गोरखपुर 27 सितम्बर (वार्ता)राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पहली बार आठ फरवरी 1921 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में आजादी के लिये लोगों से सरकारी नौकरियां का त्याग कर आन्दोलन में शामिल होंने का आहृवान किया था।
चम्पारण जाने के दौरान श्री गांधी गोरखपुर में वर्ष 1914 में आये थे। गांधी जी को सुनने के लिये गोरखपुर में स्थितं बाले मियां के मैदान में आठ फरवरी 1921 को एक लाख से अधिक लोग जमा थे। जहां गांधी जी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहला भाषण दिया था। उनका भाषण सुनकर सभी लोग उनके मुरीद हो गये।
गांधी जी ने कहा था कि यदि विदेशी वस्त्र का बहिष्कार पूरा हो गया और लोगों ने चरखे से कातकर तैयार किये गये धागे का कपडा पहनना शुरू कर दिया तो अंग्रेजों को यह देश छोडकर जाने के लिए विवश होना पडेगा। हमें गुलामी की जंजीर तोडनी है क्योंकि यह उतना ही जरूरी है जितना सांस लेने के हवा जरूरी है।
महात्मा गांधी के इस आहृवान पर लोग स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पडे। लोग नौकरी, कचहरी की नौकरी और स्कूल आदि छोडकर सभी गांधी जी के साथ हो लिए। नये सेवकों की भर्ती शुरू हो गयी और गांव-गांव पंचायत स्थापित हुयी।
पूर्वी उत्तर पदेश की जनता ने तन-मन से गांधी जी को स्वीकार कर लिया। पूर्वांचल का गोरखपुर, खलीलाबाद, संतकबीर नगर, बस्ती, मगहर और मउ आदि क्षेत्रों में चरखा चलाने वालों की बाढ आ गयी।
गांधी जी ने 30 सितम्बर 1929 से पूर्वांचल का दौरा दूसरे चरण में शुरू किया। वह चार अक्टूबर 1929 को आजमगढ से चलकर उसी दिन नौ बजे गोरखपुर आ गये। यहां उन्होंने चार दिन तक प्रवास किया। सात अक्टूबर 1929 को उन्होंने गोरखपुर में मौन व्रत भी रखा और नौ अक्टूबर 1938 को बस्ती के लिए रवाना हो गये।
गांधी जी के साथ जाने वालों में प्रख्यात उर्दू शायर फिराक गोरखपुर भी थे। वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह और 1931 में जमींदारी अत्याचार के विरूध्द यहां की जनता ने प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना के नेतृत्व में आंदोलन में भाग लिया। वर्ष 1930 में प्रोफेसर सक्सेना ने गांधी जी के आहवान पर गोरखपुर स्थित सेन्ट एन्ड्रयूज कालेज के प्रवक्ता पद का परित्याग कर पूर्वांचल के किसान -मजदूरों का नेतृत्व संभाल लिया।
उदय भंडारी
जारी वार्ता