चिलम होती है जिसमें गांजा भरा होता है। एक किनारे से शुरू होता है सुट्टा मारने का क्रम तो दूसरे किनारे जाकर ही रूकता है।
दिनेश भंडारी
जारी वार्ता
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