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बिहार में ‘बेटिकट’ सांसद बिगाड़ सकते हैं दूसरों का खेल

बिहार में ‘बेटिकट’ सांसद बिगाड़ सकते हैं दूसरों का खेल

पटना 04 अप्रैल (वार्ता) बिहार में इस बार सात चरण में हो रहे लोकसभा चुनाव में बेटिकट हुये सांसद कई सीटों पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और महागठबंधन के उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ सकते हैं।

राजग और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नीत महागठबंधन शामिल दलों ने इस बार राज्य की 40 लोकसभा में से आधी से अधिक सीटों पर अपने मौजूदा सांसदों को टिकट नहीं दिया है। महागठबंधन एवं राजग के घटक दलों के बीच सीटों के तालमेल के तहत वाल्मीकिनगर, गोपालगंज (सुरक्षित), सिवान, गया (सुरक्षित), वैशाली, किशनगंज, समस्तीपुर, काराकाट, सीतामढ़ी और औरंगाबाद जैसी कई ऐसी सीटें हैं, जहां पिछले चुनाव में जीते सांसदों को इस बार उनकी पार्टी ने टिकट नहीं दिया है।

बेटिकट हुए ये सांसद फिलहाल जहां चुप्पी साधे हुए हैं वहीं समर्थकों की नजर भी उन पर टिकी हुई है। दरअसल 2014 के चुनाव की तुलना में 2019 का चुनावी परिदृश्य बिल्कुल अलग है। वर्ष 2014 में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने राजग से अलग होकर अपने दम पर चुनाव लड़ा था। वहीं, भाजपा , राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) राजग में थे। इस बार के महागठबंधन की तरह पिछले लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस और राजद एक साथ थे। विपक्ष की सभी पार्टियां इस बार महागठबंधन में है तो जदयू, भाजपा एवं लोजपा राजग में है। ऐसे में बेटिकट हुये उम्मीदवार यदि अपना तेवर दिखाते हैं तो उनकी पार्टी और गठबंधन के लिए यह घातक साबित हो सकता है।

जदयू के राजग में शामिल होने से भाजपा ने पिछले चुनाव के मुकाबले 13 कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा के 22 में से 16 निवर्तमान सांसदों को ही दुबारा मौका मिला है तथा छह को बेटिकट कर दिया गया है। इसी तरह की स्थिति महागठबंधन की भी है। पिछली बार राजद ने 27 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। इस बार 20 सीटों पर ही उसकी दावेदारी है, जिनमें से एक आरा सीट उसने कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के लिए छोड़ दी है।

राजद के कई दिग्गज नेता इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। इस बार राजद और कांग्रेस ने महागठबंधन में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी के शामिल होने से पिछले चुनाव के मुकाबले कम सीटों पर दावेदारी की है। इन सभी सीटों पर राजद के नेता कौन सा रुख अख्तियार करते हैं, इस पर सबकी निगाहें टिकी हैं। कांग्रेस भी इस बार तीन कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बेटिकट हुए नेताओं की भीतरघात की आशंका से राजग और महागठबंधन के प्रत्याशी सहमे हुये हैं। कई दलों में ऐसे बेटिकट सांसदों को मनाने की कोशिश की जा रही है तो कई जगह विरोध भी दिख रहा है।

इस बार तालमेल के तहत राजग के घटक दलों के खाते में जाने से वाल्मीकि नगर क्षेत्र से भाजपा के मौजूदा सांसद सतीश चंद्र दुबे, झंझारपुर से वीरेंद्र कुमार चौधरी, गोपालगंज (सुरक्षित) से जनक चमार, सिवान से ओम प्रकाश यादव और गया (सुरक्षित) से हरि मांझी को बेटिकट होना पड़ा है। वहीं राजग के एक अन्य घटक लोजपा ने वैशाली से अपने मौजूदा सांसद रामा सिंह को इस बार टिकट से वंचित कर दिया है। साथ ही पिछले लोकसभा चुनाव में किशनगंज से भाजपा प्रत्याशी रहे दिलीप जायसवाल और कटिहार से निखिल चौधरी को इस बार टिकट नहीं मिला है तो पटना साहिब से निवर्तमान सांसद शत्रुघ्न सिन्हा को भी बेटिकट कर दिया गया है लेकिन उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया है।

राजद ने समस्तीपुर में 2014 के चुनाव में प्रत्याशी रहे आलोक कुमार मेहता, काराकाट से पूर्व केंद्रीय मंत्री कांति सिंह और सीतामढ़ी से सीताराम यादव को उम्मीदवार नहीं बनाया है। समस्तीपुर और काराकाट की सीट महागठबंधन के घटक रालोसपा के खाते में गई है जबकि सीतामढ़ी सीट राजद के ही पास है। वहीं, कांग्रेस ने औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से पिछले चुनाव में प्रत्याशी रहे निखिल कुमार सिंह को उम्मीदवार नहीं बनाया है। यह सीट हम के खाते में गई है।

उपाध्याय.जय.संजय

वार्ता

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