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ताजमहल विवाद फिर कठघरे में, इमारत के बाबर के समय के होने का दावा

आगरा, 27 मार्च (वार्ता) ताजमहल के तेजो महालय होने का विवाद एक बार फिर अदालत में पहुंच गया है। मामले की सुनवाई नौ अप्रैल को नियत की गयी है।
लंबे समय से ताजमहल को लेकर विवाद खड़ा किया जाता रहा है। पहले भी इस मामले में कोर्ट में वाद दायर हो चुके हैं। इस बार मथुरा के योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट और क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट ने वाद दायर किया है।
अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने सिविल कोर्ट (सीनियर डिवीजन) में वाद प्रस्तुत किया। कोर्ट ने वाद स्वीकार कर लिया है। सुनवाई के लिए नौ अप्रैल की तारीख नियत की गई है।
अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने विगत जनवरी माह में वाद प्रस्तुत किया था। उस समय न्यायालय ने सुनवाई के बाद वादी को धारा 80(1) सिविल प्रकिया संहिता नोटिस की कार्यवाही पहले पूरी करने को कहा था। प्रतिवादी को नोटिस भेजकर दो महीने की समय सीमा के बाद दोबारा वाद दायर किया। वाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा महानिदेशक नई दिल्ली, अधीक्षक आगरा सर्किल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग व पर्यटन निदेशालय द्वारा महानिदेशक पर्यटन विभाग उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ को प्रतिवादी बनाया है।
अधिवक्ता ने बताया, वाद दायर करने से पहले उन्होंने एएसआई से आरटीआई के जरिए जानकारी मांगी थी कि ताजमहल बनना कब शुरू हुआ था। कब बनकर तैयार हुआ। इसकी आयु कितने तरीके से निकाली गई है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने जवाब देते हुए बताया कि ताजमहल एक रिसर्च का विषय है, जिसके लिए आप ताजमहल की वेबसाइट और संबंधित पुस्तकों को पढ़ सकते हैं। इसके बाद उन्होंने ताजमहल के विषय में अनुसंधान करना शुरू किया, जिसमें उन्होंने बाबरनामा, हुमायूंनामा, रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल, एएसआई के बुलेटिन, एपिग्राफिका इंडिका, विश्वकर्मा प्रकाश, पुराण इत्यादि पढ़े जिनमें यह सामने निकलकर आया कि शिव सहस्त्र नाम स्त्रोत के अनुसार तेजो नाम शिवजी का है। विश्वकर्मा प्रकाश में तेजोलिंग बेरनिर्माण का वर्णन है संस्कृत में बेर का अर्थ मंदिर होता है।
एपिग्राफिका इंडिका में बटेश्वर शिलालेख के अनुसार राजा परमाल देव ने फिटकरी के समान सफेद रंग का शिवजी का मंदिर 1194 ई में बनवाया था। ताज गार्डेन जिसका मूल नाम चारबाग है जिसके निर्माण का वर्णन बाबर ने अपनी पुस्तक बाबरनामा में किया है, बाबर ने अपनी पुस्तक में ताजमहल के नीचे कुओं के निर्माण का भी वर्णन किया है।
हुमायूंनामा में ताजमहल का उल्लेख है। आगरा गजेटियर, एएसआई बुलेटिन और रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के जनरल के अनुसार ताजमहल का शिल्पकार विवादित है।
वर्ष 1946 के एएसआई के बुलेटिन में महानिदेशक माधोस्वरूप वत्स के लेख रिपेयरिंग ऑफ ताजमहल में लिखा है कि ताजमहल का शिल्पकार एक विवादित तथ्य है। ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी पीटर मुंडी ने वर्ष 1632 में ताजगंज के बाजार का उल्लेख किया है, जबकि उस समय ताजमहल का निर्माण शुरू हुआ था। अलेक्जेंडर कनिंघम की रिपोर्ट में ताजमहल के भीतर उन्हें ब्लैक बेसाल्टिक पिलर मिला था, जिसपर कछुआ बना था जोकि जैन धर्म के तीर्थंकर मुनिश्वरनाथ का चिन्ह है।
शाहजहां के प्रेम कहानी का वर्णन कासिम अली अफरीदी ने किया है, जिसका जन्म वर्ष 1771 व मृत्यु 1827 में हुई, जबकि ताजमहल के कथित निर्माण 1632 में हुआ। आगरा गजेटियर और बुरहानपुर गजेटियर में मुमताज महल की मृत्यु के वर्ष में अंतर है।
अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि सभी का विश्लेषण करने पर यह साबित होता है कि ताजमहल का अस्तित्व शाहजहां से पहले का है। मूल रूप से यह तेजोलिंग महादेव का मंदिर है जिसे तेजो महालय कहते थे। वाद में श्री भगवान श्री तेजोमहादेव, योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट व अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह वादी हैं। सचिव संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, महानिदेशक एएसआई, अधीक्षक एएसआई आगरा सर्किल, महानिदेशक यूपी टूरिज्म प्रतिवादी हैं।
सं प्रदीप
वार्ता
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