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महिला सशक्तिकरण के लिए और ठोस कदम उठाने की जरूरत: डाॅ महावीर सिंह

झांसी 22 फरवरी (वार्ता) उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान के तत्वावधान में महिला सशक्तिकरण और मीडिया विषय पर शनिवार से शुरू हुई दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि आल इंडिया रेडियो के भोपाल केंद्र के पूर्व निदेशक डा. महावीर सिंह ने कहा कि देश में महिला सशक्तिकरण के लिए अभी बहुत से ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। समाज की भलाई के लिए महिलाओं की लड़ाई को और विस्तृत फलक देने की जरूरत है।
विश्वविद्यालय के जनसंचार और पत्रकारिता संस्थान और राष्ट्रीय महिला आयोग के संयुक्त तत्वाधान में किये जा रहे इस आयोजन में उपस्थित छात्र छात्राओं को सम्बोधित करते हुए डा. सिंह ने कहा कि यदि छात्राएं अध्ययनकाल में ही अपनी खूबियों और कमियों को जान लें तो महिला सशक्तिकरण के कार्य को गति मिल सकती है। पत्रकारिता वो शस्त्र है जिससे समाज की विसंगतियों को दूर किया जा सकता है। पत्रकारिता समाज के शत्रु का चिह्नांकन कर उसे सबके सामने पेश करती है। साथ ही उससे निपटने के तौर तरीके भी समाज को बताती है। पत्रकारिता दोषी को दंडित कर सकती है। उन्होंने कहा कि हर एक आदमी कई कई व्यक्तित्व लेकर जीता है। आज समाज का बड़ा आदमी मारीच सा मायावी बन गया है। पत्रकारिता मारीच के असल चरित्र को उजागर कर जनता को सचेत कर सकती है। पत्रकार का यह दायित्व है कि वह सच को सामने लाए। सच के लिए लड़ भीे।
डा. सिंह ने चिंताभरे लहजे में कहा कि आज विभिन्न दबावों के काण सच्चाई की रिपोर्टिंग नहीं हो रही है। इससे समाज को उबरना होगा। उन्होंने कहा कि यदि महिलाओं को पुरुषों का भी साथ मिल जाए तो सही मायने में उनको सशक्त किया जा सकता है। महिला आरक्षण का बिल संसद के दोनों सदनों से पास न होने के मामले का उल्लेख करते हुए डा. सिंह ने कहा कि महिलाओं की बराबरी की लड़ाई को और विस्तृत फलक देने की जरूरत है।
विश्वविद्यालय के कुुलपति प्रो. जेवी वैशम्पायन ने उम्मीद जताई कि यह संगोष्ठी विद्यार्थियों को वैचारिक रूप से उद्वेलित करेगी। उन्होंने पत्रकारिता को लोकतंत्र का चैथा स्तंभ बताते हुए इसके महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वे सत्य को दिखाएं। लेकिन अपनी सीमाओं को भी ध्यान में रखें। चिंताभरे लहजे में उन्होंने कहा कि कई बार मीडिया के लोग खबरें भी खुद गढ़ने लगते हैं। ऐसे में तिल को ताड़ बना देते हैं जो समाज के लिए उचित नहीं है। ऐसा करके वे सत्य को बिगाड़ने का ही काम करते हैं। पत्रकारिता में सत्य और तथ्य खोज की सीमा तय होनी चाहिए। मीडिया जगत और समग्र समाज में महिलाओं को कैसे सशक्त किया जाए ऐसे उपायों की भी खोज होनी चाहिए।
इससे पूर्व राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक डा. सीपी पैन्यूली ने कहा कि समाज में आधी आबादी महिलाओं की है। हालांकि महिलाओं के कल्याण के लिए काफी कुछ काम हुआ है लेकिन अब उनकी स्थितियां बहुत अच्छी नहीं हैं। महिलाओं को सशक्त बनाकर ही समाज और देश का विकास किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि संगोष्ठी में महिला सशक्तिकरण और मीडिया से जुडे़ विविध पहलुओं पर विस्तार से मंथन होगा। उम्मीद है कि हम कुछ नए राह हासिल कर सकेंगे।
पहले तकनीकी सत्र की अघ्यक्षता कर रहीं यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) की प्रतिनिधि सोनिया पाण्डे ने मीडिया जगत की खूबियों को रेखांकित करते हुए कहा कि विद्यार्थियों को पूरे विश्वास और तैयारी के साथ इस क्षेत्र में उतरना चाहिए। यहां कड़े परिश्रम और सतर्कता के साथ अध्ययन की भी जरूरत होती है।
सत्र के मुख्य वक्ता कर्मवीर विद्यापीठ, खंडवा के डा. संदीप भट्ट ने कहा कि आज मीडिया में महिला का प्रस्तुतिकरण ठीक से नहीं हो रहा है। अखबार की पहुंच बहुत सीमित है। ऐसे में उसके मुद्दे भी प्रोजेक्टेड हैं। जब तक समाज व्यक्तिवादी सोच से नहीं उबरता है तब तक महिलाओं का सशक्तिकरण नहीं हो सकता है। इस सत्र में जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान के शिक्षक उमेश शुक्ल ने राष्ट्रीय महिला आयोग के कार्यों और महिला सशक्तिकरण में उसके योगदान का विस्तार से जिक्र किया। इस सत्र के प्रतिवेदक की भूमिका भी उमेश शुक्ल ने निभाई। इस सत्र में अलका नायक, मंजू अग्रवाल, डा. विकास चैरसिया, नेहा खान, निशा बरैयां, अमित कुमार, पवन कुमार आदि ने शोधपत्र प्रस्तुत किए। अंत में अभिषेक कुमार ने आभार जताया।
दूसरे सत्र की अध्यक्षता सीएसजेएम विवि, कानपुर की डा. रश्मि गौतम ने की। उन्होंने महिला सशक्तिकरण के काम को और गंभीरता से करने का आह्वान किया। इस सत्र के मुख्य वक्ता एनएसएस के संयोजक डा. मुन्ना तिवारी ने भी महिला सशक्तिकरण के विविध पहलुओं को रेखांकित किया। इस सत्र में पत्रकारिता संस्थान के उमेश शुक्ल, डीके गुप्ता, माधुरी, अपूर्वा सविता, सर्वेश्वरम कृष्णम, डा. राममूरत समेत करीब एक दर्जन शोधपत्र पेश किए गए।
सोनिया
वार्ता
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