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प्रयागराज में श्राद्ध कर्म का आरंभ मुण्डन संस्कार से होता है: आत्माराम गौतम

प्रयागराज में श्राद्ध कर्म का आरंभ मुण्डन संस्कार से होता है: आत्माराम गौतम

प्रयागराज,19 सितम्बर (वार्ता) तीर्थराज प्रयाग में मोक्षदायिनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित संगम तट पर श्राद्ध कर्म का आरंभ मुण्डन संस्कार से होता है।

वैदिक शोध संस्थान एवं कर्मकाण्ड प्रशिक्षण केन्द्र के पूर्व आचार्य डा़ आत्माराम गौतम ने बताया कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पित्रपक्ष की कल शुआत हो रही है। पित्रपक्ष 20 सितम्बर से छह अक्टूबर चलेगा। अमावस्या के दिन इसका समापन होगा। शास्त्रों में तीन प्रकार के ऋण बताए गये हैं। देव ऋण, ऋशि ऋण और पितृ ऋण हैं। शास्त्रों के अनुसार हमारे पूर्वज पितृपक्ष में धरती पर निवास करते हैंं। पितृ ऋण उतारने के लिए ही पतृपक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है। पित्रपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों के निधन की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। जो परिजन अपने पूर्वजों का पिण्डदान नहीं करते उन्हे पितृ ऋण और पिततृदोष के कोपभाजन का शिकार होना पड़ता है।

आचार्य ने बताया कि पुरखों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए एक पखवाड़े तक चलने वाले पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म का आरंभ प्रयागराज में मुंडन संस्कार से होता है। पुरखों की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष में पितृ धाम से धराधाम पर आए पितरों को पिंडदान दिया जाता है। पिंडदान से पहले केश दान किया जाता है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में पितृपक्ष में श्राद्ध तर्पण और मुंडन का विशेष महत्व बताया गया है। तीर्थराज प्रयाग में संगम तट पर केश दान और पिंडदान का महत्वपूर्ण पुण्य लाभ है। “प्रयाग मुंडे, काशी ढूंढे, गया पिंडे' का सनातन धर्म में विशेष महत्व है।

उन्होंने बताया कि हिन्दू धर्म शास्त्रों में मोक्ष के देवता भगवान विष्णु माने जाते हैं। तीर्थराज प्रयाग में भगवान विष्णु बारह अलग-अलग माधव रूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती की पावन त्रिवेणी में भगवान विष्णु बाल मुकुंद स्वरुप में साक्षात वास करते हैं। यही वजह है कि प्रयाग को पितृ मुक्ति का पहला और सबसे मुख्य द्वार माना गया है । काशी को मध्य और गया को अंतिम द्वार कहा जाता है। पितृ मुक्ति का प्रथम और मुख्य द्वार कहे जाने की वजह से प्रयाग में पिंडदान का विशेष महत्व है। आचार्य ने बताया कि पितृपक्ष में प्रयाग के गंगा और संगम तट पर किए जाने वाले मुंडन संस्कार एवं पिंडदान को महत्वपूर्ण बताया गया है। हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है, 'किसी भी पाप और दुष्कर्म की शुरुआत केश से होती है। इसलिए कोई भी धार्मिक कृत्य करने से पहले मुंडन कराया जाता है। प्रयाग क्षेत्र में एक केश का गिरना 1०० गायों के दान के बराबर पुण्यलाभ देता है। संगम पर पिंडदान करने से भगवान विष्णु के साथ ही तीर्थराज प्रयाग में वास करने वाले तैंतीस कोटि देवी-देवता भी पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं।

उन्होंने बताया कि पिण्दान योग्य आचार्य से हमेशा गंगा नदी के किनारे कराना चाहिए। यदि संभव नहीं हो तो घर पर ही करवाया जा सकता है। पितरों का श्राद्ध-विधि-विधान से करने पर पित्र के प्रसन्न होने पर घर में सुख-समृद्धि आती है। पितरों के प्रसन्न नहीं होने पर परिजनों को नाना प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता रहता है। यदि आप सामर्थवान नहीं हैं तो स्नान के बाद शुद्ध जल में काला तिल डालकर तर्पण किया जा सकता है।

आचार्य ने बताया कि श्राद्ध करने का अधिकार जेष्ठ पुत्र अथवा सबसे छोटे पुत्र को है। किन्तु विशेष परिस्थितयों में किसी भी पुत्र को श्राद्ध करने का अधिकार है। उन्होने बताया कि पितरों का श्राद्ध करने से पूर्व स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। कुश से बनी अंगूठी को धारण करने के पश्चात क्रिया करनी चाहिए। पिण्डदान के एक भाग के रूप में जौ के आटे, तिल और चावल से बने गोलाकार पिंड का भाग लगाया जाता है। उसमें से पंचबली भोग-- गाय, कुत्ता, कौआ आदि का हिस्सा अलग किया जाता है। इनको भोजन देते समय पितरों को स्मरण अवश्य करना चाहिए। तत्पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराकर यथासंभव दक्षिणा देकर पैर छूना चाहिए।

प्रयागवाल सभा के महामंत्री राजेन्द्र पालीवाल ने बताया कि वर्ष 2020 में महामारी कोरोना प्रकोप के कारण देश-दुनिया से पिण्डदान करने आने वाले श्रद्धालु त्रिवेणी के संगम पर कम संख्या में कर्मकाण्ड करने वाले जो आते थे वह कोविड़ के नियमों सेनेटाइजर, मास्क और दूरी आदि का पूरा पालन करते थे। इस बार प्रशासन ने पित्रपक्ष को देखते साफ-सफाई की पूरी व्यवस्था किया है। इसके साथ पण्डा समाज भी अपने बही खातों को श्राद्ध कर्म के लिए साफ-सुथरा कर तैयार हो गये है। पुरोहतों ने अपने आचार्य और नाई बुक कर लिये हैं।

श्री पालीवाल ने बताया कि उनके यहां पिछले कई पीढ़ियों से संगम तट पर पिण्डदान का कार्य कराया जा रहा है। पिछले साल कोरोना के कारण संगम पर प्रशासन ने पिण्डदान की इजाजत नहीं दिया था। इस बार कोरोना संक्रमण कम होने के कारण पिण्दान कराने वाले यजमानों के उत्तर प्रदेश बिहार, मध्यप्रदेश से फोन आने लगे हैं। उन्होने बताया कि उनके पास यजमानों के ठहरने की भी व्यवस्था रहती है।

दिनेश त्यागी

वार्ता

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