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भारतीय ज्ञान परम्परा में हर समस्या का समाधान है : टंडन

भारतीय ज्ञान परम्परा में हर समस्या का समाधान है : टंडन

भोपाल, 19 अक्टूबर(वार्ता) मध्यप्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने कहा कि हमारी ज्ञान पंरपरा में हर समस्या का समाधान है।

आधिकारिक जानकारी के अनुसार श्री टंडन आज यहां आरसीवीपी नरोन्हा प्रशासन एवं प्रबंधकीय अकादमी में अखिल भारतीय दर्शन परिषद के तीन दिवसीय 64 वें अधिवेशन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारतीय चिंतन में सम्पूर्ण सृष्टि का सत्य समाया है। आवश्यकता उसकी वैज्ञानिकता को समाज के सामने प्रस्तुत करने के लिये शोध और अनुसंधान की है। उन्होंने कहा कि सारी दुनिया में सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तन रक्तपात से हुए लेकिन हमारे देश में बड़ी से बड़ी राजनैतिक और सामाजिक समस्या का समाधान शास्त्रार्थ से हुआ।

श्री टंडन ने कहा कि भारतीय दर्शन का सार तत्व 'यत् पिण्डे, तत् ब्रम्हाण्डे' है, अर्थात जो शरीर में है, वहीं ब्रम्हाण्ड में है। उन्होंने कहा कि आत्मा की अमरता की हजारों वर्ष पुरानी मान्यता आज भी विज्ञान में जीन के रूप में सत्य हो रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय जन-मानस की दार्शनिक ज्ञान की समृद्धता अद्भुत है। जिस युग में समस्त ग्रंथ, ग्रंथालय और शिक्षालय जला दिये गये थे, उस युग में भी भारतीय ज्ञान परम्परा की निरंतरता बनी रही। राज्यपाल ने अपेक्षा की कि दर्शन परिषद के अधिवेशन का चिंतन इस दिशा में सार्थक प्रयास करेगा।

प्रोफेसर संगीत कुमार रागी ने कहा कि पाश्चात्य ज्ञान ने भौतिकता के क्षेत्र में और भारतीय ज्ञान ने अध्यात्म के क्षेत्र में उपलब्धियां अर्जित की हैं। उन्होंने कहा कि दर्शन, अनुभव से सीखने की पद्धति का आध्यात्मिक विज्ञान है। इसे आज के विज्ञान से जोड़ने की जरूरत है।

इंडियन कॉउंसिल ऑफ फिलासिफिकल रिसर्च के चेयरमैन प्रो. रमेश चन्द्र सिन्हा ने कहा कि समाज को दिशा देने में दार्शनिकों की भूमिका व्यापक है। आधुनिक परिवेश की व्यवस्था में दर्शन शास्त्र को जीव जगत के चिंतन तक सीमित नहीं रखा जा सकता।



अधिवेशन का बीज वक्तव्य देते हुए प्रो. अभिमन्यु सिंह ने दर्शन की अंर्तदृष्टि, स्वरूप, वैविध्यता और आवश्यकता बताई। उन्होंने बताया कि दर्शन, वैचारिक संरचना है, जिसमें एक ही वस्तु को देखने, समझने के विभिन्न रूपों को समाहित किया गया है। परिषद के अध्यक्ष प्रो. जटाशंकर ने बताया कि विगत 6 दशकों में परिषद द्वारा अनेक ऐसे ग्रंथों का प्रकाशन हिन्दी में किया गया है, जो शोध अध्येताओं के लिए उपयोगी हुए हैं।

राज्यपाल ने अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में परिषद के 64वें अधिवेशन की स्मारिका का विमोचन किया और विद्वानों को पुरस्कारों से सम्मानित किया। इस मौके पर प्रमुख सचिव, वाणिज्यिक कर श्री मनु श्रीवास्तव और बड़ी संख्या में दार्शनिक, दर्शानुरागी और छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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